नई दिल्ली। सभी धर्मों के सामान्य वर्ग के गरीब नागरिकों को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए संविधान में लाया गया संशोधन बिल लोकसभा में पास हो गया है. लोकसभा में बिल पर कुल 326 सांसदों ने मतदान किया, जिनमें से 323 ने संशोधन का समर्थन किया, जबकि 3 सांसदों ने बिल का विरोध किया. यानी सवर्णों को आरक्षण देने वाला संशोधन बिल लोकसभा में उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई से ज्यादा बहुमत से पास हो गया. अब यह बिल राज्यसभा में पेश किया जाएगा.
सरकार का मानना है कि संविधान में संशोधन किए जाने से इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देना आसान नहीं होगा. कुछ विपक्षी दल जहां यह आदेश सुप्रीम कोर्ट में खारिज होने का दावा कर रहे हैं, वहीं सरकार को उम्मीद है कि इस कानून के खिलाफ जाने वालों को कोर्ट नकार देगी. लेकिन मोदी सरकार के इस फैसले के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं. इस तरह के सवाल भी उठ रहे हैं कि आखिर संसद के आखिरी सत्र के आखिरी दिनों में ही यह क्यों लाया गया?
सवर्ण आरक्षण और सियासी समीकरण
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली 282 सीटों में 256 सीटें 14 राज्यों से मिली थीं. इन 14 राज्यों में लोकसभा की 341 सीटें हैं, जिनमें से करीब 180 सीटों पर सवर्ण वोटर निर्णायक हैं. महाराष्ट्र में करीब 25 सीट, हरियाणा, दिल्ली और उत्तराखंड की 5-5 सीट, हिमाचल की 4 सीट पर सवर्ण वोटर निर्णायक हैं. बात गुजरात की करें तो यहां 12, एमपी की 14, राजस्थान की 14, बिहार की करीब 20 सीट और झारखंड की 6 सीट पर इसका असर पड़ता है. अकेले यूपी में 35 से 40 सीटें ऐसी हैं, जहां सवर्ण वोटर किसी की जीत या हार तय करते हैं. ऐसे में 2019 के आम चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार का यह मास्टरस्ट्रोक विपक्षी एकजुटता के लिए हानिकारक भी साबित हो सकता है और बीजेपी की विजयी रथ को फिर से परवाज मिल सकती है.
किसे, कितना आरक्षण
इस सब के बीच यह समझ लेते हैं कि देश में अब तक आरक्षण पाने वालों की स्थिति क्या है और नई आरक्षण नीति लागू होने पर कितने लोगों को इसका लाभ मिल पाएगा.
देश में 16.6 फीसदी अनुसूचित जाति (SC) आबादी है, जिसे 15% आरक्षण मिलता है. जबकि 8.6 फीसदी अनुसूचित जनजाति (ST) आबादी है जिसे 7.5 फीसदी आरक्षण मिलता है. देश में करीब 41% अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आबादी है, जिसे 27% आरक्षण मिलता है. इनके अलावा करीब 34 फीसदी लोग वो हैं, जो सामान्य श्रेणी में आते हैं और फिलहाल आरक्षण की व्यवस्था से बाहर हैं और मोदी सरकार ऐसे ही सामान्य श्रेणी वाले गरीबों के लिए 10 फीसदी आरक्षण ला रही है, जिन्हें अभी तक कोई फायदा नहीं मिलता है. यानी मोदी सरकार का यह फैसला अगर लागू हो जाता है, इसका लाभ पाने वाला देश का एक बड़ा वर्ग होगा. दिलचस्प बात ये है कि मोदी सरकार ने धर्म और जाति की सीमाओं को तोड़ते हुए फायदा पहुंचाने का फैसला लिया, जो चुनावी दृष्टिकोण से मील का पत्थर साबित हो सकता है.
देश में आरक्षण की व्यवस्था आजादी के बाद से ही चली आ रही है. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की व्यवस्था के बाद 1990 में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया गया. इसके बाद आर्थिक तौर पर पिछड़े समाज की पहचान और उसे आरक्षण का लाभ देने की कोशिश शुरू हुई. इसी के तहत जुलाई 2006 में मेजर जनरल रिटायर्ड एसआर सिन्हा की अध्यक्षता में EBC कमीशन बनाया गया. इसका काम EBC यानी आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग की पहचान करने और उनकी दशा देखकर सिफारिश करने का था. एसआर सिन्हा कमीशन ने 2010 में दी अपनी रिपोर्ट में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बारे में जानकारी दी.
सिन्हा कमीशन की रिपोर्ट….
-टैक्स भरने तक की कमाई ना कर पाने वाले सवर्णों को OBC की तरह से देखना चाहिए.
-5 से 6 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें SC-ST के जैसे आरक्षण मिलना चाहिए.
-आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस वर्ग को आरक्षण सहित 14 सिफारिशें की थी.
-खास तौर पर सवर्ण जातियों के लिए नौकरी-कॉलेज में आरक्षण देने की सिफारिश थी.
-आरक्षण न पाने वाले आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग की आबादी करीब 17% है.
-आर्थिक पिछड़ों में 18 फीसदी ऐसे हैं, जो गरीबी रेखा से नीचे हैं.
-सवर्ण जातियों में करीब 6 फीसदी ऐसे लोग हैं, जिनके पास कोई ज़मीन तक नहीं है.
-करीब 65 फीसदी ऐसे लोग हैं, जिनके पास एक हेक्टेअर से भी कम ज़मीन है.
रिपोर्ट के मुताबिक, दलित और आदिवासी के बराबर ऐसी सवर्ण आबादी है, जो गरीबी रेखा से नीचे है. ऐसे में अगर इन आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए मोदी सरकार का यह फैसला देश के एक बड़े तबके को साधने में सहयोग कर सकता है, जो 2019 चुनाव के मद्देनजर काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.