बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सबसे पहले विपक्षी गठबंधन की पहल की थी. इंडिया की पहली मीटिंग भी पटना में हुई और नीतीश को लेकर पटना की सड़कों पर पोस्टर भी लगाए गए. लेकिन बाद में इंडिया गठबंधन की बैठक को दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने टेकओवर कर लिया. दोनों ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे करके कांग्रेस के साथ-साथ नीतीश को भी झटका दे दिया था.
कांग्रेस की क्या है मजबूरी?
दिल्ली में 19 दिसंबर को इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक हुई थी, जिसमें सीट शेयरिंग को लेकर आगे की चर्चा की जानी थी, जो अभी तक नहीं हुई है. सूत्रों ने बताया कि राहुल गांधी की न्याय यात्रा को लेकर ममता बनर्जी पहले ही नाराज है, क्योंकि उनको लगता है कि जिस तरह से इसका रूट पश्चिम बंगाल में रखा गया है, वह गठबंधन के नाते सही नहीं है. इसके बाद वह कांग्रेस को सिर्फ दो सीट देने के पक्ष में है. वहीं बिहार में जेडीयू-आरजेडी गठबंधन ने भी कांग्रेस को सिर्फ 5 सीट, उत्तर प्रदेश से अखिलेश यादव 2 सीट और महाराष्ट्र से 10 सीट इंडिया गठबंधन के दल कांग्रेस को देने के पक्ष में हैं.
आम आदमी पार्टी के साथ अभी कोई बात नहीं बनती दिख रही है, क्योंकि जिस तरह से भगवंत मान ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला है उसको देखकर गठबंधन आसान नहीं लगता. हालांकि राहुल गांधी पूरी तरह से राज्यों के दलों के साथ गठबंधन के पक्ष में हैं और उन्होंने जब राज्य पदाधिकारियों की बैठक बुलाई तो साफ कर दिया कि वह इस मामले में ज्यादा कुछ ना बोलें. कांग्रेस के नेता तो मान गए, लेकिन आप की तरफ से बयानबाजी अभी भी जारी है. वैसे भी पंजाब में कांग्रेस को हराकर ही आम आदमी पार्टी की सरकार बनी थी और अगर वह उसके साथ गठबंधन कर लेती है तो आने वाले समय में उसको नुकसान उठाना पड़ सकता है और यही बात आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल को भी पार्टी नेताओं ने बताई है.
अब नीतीश का नाम आगे क्योें?
अभी तक कुल 4 राज्यों ने कांग्रेस को 19 सीट देने का मन बनाया है. सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस के नेताओं से सीट शेयरिंग पर सही से बात नहीं बन रही और इसके लिए वह एक ऐसे नेता तलाश करने में लगे हैं जोकि क्षेत्रीय दलों के साथ उसकी बात को मनवाने में मदद कर सके और इसी कड़ी में नीतीश कुमार का नाम आगे आया. हालांकि इंडिया गठबंधन में नीतीश कुमार को संयोजक बनाने की बात सिर्फ दूसरी पंक्ति के नेता कर रहे हैं और अभी तक किसी बड़े नेता ने आकर इस मुद्दे पर कोई बयान नहीं दिया है.
इसके साथ ही सियासी गलियारों में खबर यह भी है कि नीतीश कुमार को संयोजक बनाने की खबर उसके बाद आई है, जब उन्होंने जेडीयू की कमान अपने हाथ में ले ली है. पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने नाम लेकर सीधा कांग्रेस पर हमला किया था और गठबंधन की सीट शेयरिंग की घोषणा से पहले ही उन्होंने सीतामढ़ी से अपना उम्मीदवार उतार दिया. जिसके बाद यह चर्चा भी तेजी से शुरू हो गई कि इंडिया गठबंधन से छिटककर नीतीश कुमार फिर से एनडीए में शामिल हो सकते हैं.
दवाब की राजनीति में माहिर नीतीश
नीतीश कुमार को दबाव की राजनीति के लिए भी जाना जाता है और यह काम करती भी दिख रही है. इसके पीछे एक कारण यह भी है कि मंदिर के मुद्दे पर बिहार में आरजेडी और जेडीयू में ठनी है. आरजेडी के नेता फतह बहादुर सिंह जिस तरह से देवी-देवताओं का अपमान करने में लगे हैं, जेडीयू ने प्रदेश में गठबंधन होने के बाद भी उनके खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है. नीतीश कुमार ने अभी तक कोई पत्ता नहीं खोला है, क्योंकि कहा जा रहा है कि वह अभी सियासी हवा को देख रहे हैं और उसके बाद ही कोई फैसला लेंगे.