लखनऊ। माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को पुलिस मेडिकल टेस्ट के लिए लाई थी। पत्रकार साथ-साथ चलते हुए अतीक से सवाल कर रहे थे। तभी पत्रकारों में से तीन लड़के निकले। एक ने अतीक के सिर में गोली मारी। इसके बाद अशरफ पर फायरिंग की। दोनों की मौत हो गई। मर्डर के बाद तीनों लड़कों ने सरेंडर कर दिया।
लखनऊ की कैसरबाग कोर्ट में मुख्तार अंसारी गैंग के शूटर संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की पेशी थी। 48 साल के जीवा को कोर्ट रूम में पुलिस की मौजूदगी में 6 गोलियां मारी गईं। उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया। गोली मारने वाला नौजवान वकील की ड्रेस में था। उसने भागने की कोशिश की, लेकिन वकीलों ने पकड़ लिया।
करीब 200 किमी दूरी वाले दो शहर, दो हत्याएं, दोनों में 52 दिन का अंतर, फिर भी जो बात दोनों को जोड़ती है, वो है हत्या का पैटर्न। आरोपी अरेस्ट हैं, लेकिन अब तक पता नहीं चला कि उन्हें भेजने वाले कौन थे। जीवा हत्याकांड की जांच के लिए बनी SIT को 22 जून तक रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन टीम रिपोर्ट नहीं दे पाई।
पुलिस कस्टडी में अतीक-अशरफ के बाद संजीव जीवा के मर्डर से चर्चा शुरू हो गई कि इन हत्याओं के पीछे कौन है। अतीक-अशरफ की हत्या का केस हाईप्रोफाइल होने के बावजूद इसके मास्टरमाइंड का पता नहीं है। संजीव जीवा के मर्डर के आरोपी विजय यादव से STF ने पूछताछ की, लेकिन पुख्ता सबूत नहीं मिल पाए।
इन हत्याओं में एक पैटर्न दिख रहा है। ये पैटर्न UP में नया है, लेकिन मुंबई में डॉन दाऊद इब्राहिम अपने दुश्मनों को खत्म करने के लिए यही तरीका अपनाता था। हमने इसी पैटर्न पर UP STF के रिटायर्ड अफसर और एक्सपर्ट्स से बात की। बातों से जो निकला, वो इन हत्याओं के पीछे गैंगवार के साथ राजनीतिक रंजिश की ओर इशारा करता है। इसकी तीन वजह हैं…
पहली वजह: दाऊद की डी कंपनी का पैटर्न फॉलो करना
इस थ्योरी को समझने के लिए हम रिटायर्ड IPS राजेश पांडेय से मिले। राजेश पांडेय UP स्पेशल टास्क फोर्स और एंटी टेररिस्ट स्क्वाड के फाउंडर मेंबर थे। UP ATS के चीफ भी रह चुके हैं। वे कहते हैं, ‘दाऊद की डी कंपनी 90 के दशक में मुंबई में एक्टिव थी। दाऊद अनजान शूटरों को मुंबई बुलवाता और उनसे अपने दुश्मनों को खत्म करवाता था। ऐसा ही पैटर्न इन हत्याओं में दिखता है।’
राजेश पांडेय कहते हैं कि ‘अतीक-अशरफ और संजीव जीवा की हत्या में काफी समानताएं हैं। जैसे उम्र, आरोपियों की क्राइम हिस्ट्री, उनका बैकग्राउंड और हत्या का तरीका। इसे अलग-अलग समझिए..
