24 घंटे के अंदर कांग्रेस के 3 कद्दावर लोगों ने पार्टी छोड़ दी है. बॉक्सर विजेंदर सिंह, पूर्व सांसद संजय निरूपम और प्रवक्ता गौरव वल्लभ का पार्टी छोड़ना पार्टी के लिए बहुत बड़ा सेटबैक है. ऐन चुनाव के मौके पर इन नेताओं का पार्टी से मुंह मोड़ना पार्टी के नेतृत्व की कमजोरियों को उजागर करता है. गौरव वल्लभ और संजय निरूपम दोनों ने पार्टी के उन अंतर्विरोधों की चर्चा की है जिसके चलते उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी . हालांकि दोनों ने कोई नई बात नहीं बताई है. कांग्रेस से जाने वाले कई सालों से वही बात दुहरा रहे हैं पर कोई एक्शन होता नहीं दिखता है. अब तो सोशल मीडिया में लोग यह भी कहने लगे हैं कि इस तरह तो कांग्रेस में केवल गांधी परिवार ही बचेगा.आइये देखते हैं कि वो कौन से कारण हैं जिसके चलते कांग्रेस खाली होती जा रही है.
1-पार्टी में गांधी परिवार की ही चलती है, दूसरे केवल मुगालता पालते हैं
पार्टी में गांधी परिवार के अलावा किसी की नहीं चलती है. अगर आप गांधी परिवार के गुड बुक में जगह बनाने में असफल हैं तो आपकी तरक्की कांग्रेस में संभव नहीं है. उससे भी बड़ी बात यह है कि अगर गांधी परिवार का विश्वासपात्र बनकर आप अध्यक्ष भी बन जाते हैं तो भी आपकी इज्जत कौड़ी के ही मोल है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को धक्का देते विडियो इसकी ही गवाही देते हैं. बुधवार को राहुल गांधी के पर्चा दाखिले से भी जरूरी काम दिल्ली में खरगे कर रहे थे पर उसे कोई इम्पॉर्टेंस नहीं मिला . क्योंकि गांधी परिवार का कोई भी उस आयोजन में नहीं था.
संजय निरुपम कहते हैं कि गांधी परिवार में 5 पावर सेंटर हैं. जिसमें 3 गांधी फैमिली के ही हैं. सोनिया गांधी , राहुल गांधी और प्रियंका गांधी . 2 पावर सेंटर गांधी परिवार के बाहर के हैं. जिसमें मल्लिकार्जुन खरगे और केसी वेणुगोपाल का उन्होंने नाम लिया है. राहुल और प्रियंका की लॉबी के चलते कई अच्छे नेताओं का सत्यानाश होते जनता ने देखा है. पंजाब में अमरिंदर सिंह, नवजोत सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी की कहानी सबको याद ही है.यही हाल राजस्थान में भी हुआ. अशोक गहलोत और सचिन पायलट के झगड़ों का अंत न होना पार्टी के कई पावर सेंटर का ही नतीजा था. गांधी परिवार से अलग वाले पावर सेंटर तो सिर्फ मुगालते में रहते हैं. जब भ्रम टूटता है तो पार्टी छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है.
2-राहुल गांधी के अलावा किसी का भविष्य नहीं, प्रियंका और वरुण जैसों के लिए भी जगह नहीं
कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी चाहे कितनी बार भी फेल हो जाएं नेतृत्व उनके पास ही रहेगा. ऐसा नहीं है कि पार्टी में नेताओं की कमी है. अगर गांधी परिवार के अंदर के लोगों को ही आगे बढ़ाना हो तो भी कई लोग हैं. प्रियंका गांधी को आगे बढ़ाने के नाम पर पार्टी को सांप सूंघ जाता है. कहा जाता है कि सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना. लगातार राहुल की असफलता को देखते हुए प्रियंका को सामने लाया जा सकता है. कम से कम कुछ दिन के लिए एक उम्मीद तो जगती. कार्यकर्ताओं और नेताओं को जब कोई उम्मीद नहीं दिखेगी तो अपने कैरियर की मौत होते देख दूसरे पार्टियों में जाने के लिए लोग मचलेंगे ही. यूपी में अगर रायबरेली और अमेठी से प्रियंका गांधी और वरुण गांधी को टिकट दिया गया होता तो कम से कम 2 सीट तो कांग्रेस को मिलती ही मिलती. यहीं नहीं आसपास की कुछ और सीटों पर पार्टी के फेवर में माहौल बनता .वरुण गांधी तो बीजेपी में रहते हुए नरेंद्र मोदी को टार्गेट करते रहे इसी उम्मीद में कि कांग्रेस उन्हें जरूर जगह देगी. पर ऐसा संभव नहीं हुआ. इन नेताओं को जीतते देखकर कार्यकर्ताओं में पार्टी को लेकर एक उम्मीद जगती. पार्टी कार्यकर्ताओं के सपनों का मर जाना सबसे खतरनाक है.
राहुल गांधी पर यह शुरू से ही आरोप रहा है कि जब पार्टी की जरूरत होती है तो वो गायब हो जाते हैं. जब पार्टी किसी विशेष अभियान की तैयारी कर रही होती है तो राहुल विदेश यात्रा पर होते हैं. राहुल ने पिछले दिनों उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान खूब मेहनत की . जाहिर है कि उनकी मेहनत का परिणाम भी देखने को मिला. पर यह मेहनत कंटिन्यूटि में नहीं रहती है. जबकि उनका मुकाबला बीजेपी के 24 गुणा 7 राजनीति करने वाले से है. कार्यकर्ता और पार्टी के छोटे नेता अपने लीडर से ही प्रेरित होते हैं. पर यहां कहानी कुछ अलग ही चलती है.
