लखनऊ। उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को गैंगस्टर केस में गाजीपुर एमपी-एमएलए कोर्ट ने दोषी करार दिया है. इसको लेकर कोर्ट ने 10 साल की सजा के साथ ही 5 लाख का जुर्माना भी लगाया है. मुख्तार अंसारी पर गैंग्स्टर एक्ट के तहत दर्ज मामले में फैसला सुनाया गया है. गाजीपुर की MP/MLA कोर्ट से 15 अप्रैल को ये फैसला होना था, लेकिन उस दिन सजा का एलान नहीं हो पाया था.
बीजेपी विधायक से थी पुरानी अदावत
सियासी अदावत से ही मुख्तार अंसारी का नाम बड़ा हुआ और वो साल था 2002, जिसने मुख्तार की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया. इसी साल बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय ने अंसारी परिवार के पास साल 1985 से रही गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट छीन ली. कृष्णानंद राय विधायक के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और तीन साल बाद यानी साल 2005 में उनकी हत्या कर दी गई थी.
कृष्णानंद राय हत्याकांड में आया था नाम
कृष्णानंद राय एक कार्यक्रम का उद्घाटन करके लौट रहे थे, तभी उनकी गाड़ी को चारों तरफ से घेर कर अंधाधुंध फायरिंग की गई थी. हमला ऐसी सड़क पर हुआ, जहां से गाड़ी को दाएं-बाएं मोड़ने का कोई रास्ता नहीं था. हमलावरों ने AK-47 से अंधाधुंध गोलियां चलाईं और कृष्णानंद राय समेत गाड़ी में मौजूद सभी सातों लोग मारे गए थे.
इस केस की जांच यूपी पुलिस से लेकर सीबीआई को दी गई. कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केस 2013 में गाजीपुर से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया, लेकिन कई गवाह मुकर गए थे.
गवाहों की कमी से मिलती थी राहत
दिल्ली की स्पेशल अदालत ने 2019 में फैसला सुनाते कहा था कि अगर गवाहों को ट्रायल के दौरान विटनेस प्रोटेक्शन स्कीम 2018 का लाभ मिलता तो नतीजा कुछ और हो सकता था. गवाहों का अकाल पड़ने से मुख्तार अंसारी जेल से छूट गया था. मुख्तार भले ही जेल में रहा, लेकिन उसका गैंग हमेशा सक्रिय रहा.
योगी सरकार ने कसा शिकंजा
मुख्तार अंसारी पर उत्तर प्रदेश में 52 केस दर्ज हैं. योगी सरकार अब तक अंसारी और उसके गैंग की 192 करोड़ से ज्यादा संपत्तियों को या तो ध्वस्त कर चुकी है या फिर जब्त. मुख्तार गैंग की अवैध और बेनामी संपत्तियों की लगातार पहचान की जा रही है. मुख्तार गैंग के अब तक 96 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं, जिनमें 75 गुर्गों पर गैंगस्टर एक्ट में कार्रवाई हो चुकी है.
पंजाब की जेल से यूपी लाया गया था मुख्तार
एक मामले की सुनवाई के चलते मुख्तार अंसारी को यूपी की बांदा जेल से पंजाब की रोपड़ जेल भेज दिया गया था. वो काफी समय वहीं था. यूपी में सत्ता बीजेपी के हाथ आने के बाद मुख्तार यहां आना नहीं चाहता था. उसे यूपी लाए जाने के लिए दोनों राज्यों की सरकारों के बीच खींचतान चली. मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद उसे यूपी शिफ्ट करने का फरमान सुनाया.
इसके बाद 7 अप्रैल 2021 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भारी सुरक्षा इंतजामों के बीच बाहुबली मुख्तार अंसारी को पंजाब के रोपड़ से हरियाणा के रास्ते आगरा, इटावा और औरैया होते हुए बांदा जेल पहुंचा दिया गया.
पूर्वांचल में रहा मुख्तार का दबदबा
मऊ में दंगा भड़काने के मामले में मुख्तार ने गाजीपुर पुलिस के सामने सरेंडर किया था. तभी से वो जेल में बंद है. पहले गाजीपुर जेल में रखा गया, फिर वहां से मथुरा जेल भेजा गया. मथुरा से आगरा जेल और आगरा से बांदा जेल भेज दिया गया था. उसके बाद से मुख्तार को बाहर आना नसीब नहीं हुआ. एक मामले में उसे पंजाब की जेल में शिफ्ट कर दिया गया था, लेकिन फिर भी पूर्वांचल में दबदबा कायम रहा. वो जेल में रहकर भी चुनाव जीतता रहा.
