नई दिल्ली। देश के इतिहास में संभवत: यह पहला मौका है जब एक साथ तीन पड़ोसी देशों के साथ सैन्य तनाव चल रहा है। पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा पर लगातार स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है और तीन महीनों से अकारण ही पाकिस्तान की तरफ से किसी न किसी सेक्टर में गोलीबारी की जा रही है।
चीन के साथ लद्दाख से ले कर सिक्किम तक दोनो देशों की सेनाएं आमने-सामने
चीन के साथ खूनी सैन्य झड़प होना चिंताजनक है
भारतीय कूटनीतिकारों के मुताबिक चीन के साथ खूनी सैन्य झड़प होना कई मायने में चिंताजनक है। सबसे पहली बात तो यह है कि भारतीय सेना को अब पाकिस्तान से लगे पूर्वी पाकिस्तान की तरफ अब चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर भी ज्यादा सतर्क रहना होगा।
भारत व पाक सेना के बीच गोलाबारी आम बात है
भारत व पाक सेना के बीच गोलाबारी आम बात है और दोनों तरफ से सैन्यकर्मियों के लगातार हताहत होने की खबरें आती हैं। अभी तक चीन के सैनिकों के साथ भारत की सिर्फ हाथापाई होती रही है।
गलवन क्षेत्र में अंतिम बार खूनी झड़प 1975 में हुई थी
गलवन क्षेत्र में अंतिम बार खूनी झड़प 1975 में हुई थी जब चीन के सैनिकों ने छिप कर भारतीय सैन्य दल पर हमला किया था। तब असम राइफल्स के चार जवान शहीद हुए थे। दूसरी तरफ पूर्वोत्तर राज्यों के साथ चीन के साथ लगी सीमा पर वर्ष 1967 के बाद से कोई खूनी झड़प नहीं हुई है। चीन जिस तरह से समूचे पश्चिमी सेक्टर में आक्रामक होता जा रहा है उसे देखते हुए भारतीय सेना के रणनीतिकारों को अब ज्यादा सक्रिय प्लानिंग करनी होगी।
नेपाल को संभालने के लिए भारत को खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है
भारतीय विदेश मंत्रालय को आने वाले दिनों में नेपाल को संभालने के लिए भी खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है। नेपाल के पीएम के पी शर्मा ओली ने हाल के दिनों में भारत के विरोध मोर्चा खोल रखा है। कुछ लोग यह मानते हैं कि ओली ने जिस तरह से लिपुलेख व कालापानी के मुद्दे को हवा देनी शुरू की है उसके पीछे भी चीन का हाथ है। ओली अपने पहले कार्यकाल में भी और मौजूदा कार्यकाल में भी चीन के साथ नये समीकरण बनाने की कोशिश कर चुके हैं। दूसरी तरफ चीन व पाकिस्तान के बीच रिश्ता किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में भारतीय कूटनीति व रणनीतिकारों को अब चीन, पाकिस्तान के साथ ही नेपाल के त्रिकोण को लेकर सामूहिक नीति बनानी पड़ सकती है।