कांग्रेस पार्टी ने अपने पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को अमेठी की जगह रायबरेली सीट से उम्मीदवार बनाया है। वहीं, अमेठी से गांधी परिवार के करीबी केएल शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा है। आपको बता दें कि दोनों ही सीट गांधी परिवार का गढ़ रहा है, लेकिन 2019 की लड़ाई में राहुल गांधी को बीजेपी की फायरब्रांड नेता और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।
इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार सुमित अवस्थी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल ‘एक्स’ पर एक पोस्ट की और अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने लिखा, रायबरेली सोनिया गांधी की सीट थी। निवृतमान संसद में वो यहीं से सांसद रही थीं। तो मां की सीट बगैर नुमाइंदगी के किसी गैर-गांधी को न देनी पड़े, और बीते इतने सालों में रायबरेली के वोटर ने सोनिया गांधी को जो भरोसा और जीत दिलाई उनके साथ नाइंसाफी न हो तो आलाकमान और परिवार में तय हुआ कि रायबरेली पर तो किसी गांधी परिवार के नुमांइदे को चुनाव लड़ना ही होगा।
मां की विरासत अब पुत्र संभालेंगे। तो बात राहुल गांधी के नाम पर कैसे आई? जबकि वो तो वायनाड को लेकर बहुत आश्वस्त थे। रायबरेली से सोनिया गांधी के अलावा दादी इंदिरा और दादा फ़िरोज़ गांधी भी MP रह चुके हैं तो इस सीट से पुश्तैनी रिश्ता रहा है, जबकि अमेठी से अतीत में राजीव, सोनिया और संजय गांधी सांसद रहे हैं। मीडिया रिपोर्टस आ ही गई हैं कि प्रियंका अभी चुनाव नहीं लडना चाह रही थी। और दोनों सीटों पर एक साथ परिवार के दोनों सदस्यों के लडने के वो सख्त खिलाफ थी।
वजह बताई गई कि वो नहीं चाह रही थीं को दोनों भाई-बहन एक साथ एक ही वक्त में अपनी अपनी सीटों पर फंस जाये और बाकी जगह प्रचार पर उल्टा असर हो और साथ साथ लडने पर बीजेपी के परिवारवाद के हमले और तेज़ हो जाते। इसलिये ही गैर-गांधी और निष्ठावान कार्यकर्ता किशोरीलाल शर्मा का नाम अमेठी से फाइनल किया गया। प्रियंका गांधी अब पार्टी का प्रचार देशभर में इत्मीनान से कर सकती हैं और दोनों सीटें (वायनाड और रायबरेली) अगर राहुल गांधी जीत जाते हैं तो वो वायनाड को खाली कर सकते हैं और बहन प्रियंका केरल की इस सीट से अपनी किस्मत उपचुनाव में आज़मा सकती हैं।