लखनऊ। उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण एवं कल्याण) एक्ट 2021 का मसौदा तैयार करने में जुटे राज्य विधि आयोग को अधिकतर लोगों ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए सख्त कानून बनाने की सलाह दी है। मसौदे पर प्राप्त सुझावों के आधार पर आकलन करें तो बहुमत सख्त जनसंख्या कानून के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है। बड़ी संख्या में लोगों ने आयोग के प्रस्तावों से भी ज्यादा सख्त प्रावधानों की जरूरत बताई है।
आयोग ने प्रस्तावित मसौदे में वन चाइल्ड पॉलिसी को प्रोत्साहित करने तथा दो से ज्यादा बच्चों वाले माता-पिता को कुछ सरकारी सुविधाओं से वंचित करने का प्रावधान किया है। आयोग की वेबसाइट पर अपलोड किए गए मसौदे पर लगभग 8500 सुझाव प्राप्त हुए हैं, जिसमें 300 के करीब कानून के विरोध में हैं।
आठ हजार से ज्यादा सुझाव जनसंख्या कानून के पक्ष में हैं, जिसमें ऐसे सुझावों की संख्या ज्यादा है जो ज्यादा सख्त कानून के पक्ष में हैं। बहुत से लोग चाहते हैं कि दो से ज्यादा बच्चे वाले लोगों को आरक्षण से वंचित कर दिया जाए। इसी तरह कई लोगों ने दो से ज्यादा बच्चों के माता-पिता को मताधिकार से ही वंचित किए जाने का सुझाव दिया है।
राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एएन मित्तल ने कहा, “राज्य विधि आयोग को जनसंख्या नियंत्रण पर मसौदा विधेयक पर ईमेल के जरिये 8,500 प्रतिक्रियाएँ मिली हैं। उनमें से कुछ ने प्रस्तावित कानून की आलोचना की है और कुछ ने विधि आयोग द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की है।”
न्यायमूर्ति मित्तल ने कहा, “हमें जनसंख्या नियंत्रण पर मसौदा विधेयक के लिए बड़ी संख्या में सुझाव भी मिले हैं। आयोग सभी ईमेल डाउनलोड करेगा। हम सभी सुझावों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करेंगे। यदि वे व्यवहारिक व महत्वपूर्ण पाए जाते हैं तो जनसंख्या नियंत्रण पर मसौदा विधेयक तैयार करते समय उन्हें ध्यान में रखा जाएगा।” मसौदा विधेयक पर न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश के राजनीतिक दलों और यहाँ तक कि सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी थी।
आयोग ने अपने प्रस्ताव में दो से ज्यादा बच्चों के माता-पिता को केवल स्थानीय निकाय का चुनाव लड़ने से रोकने का प्रावधान किया है, जबकि प्राप्त सुझावों में यह प्रतिबंध विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी लागू किए जाने की जरूरत बताई गई है। इसी तरह कई लोगों ने दो से ज्यादा बच्चों के माता-पिता को मुफ्त राशन एवं अन्य सरकारी सुविधाएँ भी न देने का सुझाव दिया है। फिलहाल आयोग सभी प्राप्त सुझावों को श्रेणीवार बाँटकर उन पर विचार-विमर्श कर रहा है, जिसमें सुझाव से जुड़े विधिक पहलुओं को भी परखा जा रहा है। माना जा रहा है कि एक्ट का प्रारूप अगस्त माह में प्रदेश सरकार को सौंपा जा सकता है।