पटना । कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर हमलावर हैं। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। साथ ही जनता को संदेश भी दे रहे हैं कि भाजपा का मुकाबला सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है। लेकिन बिहार में स्थिति विपरीत है। यहां पार्टी की सिर्फ दो सीटों पर ही भाजपा से टक्कर है। अधिसंख्य सीटों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से मुकाबला है।
कांग्रेस को प्रदेश में उम्मीदवारों की कमी भी झेलनी पड़ी है। पार्टी के हिस्से में तालमेल में नौ सीटें आई हैं, जिनमें से चार पर अन्य दलों से आए उम्मीदवारों को उतारा गया है, जबकि नौवें उम्मीदवार की घोषणा नहीं हुई है। आयात की ही संभावना है।
यह भी इत्तफाक है कि दो प्रत्याशी भाजपा छोड़ कांग्रेस में आए हैं। इनमें से एक पूर्व सांसद उदय सिंह पप्पू और दूसरे निवर्तमान सांसद शत्रुघ्न सिन्हा हैं। इन्हें क्रमश: पूर्णिया और पटना साहिब से कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है। वहीं तारिक अनवर राकांपा छोड़ कर आए हैं। वह कटिहार से इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे। चौथे बाहरी उम्मीदवार के रूप में मुंगेर से नीलम देवी चुनाव लड़ रही हैं। उन्होंने पहले कभी कांग्रेस में तो क्या, राजनीति के क्षेत्र में भी कदम नहीं रखा था। नीलम देवी बाहुबली अनंत सिंह की पत्नी हैं। अनंत सिंह मोकामा से निर्दलीय विधायक हैं। भाजपा के एक और सांसद कीर्ति आजाद को कांग्रेस ने झारखंड में ठिकाना दिया है।
जिन दो सीटों पर कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने हैं, वे सासाराम और पटना साहिब हैं। पटना साहिब में शत्रुघ्न सिन्हा का मुकाबला केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और सासाराम में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के सामने निवर्तमान सांसद छेदी पासवान चुनावी मैदान में हैं। एक और संयोग यह भी है कि कांग्रेस को नौ में से छह सीटों पर जदयू से मुकाबला करना पड़ रहा है। जबकि, राहुल गांधी का रवैया जदयू के प्रति हमेशा से नरम रहा है। समस्तीपुर एक ऐसी सीट है, जिस पर कांग्रेस के अशोक राम लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) उम्मीदवार रामचंद्र पासवान का सामना करेंगे। रामचंद्र पासवान लोजपा अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के भाई हैं।
प्रदेश में कांग्रेस के लिए ऐसे में जो स्थिति बनी है उसमें पार्टी को अन्य राज्यों से कहीं अलग चुनावी रणनीति बनानी पड़ेगी, क्योंकि अधिकांश सीटों पर मुकाबला भाजपा की जगह जदयू से है। कांग्रेस रिसर्च विभाग के प्रदेश अध्यक्ष आनंद माधव ने कहा कि हमने इसी कारण राष्ट्रीय मुद्दों के साथ स्थानीय मुद्दों को भी चुनाव प्रचार का हिस्सा बना रखा है।
सूत्रों ने इस बीच कहा कि भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में 22 सीटें हासिल की थीं। उसकी सीटें पहले से ही तय थीं, मगर कांग्रेस इस स्थिति में नहीं थी कि वह भाजपा की सिटिंग सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने की बात महागठबंधन में तय करा सके। कांग्रेस के हिस्से में अधिकांश वैसी सीटें आई हैं, जिन पर भाजपा के उम्मीदवार पिछला चुनाव जीत नहीं पाए थे।
छोटे दलों से भी कांग्रेस नहीं कर सकी सीटों की अदला-बदली
कांग्रेस चाह कर भी कुछ सीटें अपने कोटे में नहीं ले पाई। इनमें से तीन पर तो हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और विकासशील इनसान पार्टी (वीआइपी) के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस हमेशा से औरंगाबाद सीट पर अपने उम्मीदवार देती रही है, मगर इस बार इसे पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ के सामने झुकना पड़ा। औरंगाबाद में ‘हम’ के उपेंद्र प्रसाद चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं कांग्रेस खगडिय़ा और मधुबनी की सीट वीआइपी से अदला-बदली करना चाहती थी, मगर बात नहीं बनी। कांग्रेस खगडिय़ा से छत्तीसगढ़ के प्रभारी चंदन यादव को चुनाव लड़ाना चाहती थी। कांग्रेस ने दरभंगा के सांसद कीर्ति आजाद को पार्टी में शामिल तो कराया, मगर राजद से यह सीट उनके लिए लेने में कामयाब नहीं हो पाई।