शंकराचार्य को मोदी के मूर्ति को स्पर्श करने से दिक्कत, राम मंदिर पर जिस तरह की राजनीति हो रही है, वह नहीं होनी चाहिए
पुरी शंकराचार्य की गोवर्धन पीठ की वेबसाइट भी है- https://govardhanpeeth.org/. इसके होमपेज पर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का कथन एक लाइन में लिखा है- शंकराचार्यों की यह जिम्मेदारी है कि वह शासकों पर शासन करें (It is the responsibility of ‘Shankaracharyas’ to rule over the rulers). शासन तंत्र में शंकराचार्यों के स्थान को लेकर उनका मत इतना स्पष्ट है कि वह उनके बाकी बयानों में झलक ही जाता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा से उनका ‘टकराव’ कोई नया नहीं है. ताजा मामला अयोध्या में रामलला की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने को लेकर है. जिसमें निश्चलानंद सरस्वती ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि वे कार्यक्रम में नहीं जाएंगे. उनका यह रवैया सिर्फ कार्यक्रम में आमंत्रण से जुड़ा नहीं है. बल्कि इसका एक अतीत है. आइये, इसे समझते हैं.
22 जनवरी को होने वाले रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा उत्सव के निमंत्रण और शामिल होने के नाम पर सिर्फ देश में विरोधी दल के नेता ही नहीं कन्फ्यूज हैं बल्कि संत समाज में भी भ्रम की स्थिति है. जगन्नाथ पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने तो राम मंदिर समारोह में न जाने की बात कहकर कंट्रोवर्सी खड़ी कर दी है. रतलाम में उन्होंने इस बारे में पत्रकारों से अपने मन की बात कही. बेहद उखड़े-उखड़े लग रहे शंकराचार्य की बातों को समझने के लिए उनके पूरे बयान को अलग अलग करके देखना जरूरी है. पहले वे कहते हैं कि ‘उन्हें पता चला है कि जो आमंत्रण मठ पर आया है उसमें कहा गया है कि मैं किसी एक व्यक्ति के साथ कार्यक्रम में आ सकता हूं. यदि वो कहते कि मैं अपने सब लोगों के साथ कार्यक्रम में आऊं तो भी न जाता.’ शंकराचार्य का यह कथन आमंत्रण की भूमिका और कार्यक्रम के स्वरूप दोनों पर प्रहार है. जिस तरह उन्होंने मठ को दो व्यक्तियों की सीमा वाले आमंत्रण का उल्लेख किया है, वह उन्हें अच्छा नहीं लगा है. लेकिन, उनके ऐतराज की सबसे बड़ी गंभीरता उनके बयान के अगले अंश में थी. शंकराचार्य अपनी आपत्तियों का कहते कहते, यह तक कह गए कि ‘प्रधानमंत्री वहां लोकार्पण करें, मूर्ति का स्पर्श करेंगे तो क्या मैं ताली बजाऊंगा?’ प्रधानमंत्री द्वारा रामलला की मूर्ति का लोकार्पण करना बहस का विषय हो सकता है, लेकिन यह समझ से परे है कि वे मोदी के मूर्ति स्पर्श करने को लेकर क्यों ऐतराज उठा रहे हैं? क्या वे मोदी को इस काबिल नहीं मानते हैं कि वे रामलला की मूर्ति का स्पर्श करें? इसे शंकराचार्य ही स्पष्ट कर सकते हैं कि उनके मन में क्या रहा होगा. हालांकि, एक अन्य न्यूज चैनल को दिये इंटरव्यू में शंकराचार्य यह स्पष्ट कह रहे हैं कि अंबेडकर मूर्ति लगाने और रामलला की मूर्ति लगाने के विधान में तो अंतर है ही. यदि इन विधानों का पालन नहीं होगा तो भगवान का वास होने के बजाय भूत-प्रेत का वास हो जाएगा.
क्या विवाद की जड़ में छुआछूत है?
स्वामी निश्चलानंद सवाल करते हैं कि मोदी मूर्ति को स्पर्श करेंगे और मैं वहां ताली बजाऊंगा? तो क्या इसका सीधा मतलब ये नहीं निकलता है कि शंकराचार्य को मोदी के मूर्ति को स्पर्श करने से दिक्कत हो रही है. ऐसा आरोप इसलिए भी लग रहा है क्योंकि स्वामी निश्चलानंद का संबंध करपात्री महाराज से रहा है. करपात्री महाराज ने ही स्वामी निश्चलानंद को संन्यास दिलवाया था. और करपात्री महाराज के नाम पर दलित विरोध का एक ऐसा तमगा लगा हुआ जिसका आज के समय में कोई समर्थन नहीं कर सकता.
दरअसल स्वामी निश्चलानंद की शिकायत एक नहीं है कई और शिकायतें हैं उनकी. उन्होंने कहा कि राम मंदिर पर जिस तरह की राजनीति हो रही है, वह नहीं होनी चाहिए. इस समय राजनीति में कुछ सही नहीं है.उनकी इन बातों का मलतब साफ है कि वर्तमान मोदी सरकार से वो खुश नहीं है. पुरी के शंकराचार्य को धर्म स्थलों पर बनाए जा रहे कॉरिडोर भी पसंद नहीं हैं. लेकिन निश्चलानंद को समझना होगा कि कॉरिडरो बनाए जाने के बाद मंदिरो का किस तरह कायाकल्प हो गए हैं. जिन मंदिरों में कॉरिडोर बनाए गए हैं वो साफ सफाई और व्यवस्था में आज चर्च और गुरुद्वारों को टक्कर दे रहे हैं. मंदिरों की गंदगी और दुर्व्यवस्था के चलते पूरी दुनिया में भारत की जगहंसाई होती थी. स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का ये भी कहना है कि आज सभी प्रमुख धर्म स्थलों को पर्यटन स्थल बनाया जा रहा है. इस तरह इन्हें भोग-विलासता की चीजों को जोड़ा जा रहा है, जो ठीक नहीं है.
आरएसएस पर सवाल और जिन्ना की तारीफ!
अप्रैल 2023 में बिलासपुर में एक धर्म सभा को संबोधित करते हुए निश्चलानंद कहते हैं कि हिंदू राज नेताओं के इशारों पर देश का बंटवारा हुआ है. जिन्ना मुसलमानों के लिए विशेष अधिकार प्राप्त एक प्रांत चाहते थे. लेकिन, उनके दिमाग में अन्य हिंदू राज नेताओं ने विभाजन का बीज डाला था. निश्चलानंद सरस्वती ने कहा, राज नेताओं के समझौता के चलते देश का विभाजन हुआ है. 100 वर्षों की अवधि में बर्मा, श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान यह सब भारत से अलग किए गए हैं. स्वतंत्र देश के प्रधानमंत्रियों ने भी कई बार देश को विखंडित किया है. प्रजातंत्र के नाम पर उन्माद तंत्र का परिचय नेताओं ने दिया.
कुलमिलाकर शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती की राजनैतिक टीका-टिप्पणी हमेशा से विवादों में रही है. इसी क्रम में जब वे राम मंदिर के आयोजन को भी घसीट लाए हैं तो उन्हें पहले से जानने वालों को आश्चर्य नहीं हुआ है.