प्रियंका गांधी एक हफ्ते दिखाई देंगी फिर एक गायब हो जाएंगी.भारत जोड़ो न्याय यात्रा के समापन के बाद राहुल गांधी लगातार कई दिन तक नहीं दिखे. उनके ट्वीटर हैंडल पर भी कोई राजनीतिक ट्वीट नहीं दिखे. इस दौरान केलल बधाई, शुभकामनाएं और श्रद्धांजलि ही दिख रहा था. जबकि चुनाव सर पर हैं. उत्तर प्रदेश में रायबरेली और अमेठी से कौन चुनाव लडेगा अभी तक फैसला क्यों नहीं हो सका है ? ये सीधा सीधा लापरवाही का मामला है. फैसलों को टालते रहो यह पार्टी की पॉलिसी बन चुकी है. पार्टी नेताओं की शिकायत सुनना, उन शिकायतों की जांच करना आदि तभी संभव हो सकता है जब आप लगातार पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलते रहते हैं. अमेठी के एक कांग्रेसी नेता ने एक बार बताया था कि उन्हें प्रियंका से फोन पर बात करने के लिए समय लेने में कई महीने लग गए. ऐसी स्थिति में कार्यकर्ता हो या नेता उसका बिदकना स्वभाविक होता है.
पार्टी विचारधारा के नाम पर बुरी तरह कन्फ्यूज है. गुरुवार को पार्टी छोड़ने वाले गौरव वल्लभ कहते हैं कि एक ओर हम जाति आधारित जनगणना की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर संपूर्ण हिंदू समाज के विरोधी नजर आ रहे हैं. यह कार्यशैली जनता के बीच पार्टी को एक खास धर्म विशेष के ही हिमायती होने का भ्रामक संदेश दे रही है. यह कांग्रेस के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है.इसी तरह आर्थिक मामलों पर वर्तमान समय में कांग्रेस का स्टैंड हमेशा देश के वेल्थ क्रिएटर्स को नीचा दिखाने का, उन्हें गाली देने का रहा है. आज हम उन आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (एलपीजी) नीतियों के खिलाफ हो गए हैं, जिसको देश में लागू कराने का पूरा श्रेय दुनिया ने हमें दिया है. देश में होने वाले हर विनिवेश पर पार्टी का नजरिया हमेशा नकारात्मक रहा. क्या हमारे देश में बिजनेस करके पैसा कमाना गलत है?
वल्लभ जो कह रहे हैं उसकी एक बानगी देखिए, एक तरफ राहुल गांधी अडानी और अंबानी के खिलाफ जहर उगलते रहते है. दूसरी ओर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तत्कालीन कांग्रेस सरकारें अडानी का स्वागत करती रही हैं.एक तरफ आप पूंजीपतियों का विरोध करते हैं और दूसरी ओर चाहते हैं कि वो निवेश करें. ऐसी दशा में पार्टी विचारधारा से दिल से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ता टूट जाते हैं.
2014 के चुनावों में हार के बाद कांग्रेस ने हार के कारणों की समीक्षा के लिए एके एंटनी के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई थी. एंटनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कांग्रेस की छवि एंटी हिंदू की होती जा रही है. पहले ऐसा नहीं था. इसमें सुधार की जरूरत है. पर सुधार के लिए कोई काम नहीं हुआ. राम मंदिर उद्धघाटन से दूर रहना पार्टी की बड़ी भूल थी. इधर जितने भी लोगों ने कांग्रेस छोड़ी है उन सभी का कहना था कि राम मंदिर का विरोध करते रहना उनके लिए संभव नहीं हो सकता. आज गौरव वल्लभ और संजय निरूपम ने भी यही बात कही. पार्टी न हिंदुओं ही नहीं मुसलमानों को भी नहीं संभाल पा रही है. सीएए के नाम पर जिस तरह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विरोध किया है उस तरह कांग्रेस नहीं कर सकी है. केरल में राहुल गांधी के खिलाफ सीएम विजयन ने इसे मुद्दा ही बना दिया है.
गौरव वल्लभ ने अपने त्याग पत्र में लिखा,’पार्टी का ग्राउंड लेवल कनेक्ट पूरी तरह से टूट चुका है, जो नये भारत की आकांक्षा को बिल्कुल भी नहीं समझ पा रही है. जिसके कारण न तो पार्टी सत्ता में आ पा रही और ना ही मजबूत विपक्ष की भूमिका ही निभा पा रही है. इससे मेरे जैसा कार्यकर्ता हतोत्साहित होता है. बड़े नेताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच की दूरी पाटना बेहद कठिन है, जो कि राजनैतिक रूप से जरूरी है. जब तक एक कार्यकर्ता अपने नेता को डायरेक्ट सुझाव नहीं दे सकता, तब तक किसी भी प्रकार का सकारात्मक परिवर्तन संभव नहीं है.’ पार्टी के बड़े नेताओं का जमीनी कार्यकर्ताओं से कटे होने के चलते यू ट्यूबर्स की मौज हो गई है. तमाम बड़े नाम वाले पत्रकार दिन भर इस तरह की बातें करते है जो हकीकत में होती नहीं हैं. केवल कांग्रेस को फील गुड देने वाली हेडलाइंस से पार्टी नेतृत्व मगन रहता है.