प्रवीण बागी
बेशक कोरोना ने सबको परेशान कर दिया है।लेकिन कोरोना काल में सब कुछ बुरा ही नहीं हो रहा, बहुत कुछ अच्छा भी हो रहा है। लेकिन एक तो सुकून देनेवाली खबरें ठीक से प्रसारित नहीं हो रही हैं और अगर हो भी रही हैं तो हम इतने उलझे हुए हैं कि उस तरफ ध्यान नहीं जाता। यह ठीक है कि कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन सुकून वाली बात यह है कि पश्चिमी देशों की तरह यहां इसने अभी जानलेवा रूप धारण नही किया है।
अन्तराष्ट्रीय स्तर पर 20 फीसदी मरीजों को अस्पताल में विशेष इलाज की जरूरत पड़ रही है। जबकि उनके यहां स्वास्थ्य सेवाएं हमशे काफी बेहतर हैं।
बिहार में जिन 7 मरीजों की मौत हुई है वे अनेक गंभीर बीमारियों से ग्रस्त थे और काफी दिनों से उनका इलाज चल रहा था। विशुद्ध कोरोना से उनकी मौत हुई ऐसा नहीं कहा जा सकता।
स्कूल का भवन और परिसर बुरे हाल में था। मजदूरों ने आग्रह कर चूना मंगवाया और पूरे भवन को चमका दिया। स्कूल परिसर की सफाई कर उसमें फूलों के पौधे लगा दिए। उसे बांस से घेर कर सुरक्षित कर दिया। कल मजदूर चले जायेंगे लेकिन उनका यह योगदान क्या गांववाले कभी भूल सकेंगे? अगर सचमुच आप इंसान हैं तो अपनी सुखद स्मृतियां छोड़ जाइये, जैसा गया के रेल कुलियों और बाल्मीकिनगर के मजदूरों ने किया। कोरोना तो चला जायेगा लेकिन ये स्मृतियां कभी नहीं जायेंगीं।
(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)