नई दिल्ली। 2019 के लोकसभा चुनावों के लिहाज से इस वक्त सबकी निगाहें उत्तर प्रदेश पर लगी हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि देश का प्रधानमंत्री कौन होगा, इसका निर्धारण ये राज्य ही करता है. 80 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य से इस वक्त सबसे बड़ी खबर सपा-बसपा के संभावित गठबंधन की हो रही है. कहा जा रहा है कि बीजेपी को हराने के लिए धुर विरोधी सपा और बसपा के बीच गठबंधन हो गया है. अब उसका औपचारिक ऐलान 15 जनवरी को मायावती के जन्मदिन के मौके पर होना है. तब तक खरमास भी खत्म हो जाएगा. हालांकि 15 जनवरी को ही अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव का जन्मदिन भी पड़ता है.
विपक्षी खेमे में सपा-बसपा के संभावित महागठबंधन को इस लिहाज से गेमचेंजर माना जा रहा है क्योंकि जातीय आधार पर परंपरागत वोटबैंक के चलते कागजों पर ये गठबंधन बीजेपी से बीस दिखता है. चुनावों में वोट प्रतिशत की आंकड़ेबाजी के आधार पर भी राजनीतिक पंडित मोटेतौर पर आम सहमति दिखाते हैं कि इस महागठबंधन के होने पर बीजेपी को 2019 के लोकसभा चुनावों में भारी नुकसान उठाना पड़ेगा. पिछली बार बीजेपी को यूपी की 80 में से 71 सीटें अपने दम पर मिली थीं और सहयोगी अपना दल के कारण एनडीए का आंकड़ा 73 तक पहुंच गया था.
क्यों खुश दिख रही बीजेपी?
आंकड़ों के लिहाज से तो सपा-बसपा गठबंधन के कारण बीजेपी में बेचैनी होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं दिख रहा. दरअसल इस गठबंधन के बारे में अभी तक जो खबरें आ रही हैं, उसके मुताबिक कांग्रेस को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा. सूत्रों के मुताबिक बीजेपी इस बात से खुश है. ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी का मानना है कि कांग्रेस के अलग होने से मुकाबला त्रिकोणीय होगा. परंपरागत रूप से सीधी लड़ाई के मुकाबले जब भी इस तरह के बहुकोणीय मुकाबले होते हैं तो उसमें बीजेपी को फायदा मिलता है. ऐसा इसलिए क्योंकि बाकी दलों का जातीय आधार छोड़ दिया जाए तो उनके पास बीजेपी को हराने के लिए कमोबेश एक जैसे ही मुद्दे होते हैं.
दूसरी सबसे बड़ी बात ये है कि बीजेपी को लग रहा है कि यदि कांग्रेस अलग से लड़ेगी तो सपा-बसपा को अपेक्षित लाभ नहीं मिलेगा. इसका कारण यह है कि सूत्रों के मुताबिक पार्टी को लगता है कि इस सूरतेहाल में मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो जाएगा. वह एकमुश्त रूप से सपा-बसपा गठबंधन में नहीं जाएगा. खासतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसा मानने के अच्छे-भले सियासी कारण हैं.
बीजेपी के सूत्र तीसरा सबसे बड़ा कारण ये बता रहे हैं कि ऊपरी तौर पर भले सपा-बसपा गठबंधन कर लें लेकिन क्या इनका परंपरागत वोटबैंक एक-दूसरे की तरफ ट्रांसफर हो पाएगा. उसकी बड़ी वजह ये है कि दशकों से सपा और बसपा के कोर वोटरों के बीच कटुता रही है. इस कारण सपा-बसपा के बीच अपने वोटों का दूसरे के पक्ष में ट्रांसफर कराना इतना आसान भी नहीं होगा. मायावती अक्सर कहती भी रही हैं कि गठबंधन की स्थिति में आखिरकार बीएसपी को नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि बसपा का वोट ट्रांसफर तो दूसरे दल के पक्ष में हो जाता है लेकिन दूसरे का बीएसपी के पक्ष में नहीं होता.