नई दिल्ली। हाल ही में मध्य पूर्व से चिंताजनक खबरें आ रही हैं. अमेरिका ने ईरान के खिलाफ अपना रवैया सख्त कर लिया है और वहीं पिछले कुछ समय से लगे प्रतिबंधों के कारण ईरान की बेचैनी भी उसके व्यवहार में झलकने लगी है. इसी बीच यूएई के निकट तेल के जहाजों को नुकसान पहुंचाने वाले हमलों ने इस मामले में तनाव बढ़ा दिया है. अमेरिका ने ऐसे कदम उठा लिए हैं जिससे तनाव युद्ध की कगार पर जाता दिखने लगा है.
क्या हुआ अचानक
दरअसल इस तनाव का देर सबेर बढ़ना तय ही था और यह तभी से मौजूद था जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने ईरान से न्यूक्लियर डील तोड़ी थी. उस समय अमेरिका ने ईरान पर फिर से प्रतिबंध तो लगाए थे. लेकिन कुछ देशों को, जिनमें भारत भी शामिल था, छूट दे रखी थी. मामले में तनाव तब बढ़ना तय हो गया जब अमेरिका ने यह छूट भी इस महीने से खत्म कर दी. इसके बाद रही सही कसर यूएई के निकट तेल के जहाजों पर हुए पूरी करते हुए आग में घी डालने का काम कर दिया. इसके बाद अमेरिका ने पहल करते हुए इस इलाके में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा दी.
चिंतित होकर सक्रिय हुआ ईरान
ईरान की अर्थव्यवस्था पहले से ही प्रतिबंधों की मार झेल रही थी. छह देशों को मिली छूट हटाने के घटनाक्रम ने ईरान को चिंता में डाल दिया. फौरन काम शुरु हो गया. ईरान ने पहले कहा कि अगर दुनिया की बड़ी शक्तियां 60 दिन के भीतर न्यू्क्लियर डील बचाने में नाकाम रहती हैं तो ईरान अपना यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम फिर से शुरू कर देगा. ईरान ने इससे आगे सक्रियता दिखाते हुए अपने विदेश मत्री मोहम्मद जावेद जरीफ को भारत में चुनाव प्रक्रिया के दौरान ही भारत भेज दिया.
डील बचाने के ईरान के कूटनीतिक प्रयास
चुनाव की वजह से जरीफ भारत को तेल निर्यात दोबारा शुरु करवाने को लेकर कोई सफलता हासिल न कर सके लेकिन अंतरराष्टीय कूटनीतिक स्तर पर उन्होंने शांतिपूर्ण प्रयासों को लेकर ईरान की गंभीरता का परिचय जरूर दे दिया. जरीफ न्यूक्लियर डील बचाने के लिए चीन की यात्रा पर भी गए. चीन और भारत ईरान के तेल निर्यात के सबसे बड़े ग्राहक हैं.
अमेरिका के भी ज्यादा ही गंभीर किए हालात
तभी यूएई के निकट तेल के जहाजों पर हमले की खबर ने इस क्षेत्र में अस्थिरता की आशंकाओं को बहुत ज्यादा हवा दे दी. अमेरिका ने इराक से अपने गैर आपातकालीन कर्मचारियों को वापस आने को कह दिया. इसी बीच ईरान ने अपनी तरफ से यह बयान भी दिया है कि वह न्यूक्लियर डील बचाने को प्रतिबद्ध है. वहीं संयुक्त राष्ट्र ने दोनों पक्षों (ईरान और अमेरिका) से संयम बरतने की अपील की है.
अब क्या होगा- युद्ध तो बिलकुल नहीं
इन हालातों में सवाल यह उठता है कि आखिर इन तनाव का नतीजा क्या होगा और इसका दुनिया पर क्या असर होगा. जिस तरह से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को आगे आकर कहना पड़ा कि वे युद्ध नहीं चाहते हैं, उससे साफ लग रहा है कि अमेरिका इस मामले को युद्ध तक ले जाने से पहले ही सुलझाना चाह रहा है. ईरान पर दबाव बनाने में अमेरिका सफल तो हुआ है. कहा जा रहा है कि ईरान में हालात उसके इस्लामिक क्रांति के बाद से सबसे खराब हैं.
क्या होगा भारत पर असर
सबसे बड़ी चिंता भारत के लिए सतही तौर पर तो कच्चे तेल की कीमतें ही नजर आती हैं. भारत पिछले साल ईरान का दूसरा सबसे तेल खरीदार था तो भारत का तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता ईरान था. ऐसे में भारत का ईरान से तेल खरीदना बंद करना दोनों पर विपरीत प्रभाव डालेगा. कई लोगों का कहना है कि इससे भारत पर कम असर पड़ेगा क्योंकि भारत को सिर्फ अपना एक आपूर्तिकर्ता बदलना है. इसके बाद भी बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि इससे दुनिया भर में तेल विक्रय का गणित काफी हद तक प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा क्योंकि ईरान के न रहने से बाजार में मांग बढ़ जाएगी जिससे तेल के दाम बढ़ना तय हो जाएगा.
केवल तेल ही नहीं और भी हैं मुद्दे
कच्चे तेल के दामों में बढ़ोत्तरी भारत पर सीधा विपरीत प्रभाव डालेगी. इसके अलाव इस क्षेत्र में अस्थिरता मध्यपूर्व में काम करने वाले 80 लाख भारतीयों को सीधे प्रभावित करेगी. वहीं यहां कि अस्थिरता दुनिया में तेल निर्यात करने वाले देशों पर भी असर करेगी जिससे तेल के दाम आसमान छूने लग सकते हैं. ईरान में चबहार परियोजना का अमेरिका ने विरोध नहीं किया है क्योंकि वह जानता है कि इसका अफगानिस्तान के लिए बहुत महत्व है. वर्तमान हालातों में भारत के अमेरिका और ईरान दोनों से अच्छे संबंध हैं ऐसे में वह चाहता है कि दोनों देश मामले को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाएं.