एक बच्चे की रक्तरंजित लाश पड़ी है और उसकी बहन उसे जगाने की कोशिश कर रही है। अफगानिस्तान का यह वीडियो वहां लगातार खराब हो रहे हालात की एक झलक भर है।
तालिबान और अफगान सरकारी सैन्यबलों के बीच भीषण युद्ध चल रहा है। तालिबान ने देश के बाहरी हिस्सों पर कब्जे के बाद अब प्रातों की राजधानियों की ओर बढ़ना शुरू कर दिया है।
बीते 5 दिनों में तालिबान ने पांच प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा कर लिया है। उत्तर में कुंदूज, सर-ए-पोल और तालोकान पर तालिबान ने कब्जा कर लिया। ये शहर अपने ही नाम के प्रांतों की राजधानियां हैं। दक्षिण में ईरान की सीमा से लगे निमरोज प्रांत की राजधानी जरांज पर कब्जा कर लिया है। उजबेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान सीमा से लगे नोवज्जान प्रांत की राजधानी शबरघान पर भी भीषण लड़ाई के बाद तालिबान का कब्जा हो गया है। फिलहाल देश के 80% हिस्से पर या तो तालिबान का कब्जा है या उसके साथ लड़ाई चल रही है।
दूर-दराज से भाग कर आम नागरिक काबुल पहुंच रहे हैं
काबुल में मौजूद राजनीतिक कार्यकर्ता हसीबुल्लाह तरीन कहते हैं, ‘अफगानिस्तान में इस समय पूरी तरह युद्ध की स्थिति है। सिर्फ दूर के प्रांतों में ही नहीं, बल्कि काबुल के आसपास भी युद्ध चल रहा है। कुंदूज में भीषण लड़ाई चल रही है। सैन्य बलों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। तालिबान भारी हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। वो कुंदूज प्रांत और आसपास के कई प्रांतों पर कब्जा करना चाहते हैं। कुंदूज से लोग भाग रहे हैं। वहां मीडिया भी काम नहीं कर पा रहा है। मेरे कई परिचित वहां से भागकर आज ही काबुल पहुंचे हैं।’
ड्रग तस्करी के रूट पर तालिबान का कब्जा, यह उसकी आय का प्रमुख स्रोत
‘पारंपरिक रूप से तालिबान के गढ़ रहे उत्तरी अफगानिस्तान के सबसे अहम शहर कुंदूज पर तालिबान का कब्जा उसकी अब तक की सबसे बड़ी जीत है। अफगानिस्तान को मध्य एशिया से जोड़ने वाले रास्ते पर पड़ने वाला ये शहर ड्रग तस्करी के रूट पर पड़ता है। अफगानिस्तान से यूरोप जाने वाली अफीम और हेरोइन यहीं से होकर गुजरती है। इस शहर पर कब्जे का मतलब है कि तालिबान के पास एक बड़ा आय स्रोत भी आ जाएगा।
तालिबान इससे पहले साल 2015 और 2016 में भी कुछ समय के लिए कुंदूज पर कब्जा कर चुका है, लेकिन तब वो अपना नियंत्रण बरकरार नहीं रख पाया था। अफगान बलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती कुंदूज से तालिबान को खदेड़ना होगा। अगर वह वहां लंबे समय तक काबिज रहा तो उसके पास आय का एक नया स्रोत विकसित हो जाएगा, जो अफगान सरकार के लिए मुश्किल खड़ी करेगा।’
भारत द्वारा बनाए गए देलाराम- जरांज हाइवे पर तालिबान का कब्जा
ईरान सीमा के पास जरांज पर कब्जा भी तालिबान के लिए बड़ी रणनीतिक जीत है। ईरान के रास्ते अफगानिस्तान को होने वाला कारोबार यहीं से गुजरता है। ये शहर उसी 217 किलोमीटर लंबे देलाराम- जरांज हाइवे पर है जो भारत ने अफगानिस्तान में बनाया है।
काबुल के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, ‘इस पर कब्जा अफगान सरकार के लिए एक बड़ा झटका है। इस कब्जे के बाद इस रास्ते के जरिए होने वाली कारोबारी गतिविधियां तालिबान के हाथ में आ जाएंगी।’
