सीट खोने का डर या दबाव? अखिलेश यादव आखिर कन्नौज से क्यों लड़ रहे हैं चुनाव; क्या वजह

सीट खोने का डर या दबाव? अखिलेश यादव आखिर कन्नौज से क्यों लड़ रहे हैं चुनाव; क्या वजहसपा मुखिया अखिलेश यादव ने कभी समाजवादी पार्टी के सिद्धांत पुरुष राममनोहर लोहिया की कार्यस्थली रही कन्नौज लोकसभा सीट पर खुद लड़ने का फैसला यूं ही नहीं किया। अव्वल तो वह इस सवाल पर पूर्णविराम लगाना चाहते थे कि सपा अध्यक्ष खुद ही लड़ाई से क्यों दूर हैं? दूसरे पार्टी की जिला इकाई के दबाव के साथ ही परंपरागत पारिवारिक सीट पर कहीं कोई संशय न रह जाए लिहाजा उन्होंने खुद ही मैदान में उतरने के फैसला किया।

कन्नौज लोकसभा सीट दशकों से समाजवादी पार्टी की सीट रही है। वर्ष 1967 में यहां से राममनोहर लोहिया ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव जीता था। इसके बाद इस सीट पर जनता पार्टी का दो बार कब्जा रहा। फिर यह सीट वर्ष 1998 से समाजवादी पार्टी के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव की करिश्माई रणनीति के चलते सपा की परंपरागत सीट बन गई। अखिलेश यादव यहां से वर्ष 2000 में जीते तो फिर समाजवादी पार्टी के खिलाफ जमीन बनाने के लिए यहां कमोबेश हर दल को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी लेकिन उन्हें जीत हासिल नहीं हुई। करीब 21 साल के दबदबे के बाद वर्ष 2019 में अंतत: भाजपा के सुब्रत पाठक ने डिंपल यादव को हरा कर भाजपा का परचम लहराया। डिंपल यहां करीब एक फीसदी से भी कम वोटों से हार गई थीं।

अव्वल तो समाजवादी पार्टी इस सीट पर पुन: कब्जा हासिल करने के लिए जी-जान से लगी थी। अखिलेश यादव खुद चाहते थे कि वह इस सीट से चुनाव लड़ें। इस बात को उन्होंने कन्नौज के दौरों के दौरान बीते दिनों कई बार संकेत भी दिए। पार्टी सूत्रों की मानें तो अव्वल तो इस सीट पर अखिलेश यादव पर पारिवारिक दबाव था कि वह तेज प्रताप यादव को चुनाव लड़ाएं। गौरतलब है कि तेज प्रताप लालू यादव के दामाद हैं। अखिलेश यादव बिहार में राजद के साथ मिलकर कई बार प्रचार कर चुके हैं।

जिला इकाई का दबाव
इसके विपरीत पार्टी काडर पर दबाव था कि अखिलेश यादव अगर चुनाव नहीं लड़ेंगे तो सियासी माहौल बनाने में दिककत हो सकती है। लिहाजा, खुद अखिलेश को ही आगे आकर मोर्चा लेना चाहिए। साथ ही यह भी आशंका थी कि भाजपा के सुब्रत पाठक के सामने तेज प्रताप यादव का व्यक्तित्व उनका करिश्मा कितना असरदार होगा। लिहाजा, पार्टी इकाई हर हाल में चाहती थी कि अखिलेश यादव खुद चुनाव लड़ें। पार्टी का मानना था कि अव्वल तो इससे पूरे प्रदेश में सकारात्मक संदेश जाएगा और विपक्ष परिवारवाद के आरोपों को भी धार नहीं दे सकेगा। वहीं चुनाव न लड़ने के नकारात्मक संदेश से होने वाले सियासी नुकसान से भी बचा जा सकेगा।

आसपास की सीटों पर रहेगा असर
सपा पार्टी का मानना है कि अखिलेश यादव के कन्नौज से चुनाव लड़ने पर आसपास की लोकसभा सीटों पर भी प्रभाव रहेगा। दरअसल, कन्नौज की सीमा इटावा, अकबरपुर, हरदोई, मिश्रिख, मैनपुरी व फरुर्खाबाद लोकसभा सीटों से सटी हुई है। ऐसे में कन्नौज से चुनाव लड़ने पर चुनाव प्रचार के दौरान इन सीटों पर भी असर होना तय माना जा रहा है। कहना गलत न होगा कि इसी नजरिये से अखिलेश ने कन्नौज से लड़ने का फैसला किया।

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