G20 में भारत की राह का रोड़ा बने रूस-चीन क्यों एक सुर में भारत का बचाव भी कर रहे हैं?

रूस और चीन के राष्ट्राध्यक्ष जी20 शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हो रहे हैंनई दिल्ली। G20 मेजबानी को लेकर भारत ने विशाल आयोजन किया है जिसे पूरी दुनिया देख रही है. लेकिन इस आयोजन को पूरी तरह सफल तभी माना जाएगा जब भारत सम्मेलन के अंत में सभी देशों को विभिन्न मुद्दों पर राजी कर संयुक्त बयान जारी करा पाएगा. रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर वैश्विक परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है और ऐसे में बातचीत के एजेंडे से यूक्रेन के मुद्दे को दूर रख पाना भारत के लिए लगभग असंभव होने वाला है. रूस और चीन ने जी20 की पिछली बैठकों में रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़े हिस्से पर आपत्ति जताकर संयुक्त बयान जारी करने में अड़ंगा डाल दिया था.

पुतिन-जिनपिंग का जी20 बैठक में शामिल न होना

जी20 बैठक में न तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आए और न ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग. अगर ये दोनों राष्ट्राध्यक्ष जी20 बैठक के लिए भारत आते तो भारत के लिए ये बड़ी सफलता मानी जाती. जी20 दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का संगठन है जिसमें चीन और रूस काफी अहम देश माने जाते हैं.

चीन अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अगर चीनी राष्ट्रपति भारत आते तो सबसे बड़े आर्थिक गठबंधन का भारत का यह आयोजन सफल माना जाता. राष्ट्रपति शी जिनपिंग हाल ही में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए थे लेकिन उन्होंने जी20 के लिए भारत नहीं आना चुना. जिनपिंग की जगह चीन के प्रीमियर लि कियांग शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं.

वहीं, रूस भी दुनिया की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है. पुतिन ने भारत न आने का फैसला कर अपने विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव को भारत भेजा है. अगर पुतिन आते तो भारत के लिए बड़ी सफलता माना जाती और भारत दुनिया के सामने अपनी एक मजबूत तस्वीर पेश कर पाता कि गंभीर मतभेदों के बावजूद भी वो दुनिया के सभी बड़े नेताओं के एक मंच पर लाने में सक्षम है.

जी20 में भारत के लिए मुश्किलें खड़ी करते रूस-चीन

जी20 की पिछली वित्त मंत्रियों और विदेश मंत्रियों समेत सभी प्रमुख बैठकों में कोई साझा बयान जारी नहीं हो पाया था. इसका कारण संयुक्त बयान के एक हिस्से पर रूस और चीन की आपत्ति थी. दोनों देशों ने बयान के उस हिस्से पर अपनी आपत्ति जताई थी जिसमें यूक्रेन पर रूसी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की गई थी.

दो पैरा का यह हिस्सा पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन से लिया गया था. दोनों देशों की आपत्ति के बाद साझा बयान की जगह भारत को एक चेयर्स समरी से ही काम चलाना पड़ा था जिसमें कहा गया कि यूक्रेन में मौजूदा हालात और रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को लेकर देशों की अलग-अलग राय है.

रूस और चीन जहां इंडोनेशिया के शिखर सम्मेलन में संयुक्त बयान पर राजी हो गए थे, उन्होंने भारत में जी20 बैठकों के संयुक्त बयान पर अपनी सहमति देने से इनकार किया है. ऐसी स्थिति भारत के लिए बहुत मुश्किल होने वाली है.

भारत लगातार यह कहता रहा है कि जी20 सुरक्षा से जुड़े संघर्ष सुलझाने का मंच नहीं बल्कि एक आर्थिक मंच है और इसलिए बैठकों में यूक्रेन मुद्दा सुलझाने का जिक्र नहीं होना चाहिए. हालांकि, अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश लगातार यूक्रेन का मुद्दा उठाकर बैठकों के माहौल को तनावपूर्ण बनाते रहे हैं.

पश्चिमी देशों की बात पर भारत के साथ क्यों खड़े दिख रहे रूस-चीन?

एक तरफ जहां रूस और चीन जी20 में भारत के लिए दिक्कतों का सबब बन रहे हैं तो वहीं, दूसरी तरफ जहां बात पश्चिमी देशों की हो रही है, वो भारत की वकालत करते दिख रहे हैं. दोनों ही देशों के सरकारी अखबार, जो वहां की सरकारों का पक्ष रखते हैं, जी20 को लेकर पश्चिमी देशों पर निशाना साधते हुए भारत की तारीफ कर रहे हैं. दोनों ही देशों के अखबार लिख रहे हैं कि पश्चिम भारत में जी20 सम्मेलन की सफलता में अड़ंगा डाल रहा है.

