नई दिल्ली। कोलकाता के ऐतिहासिक ब्रिगेड परेड ग्राउंड में विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन के बाद, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के गढ़ में दस्तक देने जा रहे हैं. पिछले कुछ समय से बीजेपी पश्चिम बंगाल में बेहद आक्रामक रही है और खुद को मुख्य विपक्षी दल के तौर पर राज्य में स्थापित भी किया है. दरअसल आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए जो योजना बनाई है उसमें देश के पूर्वी हिस्से के राज्यों की अहम भूमिका है. राजनीतिक विमर्शों में बीजेपी के इस अभियान को लुक-ईस्ट रणनीति कहा जा रहा है.
बीजेपी ने क्यों बदली रणनीति?
साल 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी की चुनावी रणनीति में उत्तर भारत प्रमुखता से था और वाराणसी इसका केंद्र था. इन चुनावों में बीजेपी ने उत्तर और पश्चिम भारत से सबसे ज्यादा सीटें जीती थीं. लेकिन 2019 में बदले सियासी समीकरण में बीजेपी अपनी रणनीति बदलते हुए दिख रही है और पार्टी ने अपना ध्यान पूर्वी और पूर्वोत्तर के राज्यों पर केंद्रित किया है. हालांकि उत्तर भारत या हिंदी पट्टी के राज्यों से अभी भी बीजेपी को सबसे ज्यादा सांसदों के जीतने की उम्मीद है. लेकिन 2014 में अपने प्रदर्शन के चरम पर पहुंचने वाली बीजेपी भी जानती है कि 2019 में इस प्रदर्शन को दोहराना मुश्किल है.
लोकसभा चुनाव में हार के बाद एक के बाद एक कई राज्यों में हार चुकी कांग्रेस पार्टी ने पिछले एक साल में जबरदस्त वापसी की है. इसका जीता जागता उदाहरण मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत है. सीटों के लिहाज से देश सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में 2 बड़े क्षेत्रीय दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के ऐलान के बाद बीजेपी के लिए राजनीतिक हालात मुश्किल हुए हैं. पश्चिम भारत के महाराष्ट्र और गुजरात में भी बीजेपी पिछले चुनाव में अपने चरम पर थी. लेकिन महाराष्ट्र में बीजेपी की सहयोगी शिवसेना आए दिन आंखें दिखा रही है तो वहीं गुजरात में कांग्रेस पिछले 2 दशक में सबसे मजबूत स्थिति में खड़ी है. लिहाजा बीजेपी के लिए यहां भी अपना प्रदर्शन दोहराना मुश्किल होता दिख रहा है.
दक्षिण भारत की बात करें तो पिछले आम चुनाव में टीडीपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी बीजेपी को गैर विभाजित आंध्र प्रदेश में गठबंधन का फायदा मिला था. लेकिन अब टीडीपी बीजेपी के साथ नहीं है. तेलंगाना और तमिलनाडु में बीजेपी अभी भी कोई जगह नहीं बना पाई है. बीजेपी ने थोड़ी-बहुत पकड़ केरल में जरूर मजबूत की है और यहां पार्टी 1-2 सीट जीतने की उम्मीद कर सकती है. लिहाजा दक्षिण भारत में कुल मिलाकर कर्नाटक ही ऐसा राज्य है जहां बीजेपी की पकड़ मजबूत है लेकिन यहां भी पार्टी का मुकाबला एकजुट कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन से होना है.
क्या है बीजेपी का लुक-ईस्ट प्लान?
देश का वो हिस्सा जहां से बीजेपी उत्तर और पश्चिम भारत में होने वाले संभावित चुनावी नुकसान की भरपाई कर सकती है, वो पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत ही है. पूर्वी भारत में पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार और झारखंड को मिलाकर लोकसभा की कुल 117 सीटें हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए ने इसमें से 46 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जिसमें बीजेपी की 37 सीटें थी. लेकिन इनमें से अधिकतर सीटें बिहार और झारखंड से थीं. जबकि पश्चिम बंगाल और ओडिशा की 63 सीटों में से बीजेपी/एनडीए मात्र 3 सीटें जीतने में कामयाब रही. इन राज्यों क्षेत्रीय क्षत्रप मजबूत हैं, इसलिए आगामी लोकसभा चुनाव में यहां बीजेपी/एनडीए और क्षेत्रीय दलों के बीच ही मुकाबला होगा.
