ओम द्विवेदी
मंदिरों का है हमारा देश। कोई भी गली या कस्बा ऐसा नहीं होगा, जहाँ कोई मंदिर न हो या पहले न रहा हो। वाराणसी में गंगा घाट से बाबा विश्वनाथ के मंदिर तक पहुँचने के लिए जब कॉरिडोर का निर्माण किया जाने लगा, तब सैकड़ों वर्ष पुराने मंदिर लोगों के घरों के अंदर से निकले और ये ऐसे मंदिर हैं, जिनकी चर्चा आमतौर पर बहुत कम होती है। ऐसा ही एक मंदिर उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में स्थित है, जो तब चर्चा में आया, जब मंदिर में स्थापित महादेव को पुलिस थाने से वापस लाने के लिए 8 लाख रुपए की जमानत देनी पड़ी थी। यह मंदिर वनखंडेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
मंदिर का इतिहास
वैसे तो वनखंडेश्वर महादेव मंदिर और यहाँ स्थापित शिवलिंग के बारे में इतिहास से सम्बंधित कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है लेकिन इसे कई सदियों वर्ष पुराना माना जाता है। स्थानीय लोग मानते हैं कि यहाँ स्थापित शिवलिंग भागीरथ के समय का है। सोरों गाँव के लोग पीढ़ियों से यहाँ भगवान शिव की उपासना करते आ रहे हैं। कासगंज के भागीरथ गुफा के समीप स्थित वनखंडेश्वर महादेव को इलाके के लोग अपना इष्टदेव मानते हैं। लगभग 5 फुट ऊँचे इस शिवलिंग की खासियत यह है कि इसमें एक चेहरे की आकृति बनी हुई है।
शिवलिंग की चोरी और 8 लाख की जमानत
आज से करीबन 48 साल पहले अलीगढ़ के 6 चोरों को शिवलिंग के नीचे खजाना होने का पता चला। ऐसे में उन्होंने खजाना प्राप्त करने के प्रयास के चलते मंदिर में स्थपित शिवलिंग ही चुरा लिया। ग्रामीणों को इस खबर की जानकारी हुई तो उन्होंने शिवलिंग को प्राप्त करने के प्रयास शुरू कर दिए। इसके लिए ग्रामीणों ने पुलिस थाने में रिपोर्ट भी लिखवाई।
कुछ समय बीतने के बाद शिवलिंग को चुराने वाले चोर संक्रमित बीमारियों से पीड़ित हो गए और उनकी जान पर बन आई। इसके बाद चोरों ने पाली मुकीमपुर थाने को चोरी की सूचना दी और शिवलिंग भी थाने के सुपुर्द कर दिया। चोरी की घटना के 20 साल बाद पुलिस ने कार्रवाई की और शिवलिंग को अंततः थाना के परिसर में ही स्थापित कर दिया गया।
कुछ समय बाद जब गाँव के लोगों को वनखंडेश्वर महादेव के पाली मुकीमपुर थाने में होने की सूचना मिली तो उन्होंने थाने में जाकर शिवलिंग की माँग की। लेकिन पुलिस ने भी ग्रामीणों को शिवलिंग वापस करने से मना कर दिया। इसके बाद सोरों ग्राम के निवासी अपने इष्टदेव को वापस प्राप्त करने के लिए अदालत पहुँच गए, जहाँ ग्रामीणों ने शिवलिंग अपने गाँव में स्थित होने का प्रमाण दिया। अदालत शिवलिंग को ग्रामीणों को सौंपने के लिए राजी हो गई लेकिन इसके लिए 8 लाख रुपए की जमानत अदा करने के लिए भी आदेशित किया।
अदालत के फैसले के बाद गाँव के 4 किसानों ने अपनी जमीन के एवज में 2-2 लाख रुपए इकट्ठा किए और वनखंडेश्वर महादेव को छुड़ाया। इसके बाद उन्हें वापस मंदिर लाया गया, जहाँ उनकी पुनर्स्थापना की गई। इस घटना के बाद से ही कासगंज के वनखंडेश्वर महादेव उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य हिस्सों में भी प्रसिद्ध हो गए। वनखंडेश्वर महादेव को अपने भक्तों की इच्छा पूरी करने वाला माना जाता है। यही कारण है कि यहाँ श्रावण महीने में बहुत अधिक संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं।
कैसे पहुँचें?
कासगंज का नजदीकी हवाईअड्डा आगरा में है, जो यहाँ से लगभग 100 किमी की दूरी पर है। दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से कासगंज की दूरी लगभग 205 किमी है। वायुमार्ग के अलावा रेलमार्ग से कासगंज पहुँचना आसान है क्योंकि कासगंज में ही रेलवे स्टेशन है, जो 3 दिशाओं से लखनऊ, बरेली और मथुरा से रेलमार्ग के द्वारा जुड़ा हुआ है। हालाँकि इन सभी स्थानों से सड़क मार्ग के जरिए भी कासगंज पहुँचना काफी आसान है क्योंकि यूपी राज्य परिवहन की बसें नियमित तौर पर पूरे प्रदेश में संचालित होती हैं।
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