१२मार्च २३ , दिन रविवार । एक इतना छोटा सा गाँव करवतही जिसे कहें कि ढूंढते रह जाओगे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । पर एक कर्मयोगी की अपने धरती के प्रति आकंठ प्रेम ने वह कर दिया जो अच्छे अच्छे दिग्गज नहीं सोच सकते । सनातनी , भारतीय पुरबहिया संस्कारों के प्रति जबरदस्त आग्रह रखने वाले अनुज Sarvesh Kumar Tiwari के बुलावे पर मात्र हम जैसे ठलुए ही नहीं वरन् चमकते सितारे भी उस धरती पर पधारे । मात्र पधारने से वह बात नहीं बनती जिससे यह आयोजन विशेष बनता । विशेष बात यही थी कि सितारे भी देशज मिट्टी का हिस्सा बन कर लहालोट हुए ।
यही तो प्रेरक है जब गाँव गिराव का व्यक्ति अपने बीच उन सितारों को अपने जैसा पाता है तो उसे और उसके बच्चों को लगता है कि हम भी प्रयास कर सकते हैं उन जैसा बनने का । और सही मायनों में यही सार्थक प्रयास है।
प्रातः ग्यारह बजे से शुरू होकर देर रात तक चलने वाले कार्यक्रम में लोगों का निरन्तर जमें रहना यह उम्मीद जगाता है कि बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग साहित्य और संस्कारों के प्रति सजग हैं और हर अच्छे प्रयासों को समर्थन देते हैं।
कुछ वर्ष शहर में बिताने के बाद व्यक्ति अपने आपको विशिष्ट समझने लगता है। वहीं पिछले चार दशकों से सिनेमा , मंच और सीरियल में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले ” दी लीजेण्ड आफ भगत सिंह ” के चन्द्र शेखर आजाद – अखिलेन्द्र मिश्र का देशज रूप और व्याख्यान लोगों को आह्लादित करने के लिये भरपूर था। जितने बड़े कलाकार उससे बड़ा व्यक्तित्व साथ में जमीनी सोच । उनके द्वारा उच्चारित शिवताण्व ने पूरे जन समूह को रोमांचित कर दिया ।
साहित्यिक परिचर्चा में Akhilendra Mishra जी के शब्द शब्द सराहनीय और अनुकरणीय थे । शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न उठाते हुए उन्होंने कहा कि हम मैकाले के जाल से अपने को अलग नहीं कर पाये हैं। भले हम स्वतंत्र हो गये हों । उनका यह कहना कि भारतीय संस्कृति गोष्ठियों से नहीं बनी है। इसका आधार आध्यात्म है। यहाँ तक कि भारतीय भाषा भी आध्यात्मिक है।
यह एक बड़े बौद्धिक विमर्श का संकेत है। Asit Kumar Mishra , सत्या व्यास और नवीन चौधरी जैसे लेखक साहित्यकार परिचर्चा के हिस्सा थे । कहानियों से गायब होते गाँव पर असित ने कहा कि लेखकों को लगता है कि कहानियों में गाँव अब बिकते नहीं । सत्या व्यास और नवीन चौधरी ने भी समर्थन करते हुए अपने विचार रखे । हस्तक्षेप करते हुए सूर्य कुमार त्रिपाठी ने कहा कि हमें लगता है कि बाजारवाद ने गाँव को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है। उसी ने प्रेम में जहर घोला है। एक भाई काली पालीथीन इसीलिये प्रयोग करता है कि अब भतीजे को , परिवार के दूसरे सदस्यों को समोसा मिठाई बांटना न पड़े । त्याग और संतोष की भावना ही गाँव बचा सकती है।
कार्यक्रम में चार पुस्तकें विमोचित हुईं। जिसमें सबसे अधिक तालियां मिली Lokesh Sharma की पुस्तक ” कालदण्ड” को । वैसे भी लोकेश कौशिक को समझना बहुत आसान नहीं है। एक जबरदस्त देशभक्त और चंडीगढ़ पुलिस का इंस्पेक्टर और अतिभावुक , संवेदनशील साहित्यकार और प्रेमी मानुष । बधाई है पहले उपन्यास के लिये ।
