61 मुकदमे, 6 मामलों में सजा और अब मर्डर केस में उम्रकैद… जानिए माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के गुनाहों का हिसाब

कभी यूपी में बाहुबली नेता और माफिया मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी, लेकिन अब उसके एक-एक करके उसके गुनाहों का हिसाब होने लगा है. सोमवार को वाराणसी की एमपी-एमएलए कोर्ट ने 32 साल पुराने अवधेश राय हत्याकांड में मुख्तार अंसारी को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुना दी. एमपी-एमएलए कोर्ट के विशेष न्यायाधीश अवनीश गौतम की अदालत ने मुख्तार अंसारी पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है. जुर्माना ना चुका पाने की स्थिति में उसे 6 माह की और सजा भुगतनी होगी. इसी मामले में एक अन्य धारा के तहत मुख्तार पर 20 हज़ार रुपए का जुर्माना और भी लगाया गया है.

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पेशी
सजा सुनाए जाने के दौरान माफिया मुख्तार अंसारी बांदा जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़ा था. इस दौरान मुख्तार ने अपने वकीलों के जरिए पहले तो अपने आप को बेगुनाह बताया फिर अपनी उम्र का हवाला देते हुए सजा को कम किये जाने की गुहार भी लगाई. वहीं सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता विनय कुमार सिंह ने बचाव पक्ष के तर्कों का विरोध करते हुए मुख्तार अंसारी के लंबे आपराधिक इतिहास का हवाला दिया और पूरे मामले को रेयरेस्ट ऑफ दि रेयर बताते हुए अधिकतक सजा की मांग की. कोर्ट ने इस मामले में धारा 148 आईपीसी के तहत 3 साल की सजा और 20 हजार का जुर्माना जबकि धारा 302 के तहत आजीवन कारावास और 1 लाख रुपए के जुर्माना अदा करने की सजा सुनाई. ये सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी. जुर्माना अदा ना करने पर छह माह अतिरिक्त जेल में बिताने होंगे.

अपने गैंग के जरिए कई दशकों तक यूपी सहित कई प्रदेशों में आतंक का पर्याय रहे मुख्तार अंसारी को पहली बार उम्रकैद की सजा मिली है. मुख्तार को उसके गुनाहों के लिए मिली ये अबतक की सबसे बड़ी सजा है. बता दें कि मुख्तार अंसारी के ऊपर 61 से ज्यादा मुकदमे दर्ज होने के बावजूद दशकों तक एक भी मामले में सजा नहीं हुई थी. वहीं योगी सरकार की नीति और अदालतों में प्रभावी पैरवी के कारण इस दुर्दांत माफिया को बीते एक साल में चार आपराधिक मामलों में सजा सुनाई जा चुकी है. माफिया को अबतक 6 मामलों में सजा हो चुकी है, जिसमें से पांच मामलों में उसे योगी राज में ही सजा मिली है. अवधेश राय हत्याकांड में मिली सजा के बाद अब उसकी पूरी जिंदगी जेल में ही गुजरना तय है.

अवधेश राय हत्याकांड
गौरतलब है कि 3 अगस्त 1991 को वाराणसी के लहुराबीर इलाके में रहने वाले कांग्रेसी नेता अवधेश राय की गोली मारकर नृशंस हत्या कर दी गई थी. अवधेश राय के भाई और पूर्व विधायक अजय राय ने इस मामले में वाराणसी के चेतगंज थाने में मुख्तार अंसारी के साथ ही पूर्व विधायक अब्दुल कलाम, भीम सिंह, कमलेश सिंह और राकेश श्रीवास्तव उर्फ राकेश न्यायिक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी. मौजूदा समय में मुख्तार अंसारी बांदा जेल में बंद है. भीम सिंह गैंगस्टर एक्ट में सजा पाकर गाजीपुर जेल में बंद है. पूर्व विधायक अब्दुल कलाम और कमलेश सिंह की मौत हो चुकी है. राकेश न्यायिक ने इस मामले में अपना केस अलग कराकर ट्रायल शुरू करवाया है, जो प्रयागराज सेशन कोर्ट में चल रहा है.

मुख्तार ने अपनाए थे कई पैंतरे 
यूपी पुलिस द्वारा दाखिल की गई चार्जशीट, गवाही और मज़बूत पैरवी को देख मुख्तार अंसारी ने इस केस मैं फैसला आने से पहले भी कई पैंतरे अपनाए थे. चर्चा थी कि मुख्तार अंसारी ने इस केस का ट्रायल शुरू होने से पहले ही कोर्ट के रिकॉर्ड रूम से केस की ओरिजनल फाइल ही गायब करवा दी थी. इसके बाद फोटो स्टेट चार्जशीट पर संभवतः पहली बार इतने चर्चित मामले की सुनवाई पूरी करते हुए सजा सुनाई गई है. 1991 में हुए हत्याकांड की जांच सीबीसीआईडी ने की और चार्जशीट दाखिल की थी. चार्जशीट के आधार पर ट्रायल शुरू हुआ, लेकिन बाद में इसे प्रयागराज की एमपी एमएलए कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया. साल 2020 में सरकार ने हर जिले में एमपी-एमएलए कोर्ट का गठन किया तो केस वापस वाराणसी की एमपी-एमएलए कोर्ट में भेज दिया गया था.

बम ब्लास्ट के कारण रुक गई थी सुनवाई
इस प्रकरण की सुनवाई पहले बनारस की एडीजे कोर्ट में ही चल रही थी. लेकिन 23 नवंबर 2007 को सुनवाई के दौरान अदालत से चंद कदम की दूर पर ही बम ब्लास्ट हो गया था. इसके बाद इस मामले में एक आरोपी राकेश न्यायिक ने अपनी सुरक्षा को खतरा बताते हुए हाईकोर्ट की शरण ली और काफी दिनों तक सुनवाई पर रोक लगी रही. एमपी-एमएलए कोर्ट का गठन होने के बाद इलाहाबाद में सुनवाई शुरू हुई. फिर बनारस में एमपी-एमएलए कोर्ट का गठन हो जाने पर सिर्फ मुख्तार अंसारी के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई, जबकि राकेश न्यायिक की पत्रावली अभी भी वहीं पर लंबित है.

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