नई दिल्ली। सवर्णों को आरक्षण देने के लिए सरकार ने लोकसभा में संविधान संशोधन बिल पेश कर दिया है. इस पर शाम 5 बजे से बहस शुरू हो गई. इस पर बहस में सरकार को कई छोटे और अहम दलों ने समर्थन दिया है. इनमें एनसीपी, एसपी, एनसीपी, बीएसपी जैसे दल शामिल हैं. हालांकि कांग्रेस और एआईएमआईएम जैसे दलों का रुख साफ नहीं है. इस मुद्दे पर होने वाली बहस में सरकार की ओर से अरुण जेटली, निशिकांत दुबे और नंद किशोर चौहान हिस्सा लेंगे.
इस पर बहस शुरू करते हुए केंद्रीय मंत्री थावरचंद्र गहलोत ने कहा, निजी शिक्षण संस्थानों में भी ये आरक्षण लागू होगा. इसके साथ ही उन्होंने इस पर सभी दलों का समर्थन मांगा. उन्होंने कहा, जो आरक्षण है, उसमें कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी. इसके बाद कांग्रेस के नेता केवी थॉमस ने चर्चा में हिस्सा लिया. उन्होंने कहा, हम इस बिल के खिलाफ नहीं हैं. लेकिन इससे पहले इस बिल को जेपीसी में भेजो. कांग्रेस के सवालों का जवाब केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दिया. उन्होंने इसे जुमला कहने वालों पर हमला बोलते हुए कहा, सवर्णों को आरक्षण देने के जुमले को सभी दलों ने अपने अपने घोषणा पत्र में रखा. उन्होंने कहा, आर्थिक आधार पर आरक्षण मिलना चाहिए.
अरुण जेटली ने कहा, ये सही है कि इससे पहले जो भी कोशिशें हुईं वह सुप्रीम कोर्ट में नहीं ठहर पाईं. सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी की सीमा लगाई, ये सीमा 16 ए के संबंध में थी. कांग्रेस को जवाब देते हुए जेटली ने कहा, आपने आरोप लगाया कि ये बिल आप अभी क्यों लाए. तो आपको पटेलों के लिए आरक्षण गुजरात चुनाव से पहले क्यों याद नहीं आया. अरुण जेटली ने कांग्रेस को घोषणा पत्र के वादे को याद दिलाते हुए इस संशोधन का समर्थन करने की अपील की.
चर्चा में हिस्सा लेते हुए एम थंबीदुरई ने कहा, गरीबों के लिए चलाई जा रहीं कई स्कीम पहले से ही फेल हो चुकी हैं. आप जो ये बिल ला रहे हैं, वह सुप्रीम कोर्ट में फंस जाएगा.
टीएमसी के सांसद सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा, सरकार इसी तरह महिलाओं के आरक्षण का बिल लेकर क्यों नहीं आती. सरकार का ये बिल लोगों को धोखा देने के समान है.
बता दें कि केंद्रीय कैबिनेट ने सोमवार को सवर्ण जातियों के गरीबों के लिए शिक्षा और रोजगार में 10 प्रतिशत का आरक्षण देने का फैसला किया है. लेकिन इस फैसले को लागू करने के लिए सरकार को संविधान में संशोधन करना होगा क्योंकि प्रस्तावित आरक्षण अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) को मिल रहे आरक्षण की 50 फीसदी सीमा के अतिरिक्त होगा, यानी ‘‘आर्थिक रूप से कमजोर’’ तबकों के लिए आरक्षण लागू हो जाने पर यह आंकड़ा बढकर 60 फीसदी हो जाएगा.
इस प्रस्ताव पर अमल के लिए संविधान संशोधन विधेयक संसद से पारित कराने की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है. इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में जरूरी संशोधन करने होंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी 50 फीसदी की सीमा…
विधेयक एक बार पारित हो जाने पर संविधान में संशोधन हो जाएगा और फिर सामान्य वर्गों के गरीबों को शिक्षा एवं नौकरियों में आरक्षण मिल सकेगा. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में अपने फैसले में आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा तय कर दी थी. सरकारी सूत्रों ने बताया कि प्रस्तावित संविधान संशोधन से अतिरिक्त कोटा का रास्ता साफ हो जाएगा. सरकार का कहना है कि यह आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर ऐसे लोगों को दिया जाएगा जो अभी आरक्षण का कोई लाभ नहीं ले रहे.