बॉलीवुड में गैंगस्टर फिल्मों का चलन 70 और 80 के दशक में शुरू हुआ था लेकिन असल जिदंगी के एनकाउंटर पर बनी फिल्मों को पटकथा लेखक व फिल्म निर्माता संजय गुप्ता ने सालों ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ और ‘शूटआउट एट वडाला’ बनाकर शुरू किया. ‘शूटआउट’ सीरीज के तीसरे भाग पर काम हो रहा है, लेकिन इससे पहले कि उनके पास एक गैंगस्टर ड्रामा है, जिसमें फिर से पुलिस मुठभेड़ दिखाई जाएगी, एनकाउंटर फिल्में इस समय बॉलीवुड में सबसे लोकप्रिय ट्रेंड में से एक है.
निखिल आडवाणी की ‘बाटला हाउस’ से 12 साल पहले, मई 2007 में ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ रिलीज हुई, जो एक बार फिर पुलिस मुठभेड़ के विषय पर आधारित है. ‘बाटला हाउस’ के निर्देशक आडवाणी ने बताया कि यह बदल गया है, बल्कि विकसित हुआ है, जिस तरह से सिनेमा विकसित हुआ है, पुलिस अब अधिक यथार्थवादी है और यह बाध्य ऐसा होने के लिए बाध्य है क्योंकि सभी पुलिस मुठभेड़ झूठे नहीं हैं, जैसा कि वे एक बार फिल्मों में प्रोजेक्ट किए गए थे. इन दिनों, पटकथा लिखने से पहले, हम अपना रिसर्च करते हैं ताकि हम अपनी कहानी में वास्तविक बातों को ला सकें. हम पुलिस मुठभेड़ पर कहानी लिखने से पहले एनकाउंटर विशेषज्ञों के साथ बातचीत करते हैं, हालांकि हम काल्पनिक चीजें करते हैं, लेकिन वे वास्तविकता से प्रेरित होते हैं. हां, समय के साथ यह बदल गया है लेकिन यह अच्छे के लिए है.
लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स शूटआउट मामला
2007 में जब गुप्ता ने ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ में एक पटकथा लेखक के रूप में योगदान दिया था, जो गैंगस्टर्स और मुंबई पुलिस के बीच 1991 में लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स शूटआउट पर आधारित थी, पुलिस द्वारा गैंगस्टर्स को पकड़ना नहीं बल्कि उन्हें मारने का विचार लोगों के लिए चौंकाने वाला था. गुप्ता ने बताया कि वह वास्तव में इस बात से प्रभावित थे कि कब और किसने तय किया था कि चलो पकड़ना नहीं है, चलो मार देते हैं. किसने उन्हें (पुलिस) जज, जूरी और जल्लाद बनाया. आजकल मुठभेड़ सुनते ही यह संदिग्ध मालूम पड़ने लगता है. मैं इस तथ्य से अधिक रोमांचित था कि 385 से अधिक पुलिसकर्मियों ने बच्चों, परिवारों से भरे पड़े एक इमारत को घेर लिया और (पुलिस) ने गोलीबारी कर दी और लोगों को मार डाला. फिल्म की सफलता के बाद, गुप्ता एक निर्देशक के रूप में ‘शूटआउट’ सीरीज से जुड़े.
‘अब तक छप्पन’ रही थी हिट
गुप्ता ने कहा कि यह मुंबई के पूरे इतिहास को छूता है. मुठभेड़ें उसका हिस्सा है. मुंबई में अधिकांश मुठभेड़ हुई हैं, इसलिए निश्चित रूप से 1980 और 1990 के दशक पर आधारित गैंगस्टर्स के बारे में एक फिल्म बनाना. मुठभेड़ को इसका अभिन्न अंग बाने देता है. उन्होंने ‘शूटआउट’ सीरीज का तीसरा भाग लाने का वादा किया. इस बीच इतने सालों में, विधा में कई अन्य प्रयास हुए हैं. गुप्ता की फिल्म से पहले भी कई बनाई गई थीं, जैसे 2002 में नसीरुद्दीन शाह अभिनीत ‘एनकाउंटर: द किलिंग. यह 2004 की नाना पाटेकर अभिनीत ‘अब तक छप्पन’ थी जिसने इस विधा में एक मानदंड स्थापित किया था.
क्या कहते हैं ट्रेंड एनालिस्ट
दिल्ली में 2008 के कथित पुलिस एनकाउंटर ऑपरेशन से प्रेरित ‘बाटला हाउस’ पहले ही अपने विवादास्पद विषय के साथ दर्शकों की दिलचस्पी बढ़ा चुकी है. आनंद पंडित, जिन्होंने ‘बाटला हाउस’ के लिए भारत भर में थिएट्रिकल राइट्स खरीदे हैं, उनका मानना है कि वास्तविकता से काल्पनिक एक आयाम है जो दर्शकों थिएटरों के लिए और भी अधिक आकर्षित करता है. फिल्म व व्यापार विशेषज्ञ गिरीश जौहर का कहना है कि एनकाउंटर फिल्में एक्शन शैली के तहत आती हैं, जो भारत में काफी सफल है.