पश्चिम की आलोचना करते हुए भारत को शुभकामनाएं देता चीन का ग्लोबल टाइम्स

चीन के ग्लोबल टाइम्स ने अपने एक संपादकीय में लिखा है कि अमेरिका और पश्चिमी देश अकसर दावा करते हैं कि वो भारत के साथ हैं लेकिन उन्होंने इस बात की बहुत कोशिश की है कि जी20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों के बीच के मतभेद उभरकर सामने आएं. अखबार ने लिखा है कि पश्चिमी देश अपने एजेंडे को बढ़ावा देना चाहते हैं.

अखबार ने आगे लिखा, ‘कुछ विश्लेषकों का कहना है कि इस बार नई दिल्ली के जी20 शिखर सम्मेलन को लेकर जितने कयास लगाए जा रहे हैं, उससे कहीं अधिक तनाव का माहौल रहने वाला है. यह अनुमान लगाया जा रहा है कि जी20 इतिहास में ऐसा पहली बार हो सकता है कि संयुक्त बयान जारी न हो.’

अखबार ने लिखा है कि अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश जी20 पर दबाव डालेंगे कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की आलोचना की जाए वरना वो संयुक्त बयान जारी नहीं करने देंगे. पश्चिमी देश चीन और भारत के बीच भी तनाव को और बढ़ाना चाहते हैं यहां तक कि वो दोनों देशों में संघर्ष शुरू करने के भी हिमायती हैं.

अखबार ने अपने लेख के अंत में भारत के लिए शुभ कामना करते हुए लिखा है, ‘हमें उम्मीद है कि इस साल नई दिल्ली में होने वाला जी20 शिखर सम्मेलन सभी मुश्किलों को दूर करेगा और सफलता की एक नई कहानी बन जाएगा. हम चाहते हैं कि आम सहमति से एक संयुक्त बयान जारी हो.’

रूस की सरकारी मीडिया ने पश्चिमी मीडिया के खिलाफ किया भारत का बचाव

रूस के सरकारी ब्रॉडकास्टर रसिया टीवी (आरटी) ने एक ऑपिनियन लेख प्रकाशित किया है जिसमें जी20 को लेकर कुछ पश्चिमी अखबारों में चल रही नकारात्मक खबरों को लेकर उन्हें आड़े हाथों लिया गया है.

दरअसल, पश्चिमी मीडिया में जी20 आयोजन के लिए दिल्ली के कुछ इलाकों में झुग्गियों को हटाए जाने को लेकर नकारात्मक खबरें चल रही हैं. प्रमुख अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने तो अपनी एक रिपोर्ट में यह कह दिया है कि पीएम मोदी जी20 को अपनी रिब्रांडिंग के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.

नकारात्मक कवरेज को लेकर रूसी मीडिया ने लिखा, ‘पश्चिमी पत्रकारों ने महज गरीबों और वंचितों पर फोकस रखा और इस पर रिपोर्ट किया है कि कैसे भारतीय अधिकारियों ने जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले गरीब बस्तियों को हटाने करने के लिए सौंदर्यीकरण अभियान चलाया, यह इस बात का प्रमाण है कि गैर-पश्चिमी देशों के बारे में कुछ भी लिख देना कितना आसान है. उन्होंने अपनी कवरेज को केवल नकारात्मक कहानियों तक ही सीमित रखा है.’

रूसी मीडिया ने की भारत की मेजबानी की तारीफ

आरटी ने जी20 की भारत की मेजबानी की तारीफ करते हुए आगे लिखा, ‘इस साल भारत के सभी 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों के 60 शहरों में जी-20 की 220 बैठकें हो चुकी हैं जिसे भारत ने सफलतापूर्वक संपन्न किया है.भारत के आयोजन को ह्यूमन सेंट्रिक रखा गया है जिसमें बड़े समूहों ने हिस्सा लिया है और इसके लिए भारत की सराहना भी हुई है. भारत में बीजेपी की विपक्षी आम आदमी पार्टी ने भी इस आयोजन के लिए केंद्र सरकार की तारीफ की है.’

वाशिंगटन पोस्ट की पीएम मोदी पर टिप्पणी के लिए अखबार को लताड़ते हुए रूसी ब्रॉडकास्टर ने लिखा, ‘दुनिया भर के नेता ऐसे आयोजनों का उपयोग खुद को दूसरे देशों के नेताओं के सामने अच्छे ढंग के प्रदर्शित करने और अपने वोटर्स को आकर्षित करने के लिए करते हैं. और भारत तो साल 2000 से ही एक अभियान चला रहा है- अतुल्य भारत. विश्व भर के नेता इस तरह के वैश्विक सम्मेलनों अथवा किसी प्राकृतिक त्रासदी के वक्त लाइमलाइट में आते हैं. तो फिर भारतीय नेता के मामले में इतनी नाराजगी क्यों?’

अखबार ने लिखा कि पश्चिमी देशों में भी अपार अमीरी के बीच लाखों गरीब लोग भी हैं और वहां भी बेरोजगारी की दिक्कतें हैं. फिर वहां का मीडिया विकासशील दुनिया के नेताओं की गरीबी और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर फोकस कर रहा है जो कि कट्टर दोगलापन है.

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