दो-तीन महीने में हम जमीनी हालात बदल देंगे, तालिबान को बातचीत की टेबल पर आना होगा: अफगान सेना
अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमीरुल्ला सालेह के प्रवक्ता रिजवान मुराद ने भास्कर से बताया कि तालिबान शहरों में लोगों को मानव कवच (ह्यूमनशील्ड) की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। कुंदूज, तखार और कंधार के स्पिन बोल्दाक में तालिबान ने आम लोगों को बर्बरता से मारा है। वो बच्चों को मार रहे हैं, पत्रकारों को मार रहे हैं। वो स्कूलों को आग लगा रहे हैं, सरकारी इमारतों को आग लगा रहे हैं।
अमेरिकी सेना की वापसी की घोषणा के बाद से तालिबान तेजी से आगे बढ़ रहा था। बीते एक सप्ताह में तालिबान नेसेना के सामने बेहद मुश्किल हालात पैदा किए हैं।
मुराद कहते हैं, ‘अफगानिस्तान सरकार ने शांति लाने के लिए छह महीने की सुरक्षा योजना बनाई है। अफगानिस्तान के सुरक्षा बल अगले-दो तीन महीनों में जमीनी हालात को बदल देंगे। तालिबान के पास सिर्फ एक ही विकल्प बचेगा- बैठकर शांति से बात करने का।’
हम नहीं, सरकार आम लोगों पर हमला कर रही है: तालिबान
आम लोगों पर हमले की बात करने पर तालिबान प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद कहते हैं, ‘हमने नहीं, सरकार ने देश के अलग-अलग हिस्सों में नागरिकों पर हमले का आदेश दिया है। वो सार्वजनिक सुविधाओं पर बमबारी कर रहे हैं। हमारे गरीब लोगों को अपने घर छोड़कर भागना पड़ रहा है। वो अलग-अलग प्रांतों में अपराध कर रहे हैं। हम इस पर खामोश नहीं बैठेंगे। कुंदूज और सर-ए-पोल अब तालिबान के नियंत्रण में हैं, तखर और शबरघान में भी तालिबान आगे बढ़ा है। ये शहर अब तालिबान के नियंत्रण में है और यहां माहौल शांतिपूर्ण है।’
पाकिस्तान ने मदरसों से 20,000 लड़ाके तालिबान की मदद के लिए भेजे: अफगान सरकार
अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमीरुल्ला सालेह के प्रवक्ता रिजवान मुराद कहते हैं, ‘हमने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बताया है कि तालिबान और उसकी समर्थक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने मदरसों से 20,000 से अधिक लड़ाके अफगानिस्तान पहुंचाए हैं। तालिबान के अल कायदा और दूसरे अन्य कट्टरपंथी समूहों से भी संबंध हैं। हमारे सैनिक कम से कम 13 आतंकवादी समूहों के खिलाफ लड़ रहे हैं।’
काबुल भी सुरक्षित नहीं, लगातार हमले कर रहा है तालिबान
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले अधिक सुरक्षित है, लेकिन बीते बुधवार को काबुल में तालिबान के आत्मघाती लड़ाकों ने एक बेहद दुस्साहसिक हमले में रक्षा मंत्री के घर को निशाना बनाया। इस हमले में 8 नागरिक मारे गए और दर्जनों घायल हुए। ये बीते एक साल में काबुल पर तालिबान का सबसे बड़ा हमला था।
इस हमले के बाद तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने भास्कर को भेजे एक लिखित बयान में कहा, ‘इस्लामी अमीरात की शहीद बटालियन का ये हमला काबुल सरकार के प्रमुख लोगों के खिलाफ तालिबान के हमलों की शुरुआत है। हम आगे भी ऐसे हमले करेंगे।’
इसके अगले ही दिन शुक्रवार को तालिबान ने अफगानिस्तान सरकार के मीडिया प्रमुख दावा खान मेनापाल की काबुल में हत्या कर दी।
तालिबान के विरोध का नारा बना अल्लाह-हू-अकबर
