लखनऊ। बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के मामले में दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने सभी पांच आरोपियों को बरी कर दिया है. बता दें, 2005 में हुई इस हत्या का आरोप बसपा विधायक मुख्तार अंसारी, मुन्ना बजरंगी समेत 5 लोगों पर था. इसमें से मुन्ना बजरंगी की बीते दिनों जेल में हत्या कर दी गई थी.
इस मामले में कोर्ट का यह फैसला मुख्तार अंसारी के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है. मुख्तार अंसारी अपराध की दुनिया से राजनीति में आकर पूर्वांचल के रॉबिनहुड बन गए. हालांकि आज भी प्रदेश के माफिया और बाहुबली नेताओं में मुख्तार अंसारी का नाम पहले पायदान पर माना जाता है.
कौन हैं मुख्तार अंसारी
मुख्तार अंसारी का जन्म यूपी के गाजीपुर जिले में ही हुआ था. उनके दादा मुख्तार अहमद अंसारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे. जबकि उनके पिता एक कम्यूनिस्ट नेता थे. राजनीति मुख्तार अंसारी को विरासत में मिली. किशोरवस्था से ही मुख्तार निडर और दबंग रहे. उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा और सियासी राह पर चल पड़े. कॉलेज में उन्होंने एक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने के अलावा कुछ खास नहीं किया. लेकिन राजनीति विज्ञान के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर बी.बी. सिंह के मुताबिक वह एक आज्ञाकारी छात्र थे.
विकास के नाम पर बना था गैंग!
1970 में सरकार ने पिछड़े हुए पूर्वांचल के विकास के लिए कई योजनाएं शुरु कीं. जिसका नतीजा यह हुआ कि इस इलाके में जमीन कब्जाने को लेकर दो गैंग उभर कर सामने आए. 1980 में सैदपुर में एक प्लॉट को हासिल करने के लिए साहिब सिंह के नेतृत्व वाले गिरोह का दूसरे गिरोह के साथ जमकर झगड़ा हुआ. यह हिंसक वारदातों की श्रृंखला का एक हिस्सा था. इसी के बाद साहिब सिंह गैंग के ब्रजेश सिंह ने अपना अलग गिरोह बना लिया और 1990 में गाजीपुर जिले के तमाम सरकारी ठेकों पर कब्जा करना शुरू कर दिया. अपने काम को बनाए रखने के लिए बाहुबली मुख्तार अंसारी का इस गिरोह से सामना हुआ. यहीं से ब्रजेश सिंह के साथ इनकी दुश्मनी शुरू हो गई.
अपराध की दुनिया में कदम
1988 में पहली बार हत्या के एक मामले में मुख्तार अंसारी का नाम आया था. हालांकि उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत पुलिस नहीं जुटा पाई थी. लेकिन इस बात को लेकर वह चर्चाओं में आ गए थे. 1990 का दशक मुख्तार अंसारी के लिए बड़ा अहम था. छात्र राजनीति के बाद जमीनी कारोबार और ठेकों की वजह से वह अपराध की दुनिया में कदम रख चुके थे. पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर में उनके नाम का सिक्का चलने लगा था.
राजनीति में पहला कदम और गैंगवार
1995 में मुख्तार अंसारी ने राजनीति की मुख्यधारा में कदम रखा. 1996 में मुख्तार अंसारी पहली बार विधान सभा के लिए चुने गए. उसके बाद से ही उन्होंने ब्रजेश सिंह की सत्ता को हिलाना शुरू कर दिया. 2002 आते आते इन दोनों के गैंग ही पूर्वांचल के सबसे बड़े गिरोह बन गए. इसी दौरान एक दिन ब्रजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला कराया. दोनों तरफ से गोलीबारी हुई इस हमले में मुख्तार के तीन लोग मारे गए. ब्रजेश सिंह इस हमले में घायल हो गए थे. उसके मारे जाने की अफवाह थी. इसके बाद बाहुबली मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में अकेले गैंग लीडर बनकर उभरे. मुख्तार चौथी बार विधायक हैं.
