संयम श्रीवास्तव
बीस साल पहले यूपी की राजधानी लखनऊ में एक कवयित्री को उसके घर में गोली मारकर हत्या कर दी जाती है. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पुलिस को पता चलता है कि कवयित्री मधुमिता शुक्ला 7 महीने की गर्भवती थीं. सीबीआई जांच होती है और प्रदेश सरकार के कद्दावर मंत्री अमरमणि त्रिपाठी को गिरफ्तार कर लिया जाता है. बाद में उनकी पत्नी मधुमणि की भी गिरफ्तारी होती हैं. आपराधिक छवि वाले अमरमणि त्रिपाठी पर घर कब्जाने, धमकी देने, किडनैपिंग आदि के भी कई आरोप रहे हैं. बीस साल बाद माफिया पर कार्रवाई के लिए मशहूर यूपी सरकार अमरमणि का माफीनामा स्वीकार कर उन्हें जेल से बाहर लाने में मदद करती है. ऐसे में यूपी सरकार पर आरोप लगना तो तय था.
तो क्या यह सही कहा जा रहा है कि कांग्रेस के सक्रिय होने से पूर्वी यूपी में ब्राह्णण वोटों के बिखरने का डर सता रहा है बीजेपी को? तो क्या इसलिए बीजेपी अमरमणि त्रिपाठी को मैदान में ला रही है. हालांकि अभी तक कोई ऐसा संकेत नहीं मिला है कि बीजेपी अमरमणि त्रिपाठी को पार्टी में शामिल करने जा रही है. यद्यपि उनके पुत्र अमनमणि लगातार बीजेपी के संपर्क में रहे हैं. आइए देखते हैं कि अमरमणि त्रिपाठी का यूपी में कितना सिक्का चलता रहा है? और भविष्य के चुनावों में बीजेपी के लिए वो किस तरह कारगर साबित हो सकते हैं?
पूर्वांचल में ब्राह्णण बनाम ठाकुर की खूनी राजनीति
यूपी की राजनीति में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की राजनीति का केंद्र गोरखपुर रहा है. वैसे तो भारतीय राजनीति में जातियों के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई कोई नई बात नहीं रही है. पर गोरखपुर में ये वर्चस्व की लड़ाई इसलिए खास हो जाती है क्योंकि इसके लिए यहां पर दर्जनों हत्याएं हुईं हैं. गोरखनाथ मठ के महंत ठाकुर परिवारों से ही होते रहे हैं.गोरखनाथ मंदिर के तत्कालीन महंत दिग्विजय नाथ के समय में गोरखपुर यूनिवर्सिटी के तत्कालीन वीसी सूरत नरायण मणि त्रिपाठी के समय ये वर्चस्व की जंग खूनी हो गई.माफिया डॉन हरिशंकर तिवारी के उदय के पीछे सूरत नारायण मणि त्रिपाठी का ही बताया जाता था. जिन्होंने ताकतवर मठ से मुकाबले के लिए हरिशंकर तिवारी को तैयार किया.
ब्राह्रणों की ओर से हरिशंकर तिवारी ने करीब 4 दशकों तक मोर्चा संभाले रखा. गोरखपुर की स्थानीय राजनीति कभी हरिशंकर बनाम वीरेंद्र शाही, हरिशंकर बनाम वीर बहादुर सिंह, हरिशंकर बनाम योगी आदित्यनाथ के रूप में चलती रही. हरिशंकर तिवारी बनाम वीरेंद्र शाही के बीच गैंगवॉर के समय गोरखपुर दुनिया में दूसरा सबसे अधिक क्राइम वाले जगह के रूप में कुख्यात हुआ. यही समय था जब एक दारोगा के पुत्र अमरमणि त्रिपाठी माफिया डॉन हरिशंकर तिवारी के खेमे का प्रमुख सदस्य बनता है. हरिशंकर तिवारी अमरमणि को अपने धुर विरोधी वीरेंद्र शाही के खिलाफ खड़ा करते हैं. हालांकि बाद में नौतनवां की राजनीति को लेकर अमरमणि और हरिशंकर तिवारी में गहरे मतभेद हो गए.हरिशंकर तिवारी और अमरमणि एक दूसरे के विरोधी हो गए पर खून के प्यासे कभी नहीं हुए. इस बीच मधुमिता हत्याकांड में अमरमणि को जेल जाना पड़ा.