काबुल में तालिबान के हमलों के बाद सड़कों पर उमड़ी भीड़ ने उसके खिलाफ अल्लाह-हू-अकबर का नारा लगाना शुरू किया। सबसे पहले हेरात प्रांत के लोगों ने ये नारा लगाना शुरू किया और अब काबुल समेत पूरे देश के लोग इसमें शामिल हो रहे हैं।
अफगानिस्तान में महिला अधिकार कार्यकर्ता और देश के चुनाव आयोग से जुड़ी रहीं जरमीना कहती हैं, ‘काबुल के लोगों ने शांति के लिए अल्लाह-हू-अकबर का नारा लगाया। इसमें देश भर के बच्चे, बूढ़े, महिलाएं और कबीलाई शामिल थे। ये नारा अफगानिस्तान की एकजुटता के लिए है। अफगानिस्तान के लोग फिर से तालिबान का शासन नहीं चाहते हैं। अल्लाह-हू-अकबर का नारा लगाकर लोगों ने बता दिया है कि वो तालिबान की विचारधारा के समर्थक नहीं हैं।’
वहीं, काबुल में रहने वाली मानवाधिकार कार्यकर्ता और संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व कर चुकी श्कुला जरदान कहती हैं, ‘हाल के दिनों में दो ऐसी चीजें हुई हैं जिनसे माहौल बदला है और लोगों को उम्मीद मिली है। पहला ये कि राष्ट्रपति अशरफ गनी ने स्पष्ट किया है कि सरकार तालिबान के खिलाफ पूरी ताकत के साथ लड़ेगी और दूसरा ये कि हेरात से शुरू हुआ अल्लाह-हू-अकबर आंदोलन पूरे देश में फैल गया है। इससे तालिबान की धार्मिक वैधता को चुनौती मिली है।’
उत्तरी अफगान में आम लोगों ने तालिबान के खिलाफ उठाए हथियार
उत्तरी अफगान में रहने वाले एक आम नागरिक नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘यहां आम लोगों ने तालिबान के खिलाफ हथियार उठा लिए हैं। वो सरकारी सैन्य बलों के साथ मिलकर लड़ रहे हैं। हेरात में तालिबान के कब्जे के खिलाफ एक विद्रोह शुरू हो गया है, जिससे तालिबान के सामने मुश्किलें आ रही हैं।’
अमेरिका ने B-52 बमवर्षकों से हमला किया
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की स्टेप बाई स्टेप वापसी जारी है, लेकिन मौजूदा हालात में अमेरिका ने अफगान सेना के समर्थन में तालिबान के खिलाफ कुछ हवाई हमले किए हैं। इनमें बमवर्षक विमानों बी-52 का इस्तेमाल भी किया गया है।
तालिबान ने इन हवाई हमलों को लेकर कहा है, ‘हवाई हमलों में आम अफगानी लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। इन हवाई हमलों के बावजूद तालिबान की रफ्तार थमी नहीं है।’
हिंसा में मारे जा रहे हैं बच्चे, बेघर हो रहे हैं लोग
बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNICEF की अफगानिस्तान में प्रतिनिधि हर्वे लूडोविच डे लिज की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया है कि बीते 72 घंटों में अफगानिस्तान में 20 बच्चों की मौत हुई है और 130 बच्चे घायल हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘UNICEF हथियारबंद समूहों द्वारा जबरदस्ती बच्चों को भर्ती करने को लेकर भी चिंतित है।’
वहीं, शरणार्थी मामलों की संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNHCR ने एक बयान में कहा है कि बीते एक महीने में ही अफगानिस्तान में पैंतीस हजार परिवार बेघर हुए हैं।
अभी तक मौजूदा स्थिति के मुताबिक, तालिबान बिजली की तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन अफगान सरकार की बातचीत से पहले युद्धक्षेत्र में तालिबान को हराने की रणनीति और आम लोगों के तालिबान के खिलाफ उतरने से हालात कुछ बदले हैं। युद्ध से घिरे अफगानिस्तान में इससे हालात कितने बदलेंगे, यह कुछ वक्त बाद ही पता चलेगा।