विकास दुबे के गुर्गों ने रात 12 बजे कैसे खेला खूनी तांडव, जानें पूरी कहानी

लखनऊ। कानपुर में आठ पुलिसवालों के हत्याकांड ने पूरे पुलिस विभाग को झकझोर कर रख दिया है. हाल के सालों में ऐसी बड़ी वारदात किसी भी प्रदेश में पुलिस के साथ नहीं देखी गई है. इस घटना के मायने कई हैं, लेकिन हकीकत ये भी है कि पुलिस ने इस घटना से पहले हालात का आंकलन करने में गलती की.

विकास दुबे, जो कि इस इलाके का कुख्यात अपराधी था, जिस पर पिछले 20 सालों में हत्या, हत्या के प्रयास के 60 से ज़्यादा मामले दर्ज थे, उसके घर पर दबिश देने के लिए पुलिस बगैर जरूरी जानकारी इकट्ठा किए गई थी.

कहां हुई चूक

अगर रेड करने के लिए पुलिस के मानक नियमों की बात करें तो ऐसे मौकों पर पूरी पुलिस पार्टी जाने की बजाय पहले एक दो मुखबिरों या पुलिसवालों को स्थिति का आंकलन करने के लिए जाना चाहिए था. पुलिस टीम को रेड करने से पहले पूरी तरह से हथियारों से ही नहीं, बल्कि सुरक्षा उपकरणों यानी बुलेट प्रूफ़ जैकेट और सुरक्षित गाड़ियों से जाना चाहिए था.

पुलिस आमतौर पर मोबाइल सर्विलांस के जरिये पहले से पता करती है कि अपराधी की वास्तविक स्थित क्या है. किन लोगों के साथ मौजूद है और रेड होने पर निपटने के लिए किस तरह की सावधानी और पुलिसकर्मियों को तैनात किए जाने की जरूरत है.

जानकारी के मुताबिक पुलिस पार्टी ने इस रेड से पहले किसी भी तरह से उन बातों का ख़्याल नहीं रखा. यहां तक कि जब पुलिस गांव में पहुंची तो रास्ते को रोकने के लिए जेसीबी मशीन से रास्ता ब्लॉक किया गया था. फिर भी अपनी गाड़ियों से उतरते वक्त पुलिस ने अपने हथियारों को दुरुस्त नहीं किया. इसी का नतीजा है कि जैसे ही पुलिसवाले विकास दुबे के घर के पास दबिश देने के लिए उतरे, पहले से तैयार बदमाशों ने ताबड़तोड़ फ़ायरिंग शुरू कर दी.

इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, कई पुलिसवाले जान गवां चुके थे. जो किसी तरह बचने की कोशिश में आसपास के मकानों की तरफ़ भागे बदमाशों ने घर में उनको घुसकर गोली मारी. कई पुलिसवाले ऐसे थे जिनको बंदूक़ सटाकर गोली मारी गई. टीम की अगुवाई कर रहे सीओ को बदमाशों ने घर के भीतर घेरकर धारदार हथियार से पैर पर वार किया और फिर बाद में सिर से सटाकर गोली मारी गई. इससे उनका भेजा बाहर आ गया.

गांव के कई घरों में सिर्फ खून ही खून फैला है. दीवारों पर बने गोलियों के निशान और मौका-ए-वारदात के हालात बताते हैं कि बदमाशों ने हर हाल में पुलिस वालों को जान से मारने के लिये ही फायरिंग की. इसके बाद बदमाशों ने इत्मीनान से हर एक पुलिसवाले के हथियार छीने और विकास दुबे ने अपने घर में लगे कैमरों का सीसीटीवी फ़ुटेज की हार्ड डिस्क निकाला और मौक़े से फ़रार हो गया. जब तक घटना की सूचना पाकर दूसरी पुलिस टीम वहां पहुंची तब तक सारे बदमाश फरार हो चुके थे.

अब तक की जानकारी के मुताबिक पुलिस की करीब 22 लोगों की टीम जब सीओ के नेतृत्व में विकास दुबे के घर पहुंची तो रात के करीब 12 बज रहे थे. हत्याओं का ये खूनी तांडव करीब एक घंटे तक चला. 1 बजकर 20 मिनट पर पुलिस की दूसरी टीम जब गांव पहुंची तो आठ पुलिसवालों की जान मौक़े पर ही जा चुकी थी.

गांव के बीचोंबीच विकास दुबे के घर के बाहर के चौक पर कई शहीद पुलिसवालों की लाशें एक के ऊपर एक पड़ी हुई थीं. आधा दर्जन से ज़्यादा पुलिसवाले ज़मीन पर पड़े तड़प रहे थे. जिन्हें कानपुर के रीजेंसी अस्पताल भेजा गया. इस बीच, इस जघन्य हत्याकांड की खबर सुनते ही कानपुर पुलिस के आला अधिकारी मौके पर पहुंचे. सुबह बदमाशों की खोज के लिए कांम्बिग और सर्च ऑपरेशन शुरू हुआ. इसमें कानपुर के एसएसपी घायल होते-होते बचे क्योंकि उन्होंने बुलेटप्रूफ जैकेट पहन रखी थी. आईजी कानपुर के भी कान के पास से गोली निकली.

बहरहाल, बेशक इस बेहद दुस्साहसिक वारदात के बाद प्रशासन विकास दुबे के ख़िलाफ़ अभियान चलाकर उसे मारे या पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दे, लेकिन 8 पुलिस वालों की हत्या की ये वारदात यूपी के अपराध के इतिहास में दशकों तक याद की जाती रहेगी जिसमें वर्दी को खून से रंगने की साज़िश का शक भी वर्दी पर ही उठ रहा है.

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