लखनऊ। यूपी में अपनी मांगों को लेकर हड़ताल करने वाले बिजली कर्मचारियों को हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट ने 72 घंटे की हड़ताल करने वाले विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के 28 पदाधिकारियों का एक माह का वेतन/पेंशन रोकने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह उन लोगों को एक प्रकार से चेतावनी देने वाली कार्रवाई है, जो कानून के राज को हतोत्साहित करना चाहते हैं। कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी है कि भविष्य में इस प्रकार की हड़ताल न की जाए और न्यायालय द्वारा जताई गई चिंता के प्रति कर्मचारी यूनियन भविष्य में विवेकपूर्ण रहे।
कोर्ट ने राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल कर उन क्षेत्रों के बारे में जानकारी देने को कहा है, जहां नुकसान हुआ है। साथ ही उन सभी कर्मचारी यूनियन व कर्मचारियों की सूची देने का निर्देश दिया है, जिन्होंने संयुक्त कर्मचारी संघर्ष समिति को हड़ताल करने में सहयोग दिया ताकि हड़ताल से हुए नुकसान के लिए उन सभी को जिम्मेदार ठहराया जा सके।
न्यायालय इस मामले में दोनों पक्षों का हलफनामा दाखिल होने और कर्मचारी नेताओं की परेशानियों और असुविधाओं पर विचार करने के बाद अंतिम आदेश करेगी। इससे पूर्व हाईकोर्ट ने दिसंबर 2022 में बिजली कर्मचारियों की हड़ताल पर स्वत संज्ञान लेते हुए आदेश किए थे।
इसके साथ ही हड़ताल न करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने नोटिस जारी कर कर्मचारी मोर्चा के पदाधिकारियों को तलब भी किया था लेकिन आदेश के अनुपालन में कोई भी उपस्थित नहीं हुआ और न ही कोई हलफनामा दाखिल किया गया। इस पर न्यायालय ने सभी पदाधिकारियों को जमानती वारंट जारी कर दिया था।
कोर्ट ने बिजली कर्मचारियों को यह भी चेतावनी दी है कि भविष्य में इस प्रकार का कार्य न करें, जो न्यायालय को हड़ताल करने वाले सभी कर्मचारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई के लिए विवश करें। कोर्ट ने कहा कि यदि दोबारा ऐसी कोशिश की जाती है तो उसकी परिणति कानूनी परिणाम के रूप में होगी। कोर्ट ने कहा है कि निर्दोष जनता को परेशानी नहीं होनी चाहिए। अस्पताल, बैंक जैसी आवश्यक सेवाएं बाधित न की जाएं।
कोर्ट ने विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के नेताओं की इस दलील को नहीं माना कि सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया इसलिए मजबूरी में उन्हें हड़ताल करनी पड़ी। कोर्ट ने कहा कि जीवन में कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां काम करने वाले कर्मचारी हड़ताल के बारे में सोच भी नहीं सकते क्योंकि यह आवश्यक सेवाओं को बाधित कर देगा।
मांगों को बातचीत, प्रदर्शन या किसी अन्य रास्ते से पूरा किया जा सकता है। निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए आम जनता का जीवन पंगु बना देने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। कोर्ट अब इस मामले में 24 अप्रैल को सुनवाई करेगी।