आरोपियों की उम्र: अतीक-अशरफ की हत्या में तीन आरोपी हैं। अरुण मौर्य, सनी सिंह, लवलेश तिवारी। अरुण की उम्र 18 साल, सनी की 23 साल और लवलेश की उम्र 22 साल बताई गई है। संजीव जीवा को गोली मारने का आरोपी विजय यादव 25-26 साल का है, यानी सभी कम उम्र के ही हैं।
क्राइम हिस्ट्री: दोनों केस में पकड़े गए आरोपियों की ऐसी क्राइम हिस्ट्री नहीं है, जिससे लगे कि वे शातिर अपराधी हैं या इतने बड़े अपराधियों के मुकाबले खड़े हो सकते हैं। उन पर छोटे-मोटे मुकदमे हैं। ये भी लोकल लेवल पर दर्ज हुए हैं।
बैकग्राउंड: दोनों हत्या में शामिल आरोपी बहुत पिछड़े बैकग्राउंड से आते हैं। गांव से ताल्लुक रखते हैं। अतीक-अशरफ केस के आरोपी हमीरपुर, बांदा और कासगंज के हैं। संजीव जीवा केस में आरोपी जौनपुर के छोटे से गांव सुल्तानपुर से है।
मरने वाले से दुश्मनी नहीं: हत्या के आरोपियों और अतीक-अशरफ या संजीव जीवा में कोई दुश्मनी या विवाद नहीं था, जिससे लगे कि ये हत्याएं बदला लेने के लिए की गई हैं। अब तक आरोपियों का किसी गैंग से लिंक नहीं मिला है।
महंगे हथियार खरीदने की हैसियत नहीं: अतीक-अशरफ ही हत्या में जिगाना पिस्टल यूज की गई। इसकी कीमत 6 से 7 लाख रुपए होती है। तीनों आरोपियों की पूरी संपत्ति इतने रुपए की नहीं है। संजीव जीवा के मर्डर में 4 से 5 लाख रुपए की मैग्नम पिस्टल यूज हुई। आरोपी का बैकग्राउंड ऐसा नहीं है कि इतनी महंगी पिस्टल खरीद सके।
हत्या के लिए भेष बदलना: अतीक-अशरफ की हत्या करने वाले आरोपी पत्रकार बनकर आए थे। हत्या से पहले अतीक को अहमदाबाद की साबरमती जेल से प्रयागराज लाया गया था। मीडिया वहीं से उसे कवर कर रही थी। पत्रकारों को अतीक के पास जाने से नहीं रोका जाएगा, इसका अंदाजा आरोपियों को था। इसीलिए वे डमी कैमरे के साथ पहुंचे थे।
इसी तरह संजीव जीवा की हत्या में आरोपी विजय यादव वकील के भेष में पहुंचा था। नॉर्मली कोर्ट में वकील से पूछताछ नहीं होती, उसने इसी का फायदा उठाया।
राजेश पांडेय कहते हैं ‘ये तो रही समानता की बात, लेकिन अब तक पूछताछ में एक बात सामने नहीं आई कि आखिर ये सब किसने कराया। हालांकि, हो सकता है कि पूछताछ करने वाली एजेंसियों के पास पुख्ता जानकारी हो, पर अब तक यही लग रहा है कि इन हत्याओं के पीछे कोई नया सिंडिकेट है।’
क्या असेंबल्ड शूटर्स के जरिए कराई जा रहीं गैंगस्टर्स की हत्याएं…
राजेश पांडेय कहते हैं कि शूटरों को हायर करने का प्रोसेस एकदम कॉर्पोरेट कल्चर की तरह दिख रहा है। इसे पहले अतीक-अशरफ हत्याकांड से समझते हैं…
अतीक-अशरफ हत्याकांड में शामिल सनी, लवलेश तिवारी और अरुण मौर्य अलग-अलग शहरों के रहने वाले हैं। तीनों का हत्या से पहले कोई कनेक्शन नहीं मिला। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि तीनों को 10-10 लाख रुपए एडवांस और महंगे हथियार दिए गए थे।