बिहार की बात करें तो पिछले चुनाव में बीजेपी ने यहां 22 सीटें जीती थीं, जबकि एनडीए का आंकड़ा 31 था. साल 2014 में बिहार में त्रिकोणीय मुकाबला था. लेकिन 2019 से पहले यूपीए का खेमा बढ़ा है और एनडीए की साथी आरएलएसपी यूपीए में शामिल हुई है. लिहाजा आगामी चुनाव में मुकाबला त्रिकोणीय होने के बजाए यूपीए और एनडीए के बीच सीधी टक्कर का है. झारखंड की 14 सीटों में बीजेपी का 12 सीटों पर कब्जा है और राज्य में बीजेपी की सरकार है. राज्य बनने के बाद यह पहली सरकार होगी जो बिना भ्रष्टाचार के आरोपों के अपना कार्यकाल पूरा करेगी. लिहाजा यहां पर बीजेपी अपनी स्थिति बरकरार रखना चाहेगी.
पश्चिम बंगाल की बात करें तो यह वो राज्य है जहां से बीजेपी को सबसे ज्यादा उम्मीद है. बीजेपी पिछले कुछ वर्षों से यहां की राजनीति में आक्रामक रही है और कांग्रेस व सीपीएम को पीछे छोड़ते हुए यहां के जनमानस में मुख्य विपक्षी दल की छवि बनाने में कामयाब रही है. मिशन 2019 के तहत बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने यहां की 42 सीटों में से 22 सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है. कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि असम में बीजेपी के लिए जो काम हेमंत बिस्व शर्मा ने किया, ठीक वैसा ही टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए मुकुल राय पश्चिम बंगाल में कर सकते हैं. पिछले लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय चुनावों में पश्चिम बंगाल में बीजेपी का ग्राफ तेजी से बढ़ा है.
बंगाल के बाद ओडिशा की बात करें तो यहां की 21 सीटों में से 20 पर बीजू जनता दल (बीजेडी) और बीजेपी के पास मात्र एक सीट है. 2019 का चुनाव पिछले 19 साल में पहला मौका होगा जब बीजेडी के खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल बना है. राज्य में अब इस तरह की चर्चा होने लगी है कि लंबे समय से राज करने के चलते हर स्तर पर भ्रष्टाचार बढ़ा है. जबकि बीजेडी के कुछ बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. ओडिशा में लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस की गिनती अब तीसरे पायदान की पार्टी के तौर पर की जाने लगी है. ऐसे में बीजेपी के लिए ओडिशा में विस्तार का सबसे अच्छा मौका यही है. बीजेपी ने पिछले कुछ साल में ओडिशा में खुद को स्थापित करने के लिए कड़ी मेहनत की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अब तक कुल 4 बार राज्य का दौरा कर चुके हैं.
वहीं इस तरह की चर्चा है जोरों पर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगला चुनाव ओडिशा की धार्मिक राजधानी पुरी से लड़ सकते हैं. बीजेपी के नेताओं का मानना है कि इसका प्रभाव ओडिशा से सटे राज्यों पर वैसे ही पड़ेगा जैसा उत्तर प्रदेश के वाराणसी से चुनाव लड़ने पर 2014 में पड़ा था.
पूर्वी भारत के बाद बात आती है पूर्वोत्तर भारत की. कुछ साल पहले तक देश का यह इलाका त्रिपुरा को छोड़कर कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, जबकि त्रिपुरा वाम दलों का किला था. लेकिन पिछले 4 साल में बीजेपी इस क्षेत्र में कड़ी मेहनत के जरिए कांग्रेस और वाम दलों को उखाड़ फेंकने में कामयाब रही. पूर्वोत्तर के 8 राज्यों में कुल मिलाकर 25 सीटें हैं, जिसमें सबसे ज्यादा 13 सीटें असम में हैं. तो वहीं यहां के क्षेत्रीय दलों को साधने के लिए कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे हेमंत बिस्व शर्मा के नेतृत्व में एनडीए की तर्ज पर नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) बनाया है. माना जाता है कि पूर्वोत्तर में बीजेपी के विस्तार में NEDA की अहम भूमिका रही. केंद्र की मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर में विकास के लिए कई अहम कदम उठाए हैं. अब समय इस फसल को काटने का है.
इस लिहाज से यदि पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत की 142 सीटों पर बीजेपी की लुक-ईस्ट रणनीति कामयाब होती है, तो इससे देश के अन्य हिस्सों में होने वाले नुकसान की भरपाई हो सकती है. वहीं साल 2019 का नतीजा आने पर अगर कुछ और दल एनडीए का हिस्सा बनते हैं तो उसे बहुमत का जादुई आंकड़ा पाने में आसानी होगी.