कुछ लोगों के लिए थी रॉबिनहुड जैसी छवि
ठेकेदारी, खनन, स्क्रैप, शराब, रेलवे ठेकेदारी में अंसारी का कब्ज़ा रहा है, जिसके दम पर उसने अपनी सल्तनत खड़ी की. मऊ के लोगों का कहना है कि सिर्फ दबंगई ही नहीं, बल्कि बतौर विधायक मुख्तार अंसारी ने अपने इलाके में काफी काम किया. सड़कों, पुलों, अस्पतालों और स्कूल-कॉलेजों पर ये रॉबिनहुड अपनी विधायक निधी से 20 गुना ज़्यादा पैसा खर्च करता है.
इलाके में बोलती थी तूती
मुख्तार अंसारी के दादा स्वतंत्रता सेनानी थे और उसके फौज में नाना ब्रिगेडियर तो फिर मुख्तार अंसारी माफिया कैसे बन गया? रौबदार मूंछों वाला ये विधायक आज भले ही व्हील चेयर के सहारे हो, लेकिन मऊ और उसके आसपास के इलाके में मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी. अब अंसारी के कई ठिकानों को जमींदोज किया जा चुका है. कभी वक्त था, जब पूरा सूबा मुख्तार के नाम से कांपता था. वो बीजेपी को छोड़कर उत्तर प्रदेश की हर बड़ी पार्टी में शामिल रहा.
परिवार का गौरवशाली इतिहास
मुख्तार अंसारी भले ही संगठित अपराध का चेहरा बन चुका था, लेकिन गाजीपुर में उसके परिवार की पहचान प्रथम राजनीतिक परिवार की है. सिर्फ डर की वजह से नहीं, बल्कि काम की वजह से भी इलाके के गरीब गुरबों में मुख्तार अंसारी के परिवार का सम्मान रहा. खानदानी रसूख की जो तारीख इस घराने की है, वैसी शायद ही पूर्वांचल के किसी खानदान की हो.
बाहुबली मुख्तार अंसारी के दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान 1926-27 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और वे गांधी जी के बेहद करीबी माने जाते थे. उनकी याद में दिल्ली की एक रोड का नाम उनके नाम पर है.
नाना थे नवशेरा युद्ध के नायक
मुख्तार अंसारी के दादा की तरह नाना भी नामचीन हस्तियों में से एक थे. शायद कम ही लोग जानते हैं कि महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान मुख्तार अंसारी के नाना थे, जिन्होंने 1947 की जंग में न सिर्फ भारतीय सेना की तरफ से नवशेरा की लड़ाई लड़ी, बल्कि हिंदुस्तान को जीत भी दिलाई. हालांकि वो खुद इस जंग में हिंदुस्तान के लिए शहीद हो गए थे.
पिता थे बड़े नेता तो चाचा रहे उपराष्ट्रपति
खानदान की इसी विरासत को मुख्तार के पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी ने आगे बढ़ाया. कम्युनिस्ट नेता होने के अलावा अपनी साफ सुथरी छवि की वजह से सुब्हानउल्लाह अंसारी को 1971 के नगर पालिका चुनाव में निर्विरोध चुना गया था. भारत के पिछले उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी मुख्तार के रिश्ते में चाचा लगते हैं.
बेटे ने किया था देश का नाम रोशन
मुख्तार अंसारी का बेटा अब्बास अंसारी शॉट गन शूटिंग का इंटरनेशनल खिलाड़ी है. दुनिया के टॉप टेन शूटरों में शुमार अब्बास न सिर्फ नेशनल चैंपियन रह चुका है, बल्कि दुनियाभर में कई पदक जीतकर देश का नाम रोशन कर चुका है. अब वो भी पिता के कर्मों की सजा भुगत रहा है. उसे मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया गया था.
पहली बार बसपा से लड़ा था चुनाव
साल 1996 में BSP के टिकट पर जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचने वाले मुख्तार अंसारी ने साल 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी मऊ से जीत हासिल की. इनमें से आखिरी तीन चुनाव उसने देश की अलग-अलग जेलों में बंद रहते हुए लड़े और जीते. राजनीति की ढाल ने मुख्तार को जुर्म की दुनिया का सबसे खरा चेहरा बना दिया.