नई दिल्ली। ‘आज आधी कॉलोनी खत्म कर दी गई. अब कुछ नहीं बचा वहां…’
कालागढ़ निवासी रिंकू साह ने यह संदेश भेजा. इस छोटे से संदेश में केवल रिंकू साह का दर्द शामिल नहीं है. इसमें उन हजारों परिवार का दुख भी समाहित है जिनके घर तोड़े जा रहे हैं. जिन्हें सालों से आसरा रही जगह से बेदखल किया जा रहा है.
कालागढ़ देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में स्थित है, यूपी के बिजनौर से सटा कालागढ़, उत्तराखंड के पौड़ी जिले में आता है. यहां एशिया का सबसे बड़ा कच्चा बांध भी स्थित है. वर्ष 1962-63 में इस बांध का काम शुरू हुआ. जिस जमीन पर बांध बना वो वन विभाग की है. सिंचाई विभाग ने वन विभाग से जमीन लीज पर ली थी. लीज की शर्तों में ही था कि इस जमीन पर कोई भी निर्माण सीमेंट-बालू से नहीं होगा.
बांध बनाने के लिए देशभर से हजारों मजदूर, कर्मचारी और इंजीनियरों को कालागढ़ लाया गया. 1974 में बांध का काम पूरा हुआ. देशभर से आए कामगारों का एक बड़ा समूह यहीं बस गया. तीन कॉलोनियां आबाद हुईं जिन्हें केंद्रीय कॉलोनी, न्यू कॉलोनी और ओल्ड कॉलोनी कहते हैं.
स्थानीय लोगों के मुताबिक केंद्रीय और न्यू कॉलोनी में 1600 घर हैं. इन कॉलोनियों में कई सरकारी भवन जैसे पीएचसी, गढ़वाल विकास निगम गैस एजेंसी, विद्युत निगम, डाकघर, उपकोषागार और राम रहीम मिलन केंद्र धर्मशाला भी हैं. जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का एक हिस्सा केंद्रीय और न्यू कॉलोनी से सटा हुआ है. कुछ सालों पहले पार्क के कोर जोन में वन्यजीवन पर पड़ने वाले खलल को देखते हुए कॉलोनी खाली कराने की मांग उठी. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और 2013 में अदालत ने कॉलोनी को खाली कराने के आदेश दिए. पूरे मामले की देखरेख की जिम्मेदारी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को दी गई.
कोर्ट के आदेश के मुताबिक प्रशासन को न्यू और केंद्रीय कॉलोनियों में स्थित सरकारी भवनों और आवासों को ध्वस्त करके 21 सितंबर तक जमीन वन विभाग को सौंप देनी है और 24 सितंबर को एनजीटी में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करनी है.
कालागढ़ से आ रही खबरों के मुताबिक कॉलोनी में रह रहे परिवारों में जबरदस्त दहशत है. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वो जाएं तो जाएं कहां, करें तो करें क्या. प्रशासन पर आरोप लग रहा है कि वो कोर्ट के आदेश पर घर तो तोड़ रहा है लेकिन जिनके घर तोड़े जा रहे हैं उसके पुनर्वास का कोई इंतजाम नहीं है.
ब्रह्मानंद अपने परिवार के साथ ओल्ड कॉलोनी, कालागढ़ में रहते हैं. इनकी कॉलोनी सुरक्षित है. aajtak.in से फोन पर बात करते हुए ब्रह्मानंद ने प्रशासन पर बिना पुनर्वास के लोगों का घर तोड़ने का आरोप लगाया. वो कहते हैं, ‘सरकार ने कहा था कि सबका पुनर्वास होगा. किसी को भी बिना पुनर्वास के विस्थापित नहीं किया जाएगा लेकिन अभी तो कुछ नहीं हुआ है. लोग कहां जाएंगे इससे किसी को मतलब नहीं है. कोई देखने नहीं आ रहा है. वो तोड़ रहे हैं, बस. आप यह समझिए कि उन दो कॉलोनियों में लगभग एक अरब की संपत्ति का नुकसान हो रहा है.’
प्रशासन द्वारा बिना उचित पुनर्वास के घरों को तोड़ने की बात कोटद्वार (उत्तराखंड) में आज तक के संवाददाता गिरीश तिवारी भी मानते हैं. फोन पर हुई बातचीत में उन्होंने कहा कि प्रशासन की तरफ से इनके पुनर्वास के बारे में साफ-साफ कुछ भी नहीं कहा गया है.
aajtak.in ने पौड़ी के जिलाधिकारी (डीएम) सुशील कुमार से संपर्क किया. सुशील कुमार ने कहा कि इन कॉलोनियों में बहुत से घर गैर कानूनी तरीके से आबाद हुए हैं. ऐसे में उनके पुनर्वास का सवाल ही नहीं उठता. उन्होंने कहा, ‘करीब चार सौ परिवारों ने प्रशासन को बताया था कि हमारे पास रहने का कोई दूसरा स्थान नहीं है लेकिन जब प्रशासन ने जांच की तो पता चला कि ऐसे मात्र सौ घर हैं.’
जो रह रहे हैं उनका कहना है कि अगर हम गैर कानूनी तरीकों से रह रहे हैं तो हम वोट कैसे देते हैं? हमारे कागजात कैसे बनते गए. हमारे वोट से विधायक और सांसद कैसे बनते हैं? अगर हम वोट देते समय कानूनी थे तो आज एकदम से कैसे गैर कानूनी हो गए?
इन सवालों का जवाब जानने के लिए aajtak.in ने गढ़वाल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से वर्तमान सांसद और राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके भुवन चंद्र खंडूरी और इलाके के विधायक व उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत को फोन मिलाया लेकिन दोनों से ही संपर्क नहीं हो सका. अगर इन जनप्रतिनिधियों की तरफ से कोई प्रतिक्रिया आती है तो उसे खबर में अपडेट कर दिया जाएगा.