ब्रजेश सिंह की वापसी
हालांकि बाद में ब्रजेश सिंह जिंदा पाए गए और फिर से दोनों के बीच झगड़ा शुरू हो गया. अंसारी के राजनीतिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए ब्रजेश सिंह ने भाजपा नेता कृष्णानंद राय के चुनाव अभियान का समर्थन किया. राय ने 2002 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मोहम्मदाबाद से मुख्तार अंसारी के भाई और पांच बार के विधायक अफजाल अंसारी को हराया था. बाद में मुख्तार अंसारी ने दावा किया कि कृष्णानंद राय ने ब्रजेश सिंह के गिरोह को सरकारी ठेके दिलाने के लिए अपने राजनीतिक कार्यालय का इस्तेमाल किया और उन्हें खत्म करने की योजना बनाई.
मुस्लिम वोट का सहारा और गिरफ्तारी
मुख्तार अंसारी ने गाजीपुर और मऊ क्षेत्र में चुनाव के दौरान उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए मुस्लिम वोट बैंक का सहारा लिया. उनके विरोधियों ने जाति के आधार पर विभाजित हिंदू वोटों को एकजुट करने की कोशिश की. इसके बाद पूर्वांचल में कई आपराधिक घटनाएं और सांप्रदायिक हिंसा की वारदात हुईं. ऐसे ही एक दंगे के बाद मुख्तार अंसारी पर लोगों को हिंसा के लिए उकसाने के आरोप लगे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
कृष्णानंद राय हत्याकांड और आपराधिक मामले
मुख्तार अंसारी जेल में बंद थे. इसी दौरान बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय को उनके 6 अन्य साथियों को सरेआम गोलीमार हत्या कर दी गई. हमलावरों ने 6 एके-47 राइफलों से 400 से ज्यादा गोलियां चलाई थीं. मारे गए सातों लोगों के शरीर से 67 गोलियां बरामद की गई थीं. इस हमले का एक महत्वपूर्ण गवाह शशिकांत राय 2006 में रहस्यमई परिस्थितियों में मृत पाया गया था. उसने कृष्णानंद राय के काफिले पर हमला करने वालों में से अंसारी और बजरंगी के निशानेबाजों अंगद राय और गोरा राय को पहचान लिया था.
कृष्णानंद राय की हत्या के बाद मुख्तार अंसारी का दुश्मन ब्रजेश सिंह गाजीपुर-मऊ क्षेत्र से भाग निकला था. 2008 में उसे उड़ीसा से गिरफ्तार किया गया था. 2008 में अंसारी को हत्या के एक मामले में एक गवाह धर्मेंद्र सिंह पर हमले का आरोपी बनाया गया था हालांकि बाद में पीड़ित ने एक हलफनामा देकर अंसारी के खिलाफ कार्यवाही रोकने का अनुरोध किया था. 2012 में महाराष्ट्र सरकार ने मुख्तार पर मकोका लगा दिया था. उनके ख़िलाफ़ हत्या, अपहरण, फिरौती सहित जैसे कई आपराधिक मामले दर्ज हैं.
बसपा के साथ सफर
2007 में मुख्तार अंसारी और उनके भाई अफजाल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में शामिल हो गए. उन दोनों को पार्टी में आने की इजाजत इसलिए मिली क्योंकि उन्होंने दावा किया था कि वे झूठी ‘सामंती व्यवस्था’ के खिलाफ लड़ रहे थे और इसी वजह से उन्हें आपराधिक मामलों में फंसाया गया था. उन्होंने किसी आपराधिक गतिविधि में भाग लेने से परहेज करने का वादा भी किया था. बसपा प्रमुख मायावती ने रॉबिनहुड के रूप में मुख्तार अंसारी को प्रस्तुत किया और उन्हें गरीबों का मसीहा भी कहा था. मुख्तार अंसारी ने जेल में रहते हुए बसपा के टिकट पर वाराणसी से 2009 का लोकसभा चुनाव लड़ा मगर वह भाजपा के मुरली मनोहर जोशी से 17,211 मतों के अंतर से हार गए. उन्हें जोशी के 30.52% मतों की तुलना में 27.94% वोट हासिल हुए थे.
बसपा से निष्कासन
2010 में अंसारी पर राम सिंह मौर्य की हत्या का आरोप लगा. मौर्य, मन्नत सिंह नामक एक स्थानीय ठेकेदार की हत्या का गवाह था. जिसे कथित तौर पर 2009 में अंसारी के गिरोह ने मार दिया था. जब पार्टी को अहसास हुआ कि मुख्तार और उनके भाई अब भी आपराधिक गतिविधियों में शामिल हैं तो दोनों भाइयों को 2010 में बसपा से निष्कासित कर दिया गया.
