नई दिल्ली। दो महीने बाद लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, उससे पहले बीजेपी सरकार और पीएम मोदी ने बड़ा दांव खेला है. उन्होंने सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से पिछड़े गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण की घोषणा कर दी है. ठीक चुनावों से पहले सरकार का ये कदम ऐसे ही नहीं आया है. उच्च वर्ग में बीजेपी के खिलाफ बढ़ते रोष को भी कम करने के लिए बीजेपी ने ये कदम उठाया है. इसके अलावा देश में 125 सीटें ऐसी हैं, जहां पर सवर्ण वोटर ही सबसे बड़ा फैक्टर हैं. अगर आरक्षण के मुद्दे को बीजेपी सही से लागू कर पाई और भुना पाई तो इन सीटों पर उसे फायदा मिलना तय है.
हालांकि इसमें कानूनी पेचीदगियां हैं. लेकिन फिलहाल इस मुद्दे पर बीजेपी सबसे आगे नजर आ रही है. देश में 125 सीटों पर सवर्ण वोटर सबसे बड़ा फैक्टर हैं. 2007 में सांख्यिकी मंत्रालय के सर्वे के अनुसार, हिंदू आबादी में पिछड़ा वर्ग की संख्या 41% और सवर्णों की संख्या 31% है. सवर्णों की कुल आबाद में 33 प्रतिशत से ज्यादा गरीब हैं. 2014 के अनुमान की मानें तो 125 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां हर जातिगत समीकरणों पर सवर्ण उम्मीदवार भारी पड़ते हैं और जीतते हैं.
2014 के चुनावों में 54 फीसदी हिंदू सवर्णों ने बीजेपी को ही वोट दिया था. वहीं 2004 के चुनावों में 35.3 फीसदी सवर्णों ने बीजेपी को वोट दिए थे. कुछ सीटें ऐसी हैं, जिनसे अब तक सिर्फ सवर्ण ही जीतते आए हैं. इनमें इलाहाबाद, लखनऊ, इंदौर जैसी सीटें ऐसी हैं, जहां सवर्ण वोटर सबसे अहम फैक्टर हैं. बिहार में बेगूसराय और दरभंगा ऐसी सीटें हैं, जहां सामान्य वोटर अहम फैक्टर हैं. बेगूसराय में ब्राह्मण और दरभंगा में भूमिहार किसी की भी जीत में अहम भूमिका निभाते हैं.
देश में एससी/एसटी की आबादी 20 करोड़ और लोकसभा में इस वर्ग से 131 सांसद हैं. भाजपा के सबसे ज्यादा 67 सांसद इसी वर्ग से हैं. देश की 79 सीटें अनुसूचित जाति के लिए और 42 सीट जनजाति के लिए आरक्षित हैं. देश में ओबीसी की जनसंख्या 70 करोड़ है. वहीं सवर्ण आबादी 31 करोड़ है.