नई दिल्ली। बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने एक ट्वीट कर कहा कि इस बार पूर्वोत्तर, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के चुनाव परिणाम बेहद चौंकाने वाले होंगे. 2014 के चुनाव में अपने बूते बहुमत जुटाने वाली बीजेपी फिर नरेंद्र मोदी की अगुवाई में अब 2019 की सियासी जंग लड़ रही है. यूपी-बिहार में बीजेपी और एनडीए ने पिछली बार अधिकांश सीटें जीती थीं. पार्टी यहां इस बार भी चमत्कार दोहराने का दावा कर रही है लेकिन खास फोकस ओडिशा और पश्चिम बंगाल पर क्यों है?
बीजेपी के लिए नए इलाकों में सफलता की तलाश के पीछे दो कारण हैं. इसमें पहली तो मजबूरी है और दूसरी रणनीति. पहला कारण है यूपी-बिहार जैसे राज्य जहां की अधिकांश सीटें 2014 में बीजेपी-एनडीए ने जीते थे. वहां इस बार सपा-बसपा गठबंधन, कांग्रेस-आरजेडी महागठबंधन जैसे एलायंस के कारण बढ़ीं चुनौतियां हैं. और दूसरा कारण है ओडिशा-बंगाल जैसे राज्यों में बीजेपी की मजबूत होती जमीन.
दरअसल बंगाल और ओडिशा ऐसे राज्य हैं जहां क्षेत्रीय दल काफी मजबूत हैं. पश्चिम बंगाल ममता बनर्जी का मजबूत किला है तो ओडिशा में नवीण पटनायक का लंबे समय से जादू बरकरार है. यहां तक कि 2014 के चुनाव में मोदी लहर के बावजूद बीजेपी इन दोनों राज्यों में कुछ खास नहीं कर पाई थी. फिर यहां सवाल उठता है कि बीजेपी को इस बार किन फैक्टर्स से उम्मीद है. दरअसल इसका कारण है 2014 के बाद 5 साल में बदले हुए जमीनी हालात. इसके लिए दोनों ही राज्यों में बीजेपी ने सामने के खेमे से नामी नेताओं को तोड़ा और अपना खेमा मजबूत किया.
ओडिशा को बीजेपी मान रही गेमचेंजर
ओडिशा में विधानसभा चुनाव भी लोकसभा के साथ हो रहे हैं. ओडिशा की सत्ता पर पिछले 19 साल से नवीन पटनायक काबिज हैं. 2009 तक बीजेपी भी उनकी सहयोगी थी. इसी दौर में बीजेपी ने राज्य में अपनी जमीन मजबूत की. ओडिशा में लोकसभा की 21 सीटें हैं. 1999 के चुनाव में ओडिशा में बीजेडी को 10, बीजेपी को 9 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं. 2004 में बीजेडी 9, बीजेपी 7 और कांग्रेस 2 सीट जीतने में कामयाब रही. 2009 में बीजेडी को 14, कांग्रेस को 6 और सीपीआई को 1 एक सीट पर जीत मिली.
लेकिन 2014 के चुनाव में मोदी मैजिक के बावजूद बीजेपी सिर्फ 1 सीट जीत सकी जबकि बीजेडी ने 20 सीटें जीत ली. कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला. लेकिन यहीं से बीजेपी ने ओडिशा को अपनी चुनावी रणनीति में प्रमुखता से शामिल कर लिया. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ओडिशा में 21.5 % वोट मिले. जबकि 9 सीटों पर वह दूसरे स्थान पर रही. इन्हीं सीटों पर बीजेपी ने फोकस कर रणनीति को अंजाम देना शुरू किया. बीते 5 साल में अमित शाह ने बार-बार ओडिशा का दौरा किया. मोदी-योगी ने पिछले 2 साल में ही ओडिशा में दो दर्जन से ज्यादा रैलियां और रोड शो किए.
2014 में मोदी सरकार बनते ही केंद्र में ओडिशा से दो मंत्री बनाए गए- धर्मेंद्र प्रधान और जोएल उरांव. जमीन पर संगठन को मजबूत करने का जिम्मा दिया गया राष्ट्रीय संयुक्त संगठन महामंत्री सौदान सिंह को. जिन्होंने कार्यकर्ताओं को खड़ा कर संगठन पर फोकस किया और सदस्यता बढ़ाने पर फोकस किया. मतदाताओं को संदेश देने के लिए बीजेपी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक ओडिशा में की. 2017 में पंचायत चुनावों के नतीजों ने बीजेपी का उत्साह बढ़ाया और बीजेडी के लिए खतरे का संकेत दे गया. पंचायत चुनाव में बीजेपी ने 296 सीटें जीतीं. जो 2012 के 36 सीट से करीब 8 गुना था. जबकि 2012 के चुनाव में 128 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 63 सीटों पर सिमट कर तीसरे नंबर पर चली गई.