हरिशंकर तिवारी की मौत के बाद क्या खाली स्पेस भर सकेंगे
फेसबुक पर अगर बधाई देने वालों की संख्या को पैमाना मानें तो अमरमणि त्रिपाठी इसमें पास हैं. उनकी रिहाई की खबर आने के बाद पूर्वांचल में भारी संख्या में ब्राह्णण युवा सोशल मीडिया पर अपनी खुशी जाहिर कर रहे है.दरअसल हरिशंकर तिवारी की मौत के बाद ब्राह्णणों का कोई दबंग रहनुमा नहीं रहा. भारतीय समाज में दबंग और ताकतवर लोगों को उनके समुदाय के लोग अपना स्वभाविक नेता मान लेते हैं. अमरमणि त्रिपाठी अपने गुरु हरिशंकर तिवारी की हर चाल से वाकिफ रहे हैं इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जल्द ही वो अपने गुरु की जगह ले सकते हैं.
विपक्ष का कोई भी बड़ा चेहरा अभी तक विरोध में नहीं आया
जिस तरह बिहार में एक आईएएस की हत्या में सजायाफ्ता आनंद मोहन सिंह की रिहाई का विरोध किसी भी बड़े दल ने नहीं किया उसी तरह अमरमणि की रिहाई का विरोध कोई भी बड़ा दल नहीं कर रहा है. सिर्फ छोटे-मोटे नेताओं के बयान ही आ रहे हैं. शायद हर राजनीतिक दल ब्राह्णणों के वोट को नाराज नहीं करना चाहता. अगर वास्तव में ऐसा है तो इसका मतलब है कि यूपी सरकार ने अमर मणि की रिहाई का फैसला चुनावों में उसके फेवर में जा सकता है. वैसे अमरमणि त्रिपाठी को प्रदेश के सभी दलों का साथ मिलता रहा है इसलिए कोई भी दल किस मुंह से उनकी रिहाई की आलोचना करेगा.कांग्रेस के टिकट पर उन्हें 2 बार विधायक बनने का मौका मिला.
योगी की ब्राह्णण विरोधी छवि खत्म करने की कोशिश
योगी आदित्यनाथ पर मुख्यमंत्री बनने से पहले से ही ब्राह्रण विरोधी होने का आरोप लगता रहा है. इसका एक बड़ा कारण हरिशंकर तिवारी से उनका छत्तीस का आंकड़ा भी रहा है. सीएम बनने के बाद बलिया के एक शातिर अपराधी की तलाश में गोरखपुर में हाता के नाम से मशहूर हरिशंकर तिवारी के आवास पर पुलिस का छापा पड़ा था. प्रदेश में चाहे किसी भी दल की सरकार हो हरिशंकर तिवारी के आवास पर छाप डालने की हिम्मत किसी की भी नहीं रही.
कांग्रेस की सक्रियता से ब्राह्मण वोट बंटने का खतरा
एक थियरी और भी निकल कर सामने आ रही है. दरअसल इंडिया गठबंधन बनने के बाद और राहुल गांधी के नए अवतार से कांग्रसे जोश में है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों अगर यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ते हैं तो कांग्रेस के फेवर में जबरदस्त बज क्रिएट हो सकता है. ऐसे में समझा जा रहा है कि बीजेपी के ब्राह्मण वोटों में गिरावट हो सकती है. दरअसल ब्राह्मण परंपरागत रूप से कांग्रेस के वोटर रहे हैं. कांग्रेस के कमजोर होने के चलते इनका वोट बीजेपी में शिफ्ट हो गया.
अगर कांग्रेस मजबूत होती है तो यह तबका एक बार फिर अपनी पुरानी पार्टी की ओर लौट सकता है. दूसरी ओर बीजेपी लगातार अपने को पिछड़ों की पार्टी बनाने में लगी हुई है. इसके चलते जाहिर है कि बीजेपी को बड़ी संख्या में ओबीसी वर्ग को टिकट बांटना है.इसलिए बहुत संभव है कि कांग्रेस अगर ब्राह्मण कैंडिडेट खड़ी करती है तो बड़े पैमाने पर बीजेपी का वोट कट सकता है. पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि काग्रेस के मजबूत होने से यूपी में समीकरण बदल जाएंगे जिसका असर बीजेपी पर भी पड़ना तय है.
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