एक और पुस्तक रवि राज पाठक की “यात्रा” का विमोचन हुआ । पाठक के साहस की प्रशंसा करनी होगी । स्नातक का छात्र होने के बाद भी उसने यह प्रयास किया । वाह । साहित्य का भविष्य सुरक्षित है ऐसा लगता है। दो और पुस्तकें एक तो ” पासवर्ड ” दुर्गाचरण की थी। सबको बधाई ।
तीसरे सत्र में कवि सम्मेलन । शुद्धता की कसौटी पर शतप्रतिशत खरा । कोई चुटकुलेबाजी नहीं । कविता की धारा में गोता लगाना सौभाग्य सरीखा था । सबका नाम तो नहीं याद आ रहा पर विशेष रूप से प्रशांत सौरभ का उल्लेख होना चाहिए । चम्पारण की धरती का यह बच्चा सिर्फ संस्कृत में संवाद करता है। अद्भुत ! लगता है कि उनकी मातृभाषा ही संस्कृत है। जब पंचाक्षर स्तोत्र का भोजपुरी अनुवाद सुनाया तो मेरा जैसा व्यक्ति जो प्रतिदिन उसका पाठ करता हो अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाया । अद्भुत बच्चे । जीते रहो । विशाल शेखर राय क्या कहूं । जबरदस्त शब्द संकलन और भाव प्रवण गीत गजल । जब्बर । Sanjay Mishra Sanjay , ज्ञान प्रकाश आकुल , स्वयं श्रीवास्तव , नवल सुधांशु , सुभाष पाण्डेय , संदीप सिंह श्रीनेत , Nityanand Shukla Neerav, प्रियंका ओमन्दिनी, आकृति , इनायतपुरी और सर्वेश तिवारी रहे । साढे़ तीन घंटे कब निकल गये पता नहीं चला ।
हां इस बीच तीन पुरस्कार प्रदान किये गये । सदानीरा साहित्य सम्मान ढाई चाल के लिये नवीन चौधरी को ।
योगेन्द्र प्रसाद योगी सम्मान ज्ञान प्रकाश आकुल को तथा भोजपुरी संगीत के सम्राट भरत शर्मा को संगीत के लिये सम्मानित किया गया ।
भोजपुरी में नवाचार इस विषय पर कृपा शंकर मिश्र ‘खलनायक’ के संचालन में विशेष परिचर्चा हुई।
अन्तिम सत्र संगीत को समर्पित रहा । जिसमें भरत शर्मा के अलावा हमारे बड़े भाई और बड़े कलाकार Uday Narayan Singh जी थे । अद्भुत अनुपम ।
इन सबके बीच कुछ विशेष लोग रहे । जलज कुमार अनुपम जिन्होंने पूरे आयोजन में महती भूमिका निभाई और पुत्र धर्म निभाते हुए अपने पिता के नाम पर सम्मान घोषित किया । शुभकामनाएं । प्रीतम पाण्डेय सांकृत को नहीं भूला जा सकता । इनकी भूमिका का आकलन करना मुश्किल है। यत्र तत्र सर्वत्र ।
और आकृति । इस छोटी बच्ची को जब पहली बार मैंने चार साल पहले देखा था तो लगा था कि यह छुई मुई सी लड़की क्या साहित्य सुनायेगी । पर मैं गलत था। उसने इस कार्यक्रम का शानदार संचालन किया ।
अरे हां इस कार्यक्रम में रिवेश प्रताप सिंह , आलोक पाण्डेय भानू प्रताप सिंह भी महती भूमिका में थे ।
किसी कार्यक्रम की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि लोग क्या सोचते हैं । मैंने अपने कानों से एक स्थानीय व्यक्ति को दूसरे से कहते सुना कि ” सबेरे से लागता दू हजार लोग सम्मानित हो गयिल” । मैं जानता हूँ संख्या अतिशयोक्ति पूर्ण है। पर यह संख्या निश्चित तौर पर अधिक थी। और मैं स्वयं आश्चर्यचकित था कि मेरे जैसे नालायक को क्यों सम्मानित किया गया । आभार है इस सम्मान के लिये और बधाई शुभकामनाएं आशीर्वाद इस गंवsई साहित्य सम्मेलन के लिये Sarvesh Tiwari Shreemukh ।
जय हो । सदानीरा सदा बहती रहे और हम सब डुबकी लगाते रहें ।