कौमी एकता दल का गठन
बसपा से निष्कासित कर दिए जाने के बाद दोनों भाइयों को अन्य राजनीतिक दलों ने अस्वीकार कर दिया. तब तीनों अंसारी भाइयों मुख्तार, अफजाल और सिगब्तुल्लाह ने 2010 में खुद की राजनीतिक पार्टी कौमी एकता दल (QED) का गठन किया. इससे पहले मुख्तार ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पार्टी नामक एक संगठन शुरू किया था. जिसका विलय QED में कर दिया गया था. मार्च 2014 में अंसारी ने घोसी के साथ-साथ और वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की थी. हालांकि चुनाव के पहले उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस लेते हुए कहा था कि उन्होंने धर्मनिरपेक्ष वोट का विभाजन रोकने के लिए ऐसा किया है.
लोग कहते हैं गरीबों का मसीहा
मुख्तार अंसारी विधान सभा सदस्य के तौर पर मिलने वाली विधायक निधि से 20 गुना अधिक पैसा अपने निर्वाचन क्षेत्र में खर्च करते रहे हैं. उन्होंने मऊ और अन्य क्षेत्रों में विकास के कई बड़े काम करवाए हैं. मुख्तार ने बतौर विधायक क्षेत्र में सड़कों, पुलों, और अस्पतालों के अलावा एक खेल स्टेडियम का निर्माण भी कराया है. साथ ही वे अपनी निधि का 30% निजी और सार्वजनिक स्कूलों और कॉलेजों पर भी खर्च करते आए हैं. पूर्वांचल के एक लेखक गोपाल राय के मुताबिक अंसारी ने व्यक्तिगत रूप से उनके बेटे को एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनाने में कैसे उनकी की मदद की वे कभी नहीं भूल सकते. ऐसे ही एक और आदमी की पत्नी के दिल का ऑपरेशन के लिए उन्होंने सारा पैसा दिया था. मुख्तार अंसारी का पूरा परिवार क्षेत्र में होने वाली गरीबों की बेटियों की शादी के लिए दहेज का पूरा भुगतान करते हैं.
मुख्तार की हत्या के लिए 6 करोड़ की सुपारी
बाहुबली मुख्तार अंसारी की हत्या के लिए एक बड़ी साजिश रची गई थी. जिसका खुलासा 2014 में हुआ. ब्रजेश सिंह ने अंसारी को मारने के लिए लंबू शर्मा को 6 करोड़ रुपये की सुपारी दी थी. ये अहम खुलासा लंबू शर्मा की गिरफ्तारी के बाद हुआ था. इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जेल में अंसारी की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी. सुपारी के खुलासे के बाद पूर्वांचल में यूपी पुलिस क्राइम ब्रांच और स्पेशल टास्क फोर्स ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी थी. अभी भी पेशी पर या विधानसभा सत्र के लिए जाते समय मुख्तार की सुरक्षा बहुत कड़ी रखी जाती है.
2005 में किया था आत्मसमर्पण
अंसारी के राजनीतिक कैरियर को कानूनी उथल पुथल ने हिलाकर रख दिया था. अक्टूबर 2005 में मऊ में भड़की हिंसा के बाद उन पर कई आरोप लगे. जिन्हें खारिज कर दिया गया था. उसी दौरान उन्होंने गाजीपुर पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था. वे तभी से जेल में बंद हैं. पहले उन्हें गाजीपुर से मथुरा जेल भेजा गया था. लेकिन बाद में उन्हें आगरा जेल में भेज दिया गया था. लेकिन उसके बाद उन्हें लखनऊ जेल में शिफ्ट कर दिया गया था. लेकिन उनके जेल जाने से पूर्वांचल में उनका प्रभाव कम नहीं हुआ.
चुनाव और जीत
मुख्तार अंसारी ने दो बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और दो बार निर्दलीय. उन्होंने जेल से ही तीन चुनाव लड़े हैं. पिछला चुनाव उन्होंने 2012 में कौमी एकता दल से लड़ा और विधायक बने. वह लगातार चौथी बार विधायक हैं. पूर्वांचल में उनका काम उनके भाई और बेटे संभाल रहे हैं. उनकी राजनीतिक विरासत को भी उनके बेटे आगे बढ़ा रहे हैं.