बीजेपी की टीम ओडिशा
ओडिशा पर बड़ा दांव लगाने के लिए बीजेपी ने मजबूत टीम तैयार की. सौदान सिंह को जमीन पर संगठन बनाने का जिम्मा मिला तो धर्मेंद्र प्रधान को मोदी सरकार की योजनाओं की जानकारी से ओडिशा के लोगों को रुबरु कराने की. जोएल उरांव को आदिवासी इलाकों पर फोकस करने को कहा गया. पार्टी ने ‘बीजद हाफ, कांग्रेस साफ’ का नारा दिया. वहीं के. वी. सिंहदेव, बसंत पांडा जमीन पर पार्टी को मजबूत करने में जुट गए.
बीजेडी-कांग्रेस खेमे में लगाई सेंध
ओडिशा में अपना खेमा मजबूत करने के लिए बीजेपी ने बीजेडी और कांग्रेस के खेमे में सेंध लगाई. जून 2015 में बीजेपी ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम गिरधर गमांग को अपनी टीम में शामिल किया. 2014 के चुनाव के दौरान बीजेडी में नवीन पटनायक के बाद बालभद्र माझी और बिजयंत पांडा की गिनती हुआ करती थी. आज की तारीख में दोनों भाजपा के उम्मीदवार हैं. ये लिस्ट यहीं खत्म नहीं होती. कंधमाल से बीजेडी सांसद प्रत्यूषा राजेश्वरी सिंह, के नारायण राव और दामा राउत जैसे विधायक और कांग्रेस के प्रकाश बेहरा जैस नेताओं ने भाजपा का दामन थामा. अपनी पार्टी के बड़े नामों को भी बीजेपी ने चुनाव में उतारा है ताकि जमीन पर कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़े. पूर्व आईएएस अपराजिता सारंगी को भुवनेश्वर लोक सभा सीट से जबकि पुरी से अपने राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा को उतारा है.
बीजेपी ओडिशा में पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है. उसे नवीन पटनायक के 19 साल के शासन के एंटी इनकमबेंसी फैक्टर से उम्मीदें हैं. बीजेपी इसके अलावा चिटफंड घोटाले, गरीबी, किसानों की समस्याएं और दाना मांझी जैसी घटनाओं को उठाकर नवीन पटनायक सरकार को घेर रही है.
बंगाल में मिशन 23 Vs मिशन 42
बीजेपी को ओडिशा के साथ-साथ पश्चिम बंगाल में भी सियासी चमत्कार की उम्मीद है. इसका कारण हैं- तृणमूल कांग्रेस से आए नेता, हाल की चुनावी सफलताएं और मोदी मैजिक से उम्मीदें. वैसे तो 2014 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी का जादू चला था. राज्य की 42 में से 34 सीटों पर तृणमूल ने जीत हासिल की थी. 4 कांग्रेस ने तो सीपीएम ने 2 सीटों पर जीत हासिल की. बीजेपी के सिर्फ दो उम्मीदवार जीतने में कामयाब हुए थे. इस बार बीजेपी मिशन 23 पर काम कर राज्य में अपना प्रभाव जमाना चाहती है तो ममता बनर्जी मिशन 42 का नारा देकर बंगाल से अगला पीएम बनाने की जनता से अपील कर रही हैं.
बीजेपी के लिए नई संभावनाओं वाला चुनाव
2014 में बीजेपी के लिए सीटें भले ही 2 थीं लेकिन पार्टी ने इसे सफलताओं के द्वार खोलने वाला माना. बीजेपी की सीटें 2009 चुनाव की तुलना में दोगुनी हुई थी. जबकि तीन लोकसभा सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. वोट प्रतिशत 17.02% रहा था. जो कि 2009 की तुलना में 10.88 बढ़ गया. इससे भी बड़ी बात थी कि वामपंथी दलों और कांग्रेस के कमजोर होने से उसे राज्य में संभावनाएं बढ़ती हुईं दिखीं. लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है. तृणमूल के कई बड़े नेता अब बीजेपी के खेमे में हैं और ममता का सीधा मुकाबला मोदी के चेहरे से है.
