प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में शराब के विज्ञापनों पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी है. अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि शराब बनाने व बिक्री करने वाली कंपनियां अब यूपी में टेलीविजन, अखबारों, मैग्जीन्स व सिनेमाहालों में न तो विज्ञापन कर सकेंगी और न ही अपने ब्रांड का प्रचार प्रसार पोस्टर, बैनर, होर्डिंग्स व दूसरे माध्यमों से कर सकेंगी.
अदालत ने यूपी सरकार के साथ ही आबकारी विभाग और पुलिस के ज़िम्मेदार अफसरों को इस आदेश का सख्ती से पालन कराने को कहा है. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि शराब कंपनियों के विज्ञापन सीधे तौर पर लोगों को शराब पीने व नशा करने के लिए प्रेरित करते हैं, जो कि संविधान के खिलाफ है, इसलिए इस पर पाबंदी लगाया जाना बेहद ज़रूरी है. अदालत ने इस मामले में विपक्षी पार्टियों पर पचीस हजार रूपये का हर्जाना भी लगाया है.
अदालत ने यह महत्वपूर्ण फैसला स्ट्रगल अगेंस्ट पेन संस्था द्वारा तेरह साल पहले दाखिल पीआईएल पर सुनवाई पूरी होने के बाद दिया है. संस्था के अध्यक्ष मनोज मिश्रा की तरफ से अदालत में यह दलील दी गई कि संविधान के अनुच्छेद 47 में नशीले सामानों के प्रयोग को दवा में इस्तेमाल को छोड़कर बाकी मामलों में प्रतिबंधित किया गया है, लेकिन शराब बनाने व बेचने वाली कंपनियां अपने ब्रांड का प्रचार प्रसार कर नशे को बढ़ावा दे रही हैं, जो कि क़ानून के खिलाफ है. सरकार राजस्व से मिलने वाले पैसों की लालच में इन पर रोक नहीं लगाती है.
अदालत ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए काफी सख्त रुख अपनाया है. मामले की सुनवाई करने वाली जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस अजीत कुमार की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि देश का संविधान लागू होने के उनहत्तर साल बाद भी नशे को प्रतिबंधित करने की संविधान की मंशा पर सिर्फ दो तीन राज्यों में ही अमल हो सका है.
सरकार शराब पर पाबंदी लगाने के बजाय मुनाफे व टैक्स के फेर में इस तरफ से आंख मूंदे हुए हैं, जो कि गलत है. अदालत के मुताबिक़ शराब का प्रचार आबकारी अधिनियम की धारा 3 का भी उल्लंघन है. डिवीजन बेंच ने अब तक क़ानून का ठीक से पालन नहीं होने पर नाराज़गी भी जताई है और यूपी सरकार – आबकारी विभाग व पुलिस अथॉरिटीज से इस फैसले का सख्ती से पालन कराने को कहा है. अदालत ने कहा है कि इस आदेश का पालन नहीं होने पर ज़िम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई भी की जाएगी.