बिहार में महागठबंधन बुरी तरह फेल, इस वजह से हारी लालू की पार्टी, तेज प्रताप ने कर दिया था नाक में दम

पटना। बिहार में महागठबंधन को करारी हार मिली है, लालू की पार्टी राजद का खाता तक नहीं खुला, राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक राजद को एनडीए या उसके सहयोगियों ने नहीं बल्कि लालू परिवार के झगड़े ने लोकसभा चुनाव की लड़ाई से बाहर कर दिया, उम्मीदवार चयन से लेकर लोकसभा चुनाव के परिणाम तक तेजस्वी अपने परिजनों के ही निशाने पर रहे, मां राबड़ी देवी और पिता लालू प्रसाद यादव को छोड़ परिवार का शायद ही कोई सदस्य हो, जो तेजस्वी के बचाव में खुलकर खड़ा हो पाया हो।

पारिवारिक विवाद
तेजस्वी अपने दो निजी सहयोगियों मणि यादव और संजय यादव साथ ही दो राजनीतिक सहयोगी मनोज झा और आलोक मेहता के साख लोकसभा चुनाव के तीन महीने तक पारिवारिक विवाद से जूझते रहे, इस दौरान उन्होने मामले को सुलझाने को भरपूर कोशिश की, पिता लालू प्रसाद के जेल जाने का खामियाजा पार्टा को भुगतना पड़ा, पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेताओं की तो छोड़ ही दें, उनकी बड़ी बहन मीसा भारती और बड़े भाई तेज प्रताप ही शायद उन्हें अपना नेता स्वीकार नहीं कर पाये। अडंगा लगाते रहे तेजू और मीसा 
राजनीतिक रुप से सक्रिय मीसा भारती कभी खुलकर तो तेजस्वी के सामने नहीं आई, लेकिन तेज प्रताप को मोहरा बनाकर वो तेजस्वी पर तीर छोड़ती रही, फिर चाहे तेज प्रताप के ससुर चंद्रिका राय के सारण से उम्मीदवारी का मामला हो, या मीसा भारती के लिये खुद पाटलिपुत्र सीट, तेजस्वी चाहते थे कि उनके करीबी विधायक भाई बीरेन्द्र को यहां से टिकट मिले, लेकिन परिवार का मामला होने की वजह से उन्होने चुप्पी साध ली।तेज प्रताप ने कर दिया नाक में दम
तेज प्रताप यादव ने हर स्तर पर अपनी मनमानी करने की भरपूर कोशिश की, यहां तक कि तेजस्वी द्वारा घोषित उम्मीदवारों के खिलाफ भी प्रचार किया, अपने ही ससुर चंद्रिका राय का खुलकर विरोध करना शुरु कर दिया, तेजस्वी हमेशा तेज प्रताप के मामलों से बचते रहे और तेज प्रताप की मनमानी चलने दी, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा।खिसक गया वोट बैंक
तेज प्रताप पिछले तीन महीने से कभी इमोशनल ट्वीट करते हैं, तो कभी तेजस्वी के राजनीतिक हसियत पर ही सवाल खड़े कर देते हैं, लालू परिवार के इस महाभारत का असर राजद के सबसे बड़े वोट बैंक यादव जाति पर पड़ा, राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक लालू परिवार के झगड़े से यादवों को इतनी निराशा हुई, कि उन्होने दूसरे दलों के यादव प्रत्याशियों पर ज्यादा भरोसा जताया, इसी वजह से राजद का खाता तक नहीं खुला।

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