हत्या के वक्त उनके पास जो डमी कैमरे मिले, वे मुंबई में फिल्म या डॉक्यूमेंट्री शूट करने वाले यूज करते हैं। इतने महंगे हथियार और डमी कैमरे उन्हें कहां से मिले। अभी एजेंसियों के पास भी इसका जवाब नहीं है कि इनका हैंडलर कौन है।
इसी तरह संजीव जीवा की हत्या को देखें, तो आरोपी विजय यादव ने पुलिस को बताया है कि वो अशरफ नाम के शख्स से नेपाल में मिला था। उसने भाई के अपमान का बदला लेने के लिए संजीव जीवा की हत्या की सुपारी दी।
नेपाल से बहराइच आने पर उसे हथियार दिए गए। यह भी कहा गया कि तुम्हें वकील के भेष में जाना है। लखनऊ आने के बाद किसी ने उससे कोर्ट की रेकी करवाई। ये रेकी 5 दिन तक की गई। सवाल है कि विजय जिन लोगों से मिला था, पुलिस अब तक उन्हें ट्रेस क्यों नहीं कर पाई।
परिवार की सुरक्षा का भरोसा दिया, इसलिए आरोपियों ने खुद को खतरे में डाला
राजेश पांडेय बताते हैं कि इन लोगों को सुरक्षा की गारंटी दी गई है। इसलिए उन्होंने अपनी जान खतरे में डाली है। आरोपी गरीब परिवार से आते हैं। इनकी जरूरतों के हिसाब से बाकायदा रिसर्च कर उन्हें रिक्रूट किया गया। इनकी और परिवार की जानमाल की हिफाजत की गारंटी दी गई, तब ये तैयार हुए। अब सभी जेल में हैं। रिमांड पर भी जा चुके हैं, पर पूछताछ से मास्टरमाइंड का नाम सामने नहीं आया।
लॉरेंस गैंग से हो सकता है कनेक्शन
राजेश पांडेय इस तरह की हत्याओं के पीछे लॉरेंस गैंग के कनेक्शन से भी इनकार नहीं करते। वे कहते हैं, ‘अतीक-अशरफ की हत्या में इस्तेमाल हथियार देश में लॉरेंस गैंग के जरिए ही पहुंचे थे। ये बात खुद लॉरेंस मान चुका है।
लॉरेंस ने 2021 में गोल्डी बराड़ के जरिए जितेंद्र गोगी को दो जिगाना पिस्टल दिलवाई थीं। अतीक केस के आरोपियों ने भी बताया था कि उन्हें जितेंद्र गोगी गैंग से पिस्टल मिली है। हालांकि इस बारे में एजेंसियों ने कोई खुलासा नहीं किया है।’
राजेश पांडेय कहते हैं कि ‘ISI के लिए काम कर रहे दाऊद का कोई भी ऑपरेशन बीते 5 साल में सक्सेस नहीं हुआ है। ऐसे में हो सकता है कि ISI लॉरेंस का इस्तेमाल देश में दहशत फैलाने में कर रही हो।’
दूसरी वजह: पूर्वांचल और पश्चिम UP की गैंग में दुश्मनी
संजीव जीवा भले जेल में था, लेकिन वो पश्चिमी UP का बड़ा माफिया था। जेल से ही वसूली और स्क्रैप के कारोबार पर पकड़ बना चुका था। इसी बीच वह मुख्तार के खास साथी मुन्ना बजरंगी से भी जुड़ा। दोनों के जरिए मुख्तार ने पश्चिमी UP में जड़ें जमानी शुरू कीं। वर्चस्व की जंग में सुंदर भाटी गैंग की संजीव जीवा गैंग से दुश्मनी चल रही थी। 2018 में बागपत जेल में सुनील राठी ने मुन्ना बजरंगी की हत्या कर दी थी।
सीनियर जर्नलिस्ट आनंद राय कहते हैं कि ‘अतीक-अशरफ की हत्या में भी सुंदर भाटी गैंग का नाम आया था। कहा जा रहा था कि भाटी गैंग ने ही आरोपियों को जिगाना पिस्टल दी थी। संजीव जीवा की दुश्मनी सुनील राठी से भी थी और सुंदर भाटी से भी। हालांकि इस तरह के कयास लगाना जल्दबाजी होगी, क्योंकि सुरक्षा एजेंसियां जांच कर रही हैं।’
