भारतीयों के रंग रूप की तुलना चीनियों और अफ्रीकियों से करने वाले सैम पित्रोदा अक्सर कॉन्ग्रेस का महिमामंडन करने में कुछ न कुछ अनाप-शनाप बोल ही जाते हैं। लोग उन्हें कभी बड़बोला बोलते हैं तो कभी कॉन्ग्रेस पार्टी का सबसे बड़ा चमचा कहते हैं। इसके अलावा आधिकारिक तौर पर उनकी पहचान आज के समय में इंडियन ओवरसीज कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर होती है। लेकिन असल में सैम पित्रोदा हैं कौन और कैसे वो कॉन्ग्रेस पार्टी में आए… आइए इसे बताते हैं।
खुद को सैम पित्रोदा बताने वाले कॉन्ग्रेस नेता का असली नाम सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा है जिन्होंने अमेरिका में पैसे कमाने के लिए अपने भारतीय नाम को त्यागा था और इसका जिक्र वो एक इंटरव्यू में भी कर चुके हैं। उन्होंने गुजरात से फिजिक्स और इलेक्ट्रॉनिक्स में ग्रेजुएशन करने के बाद और अमेरिका में मास्टर्स की थी और फिर 1965 से टेलिकॉम इंडस्ट्री में हाथ आजमाया। इसके बाद 1975 में उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक डायरी का आविष्कार किया था।
कॉन्ग्रेस से कैसे जुड़े सैम पित्रोदा
अपना काम भारत में भी एक्सपैंड करने की चाह में सैम पित्रोदा ने अपने दोस्त से कहकर इंदिरा गाँधी के साथ अपनी मीटिंग फिक्स करवाई थी। इस मीटिंग के लिए उन्होंने अपनी प्रेजेंटेशन भी तैयार रखी थी लेकिन किसी कारणवश जब इंदिरा गाँधी उनसे मिलने में लेट हो गईं तो उनकी मुलाकात राजीव गाँधी से हुई।
इस दौरान पित्रोदा ने राजीव गाँधी को ग्रामीण दूरसंचार, डिजिटल स्विचिंग के बारे में थोड़ा बताया और तब राजीव गाँधी को यह विचार आया कि टेलीफोन की तादाद बढ़ाने के बजाय उसकी पहुँच पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। उन्होंने तब इंदिरा गाँधी से कहा कि हमें प्रौद्योगिकी को डिजिटल बनाने की जरूरत है और इसके लिए कुछ दूसरे देशों से नहीं खरीदना होगा। हमारे देश में खुद इतना टैलेंट है।
राजीव गाँधी ने अपनी सरकार में पित्रोदा को अपना सलाहकार बनाया गया। भारत में इंफोर्मेशन इंडस्ट्री में बदलाव के लिए दोनों मिलकर काम किया। राजीव ने उन्हें टेलीकॉम, वाटर, शिक्षा जैसे छह टेक्नोलॉजी मिशन का हेड बनाया था। बाद में राजीव गाँधी की हत्या हुई तो सैम पित्रोदा फिर अमेरिका लौट गए। उन्होंने एक बार फिर से शिकागो से अपने काम की शुरुआत की और कई कंपनियों को लॉन्च किया। 1995 में सैम पित्रोदा को इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन WorldTel इनिशिएटिव का पहना चेयरमैन बनाया गया।
भारत में उनकी वापसी तब हुई जब 2004 में कॉन्ग्रेस की सरकार बनी। तत्कालीन पीएम मनमोहन ने सैम पित्रोदा को फिर से भारत आने का न्योता दिया। इसके बाद मनमोहन सरकार ने उन्हें नेशनल नॉलेज कमीशन का अध्यक्ष बनाया। 2009 में जब यूपीए सरकार आई तो सैम पित्रौदा को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का सलाहकार बनाया गया।
इसके बाद मोदी सरकार 2014 में आई और सैम पित्रोदा कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी की छवि बनाने में लग गए। उन्हें कई बार राहुल गाँधी के साथ विदेशों में भी देखा गया और उन्हें सलाह देते हुए भी। कई मौके ऐसे भी आए जब उनकी चर्चा विवादित बयानों के कारण से हुई।
उनका सबसे विवादित बयान 2019 में सामने आया था। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए सिख दंगों के लिए कहा था- “अब क्या है 84 का? भाजपा ने 5 साल में क्या किया, उसकी बात करे। 84 हुआ तो हुआ, आपने क्या किया?” पित्रोदा ने इस बयान पर बाद में माफी जरूर माँगी थी लेकिन उनकी भाषा के कारण लोग अब भी उनपर सवाल उठाते हैं।
इसी तरह पित्रोदा ने पाकिस्तान के बालाकोट में भारतीय सेना द्वारा की गई एयरस्ट्राइक का भी विरोध किया था। पित्रोदा ने कहा था कि मुंबई में भी हमला हुआ था और हमारी सरकार भी तब प्रतिक्रिया दे सकती थी और अपने विमान भेज सकती थी, लेकिन यह सही दृष्टिकोण सही नहीं है। उन्होंने कहा कि यह गलत है कि कुछ लोगों की गलती के चलते हम पाक के प्रत्येक नागरिक को दोषी ठहराएँ।
इसके बाद कुछ दिन पहले पित्रोदा ने अमेरिका में लागू विरासत टैक्स तो भारत में शुरू करने की बात कहकर कॉन्ग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी और अब उन्होंने भारत की विविधता पर बात करते हुए भारत के लोगों की तुलना दूसरे देशों के लोगों से करके विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने साफ तौर पर पूर्वोत्तर के लोगों को चीनी जैसा कहा और साउथ के लोगों को अफ्रीकनों के समान।