बीजेपी ने उतारे दिग्गज चेहरे
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अप्रैल 2017 में ‘ईबार बांग्ला’ यानी अब बंगाल का नारा दिया और मिशन 23 का लक्ष्य रखा. मुकुल रॉय समेत 2014 में टीएमसी की जीत के हीरो रहे कई नेताओं को अपने खेमे में लाए. टीएमसी से आए अर्जुन सिंह, सौमित्र खान, अनुपम हाजरा और सीपीएम छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले खगेन मुर्मु जैसे नेताओं को बीजेपी ने चुनाव में टिकट दिया. आसनसोल से सांसद बाबुल सुप्रियो फिर मैदान में हैं. उनको टीएमसी की कैंडिडेट और बीते दौर की अभिनेत्री मुनमुन सेन चुनौती दे रही हैं. बीजेपी ने सुभाष चंद्र बोस के परपोते चंद्र कुमार बोस को कोलकाता दक्षिण, पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष को मेदिनीपुर, अभिनेत्री लॉकेट चटर्जी को हुगली, पूर्व आईपीएस भारती घोष को घाटल और राहुल सिन्हा को कोलकाता नॉर्थ सीट से चुनाव मैदान में उतारा है. जबकि राज्यसभा सांसद और अभिनेत्री रूपा गांगुली और मौसमी चटर्जी जमकर बीजेपी के लिए कैंपेन कर रही हैं.
जंगलमहल इलाके और ध्रुविकरण से बीजेपी को उम्मीद
बंगाल जीतने के लिए बीजेपी को कभी नक्सलवाद का गढ़ रहे जंगलमहल इलाके की 6 सीटों से उम्मीद है तो हिंदुत्व कार्ड के जरिए 10 और सीटों को साधने की उम्मीद है. इसके अलावा बिहार-झारखंड-असम से सटे इलाकों और शहरी इलाकों पर भी बीजेपी की नजर है. वैसे भी 2014 से राज्य में बीजेपी का ग्राफ तेजी से बढ़ा है. पहले लोकसभा, फिर विधानसभा, नगर निकाय और उपचुनाव के बाद पंचायत चुनावों में भी बीजेपी ने अपना प्रदर्शन लगातार सुधारा है.
2014 से राज्य में जहां कांग्रेस और वामदलों की स्थिति कमजोर हुई है तो वहीं बीजेपी के प्रदर्शन में लगातार सुधार हुआ है. पश्चिम बंगाल पंचायत चुनावों में सत्तारूढ़ टीएमसी ने भले ही क्लीन स्वीप कर लिया था लेकिन बीजेपी ने सभी को चौंका दिया था. कुल 31,802 ग्राम पंचायत सीटों में से तृणमूल ने 20,848 पर कब्जा जमाया. जबकि बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी और 5,657 सीट जीतने में कामयाब रही. सीपीएम ने 1415 सीटें और कांग्रेस सिर्फ 993 सीटें ही जीत सकी. इन दोनों से ज्यादा तो निर्दलीय उम्मीदवारों ने 1741 पंचायत सीटों पर जीत हासिल की थी.
उपचुनाव में भी भाजपा नंबर दो पर
पंचायत चुनावों के अलावा नवपाड़ा विधानसभा और उलुबेरिया लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में टीएमसी ने जीत हासिल की थी लेकिन हैरान करने वाली बात थी कि इन दोनों सीटों पर बीजेपी को सीपीएम से ज्यादा वोट मिले थे. 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के 3 विधायक जीते और पिछली बार के मुकाबले बीजेपी का वोट 6 फीसदी बढ़ा था. जबकि इससे पहले बीजेपी का एक भी विधायक नहीं था.
बंगाल और ओडिशा के अलावा बीजेपी को पूर्वोत्तर में भी अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है. 2014 से अलग इन नए इलाकों में सीटें जीतकर बीजेपी यूपी-बिहार-राजस्थान-गुजरात जैसे राज्यों में कम सीटें आने की स्थिति में भरपाई की आस लगाए हुए है. हालांकि 23 मई को मतगणना के बाद ही पता चलेगा कि बीजेपी की रणनीति किस हद तक सफल होती है.