तीसरी वजह: राजनीतिक रंजिश में हत्याओं का इतिहास
कयास लगाया जा रहा है कि संजीव जीवा की हत्या राजनीतिक रंजिश का नतीजा तो नहीं हैं। इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। संजीव जीवा पूर्वांचल के बाहुबली मुख्तार का खास गुर्गा था। आरोप था कि मुख्तार के कहने पर ही उसने 2005 में BJP विधायक कृष्णानंद राय की हत्या की थी। वो 10 फरवरी 1997 को हुई BJP नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या में भी शामिल था। कृष्णानंद राय की हत्या में संजीव जीवा बरी हो गया था। द्विवेदी हत्याकांड में उसे उम्रकैद मिली थी।
सीनियर जर्नलिस्ट ज्ञानेंद्र शुक्ल कहते हैं, राजनीति के अपराधीकरण की बात होती है तो इन घटनाओं का जिक्र होगा ही। UP में सत्ता बदलने के बाद से मुख्तार कमजोर हो रहा है। एक के बाद एक उसके गुर्गों की हत्या हो रही है या फिर एनकांउटर।
संजीव जीवा से पहले तीन हत्याएं, जो राजनीतिक रंजिश में की गईं…
पुष्पजीत सिंह उर्फ पीजे हत्याकांड: पुष्पजीत सिंह पूर्वांचल के माफिया मुन्ना बजरंगी का साला था। मुन्ना मुख्तार अंसारी के लिए काम करता था। मुन्ना के जेल जाने के बाद पुष्पजीत ही उसके काम देखता था। कृष्णानंद राय हत्याकांड में मुन्ना के केस की पैरवी वही कर रहा था।
5 मार्च 2016 को लखनऊ में गोली मारकर पुष्पजीत की हत्या कर दी गई थी। मामले में कृष्णानंद राय के साले बृजेश कुमार राय, मनोज कुमार राय और आनंद राय उर्फ मुन्ना को आरोपी बनाया गया। बाद में तीनों को क्लीन चिट मिल गई।
मोहम्मद तारिक: पुष्पजीत के मरने के बाद मुन्ना बजरंगी का जमीन से जुड़ा काम तारिक देख रहा था। जौनपुर का रहने वाला तारिक पहले बनारस में रहता था। फिर लखनऊ आ गया। दिसंबर, 2017 में तारिक की लखनऊ में हत्या कर दी गई। इस मामले में रिटायर्ड डिप्टी SP जीएन सिंह, उनके बेटे प्रदीप सिंह, राजा और सोनू के खिलाफ केस दर्ज हुआ था। बताया जाता है कि प्रदीप और मुन्ना बजरंगी कभी साथ काम करते थे।
मुन्ना बजरंगी: 9 जुलाई 2018 को सुनील राठी ने बागपत जेल में बंद मुन्ना बजरंगी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। मुन्ना बजरंगी को 7 गोलियां मारी गई थीं। सुनील राठी ने ये हत्या किसके कहने पर की, ये अब तक सामने नहीं आया।
7 लाख की पिस्टल, घर में खाने को नहीं, तीनों ने कम उम्र में घर छोड़ा
सनी सिंह, लवलेश तिवारी और अरुण मौर्य, तीन लड़के जिन्होंने 15 अप्रैल की रात अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को 7 लाख रुपए की पिस्टल से गोलियां मारीं। तीनों में कुछ बातें कॉमन हैं। तीनों गरीब परिवारों से हैं, तीनों का परिवार से ज्यादा नाता नहीं रहा। और तीनों का नाम कम उम्र में ही थानों में दर्ज हो गया।
( सभार……………….)