नई दिल्ली। बीता कुछ समय उद्धव ठाकरे पर भारी पड़ा है। एकनाथ शिंदे ने उन्हें चोट पर चोट दी है। पहले उद्धव की कुर्सी छीनी। अब पिता की बनाई पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह भी सीएम शिंदे के पास चला गया है। चुनाव आयोग के फैसले के बाद शिवसेना का मतलब शिंदे और शिंदे का मतलब शिवसेना हो चुका है। चुनाव आयोग ने शिंदे खेमे को शिवसेना का नाम और उसका असली चुनाव चिन्ह ‘धनुष-बाण’ दे दिया है। शिंदे को पार्टी का नाम और पहचान तो मिल गई। लेकिन, अब तक पूरा कंट्रोल शिंदे के हाथों नहीं गया है। यह सवाल अभी बना हुआ है कि शिवसेना की करोड़ों की प्रॉपर्टियों (शिवसेना भवन और मातोश्री सहित), शाखाओं, लोगों और उसके फंड का क्या होगा? ये शिवसेना की ताकत हैं। इन पर कब्जा हासिल किए बगैर शिंदे की ताकत अधूरी ही रहेगी। शिवसेना और चुनाव चिन्ह के बाद क्या शिंदे इन्हें भी हासिल कर सकते हैं?
शिंदे खेमे का शिवसेना पर पूरा कंट्रोल तभी बन पाएगा जब वे उसकी प्रॉपर्टी, फंड, लोगों और शाखाओं को भी पा लें। चुनाव आयोग से शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह पाने के बाद शिंदे खेमे की नजर जरूर इस पहलू पर होगी। हालांकि, यह हसरत पूरी होना आसान नहीं है। इसके बीच में एक अड़चन है। इस अड़चन का नाम है शिवाई सेवा ट्रस्ट। ठाकरे परिवार के बेहद वफादार सुभाष देसाई इसके मुखिया हैं। दूसरी बात यह है कि उद्धव खेमा हाथ पर हाथ धरकर बैठने वाला नहीं है। वह साफ कह चुका है कि चुनाव आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला देता है यह बाद की बात है। पहले यह देख लेते हैं कि क्या शिवसेना की तमाम प्रॉपर्टियों, फंड और उसकी शाखाओं पर भी शिंदे का कब्जा हो सकता है।
शिवाई सेवा ट्रस्ट के पास मालिकाना हक
दादर में सेना के मुख्यालय शिवसेना भवन सहित पार्टी के तमाम दफ्तरों का मालिकाना हक शिवाई सेवा ट्रस्ट के पास है। चुनाव आयोग के फैसले के बाद शिंदे कैंप को पार्टी के फंड और विधानसभा में बने उसके दफ्तर मिल जाएंगे। पार्टी को अलॉट म्यूनिसिपल बॉडीज भी शिंदे गुट के पास चली जाएंगी। लेकिन, शिवसेना भवन के साथ उसके दूसरे दफ्तरों और शाखाओं के बारे में यह बात नहीं कही जा सकती है। इसमें ट्रस्ट का हस्तक्षेप है।
शिवसेना में शाखाओं का नेटवर्क मुंबई और महाराष्ट्र के कई हिस्सों में फैला है। ये पार्टी के लोकल ऑफिस हैं। शाखाएं लोगों को जोड़ने और उन्हें मोबलाइज करने में अहम किरदार निभाती हैं। पार्टी काडर इन्हीं के जरिये जुड़ता है। बाल ठाकरे के समय से ये शाखाएं संपर्क का केंद्र रही हैं। उद्धव ठाकरे इस पर दंभ भरते हैं। इसी के बल पर वह शिंदे गुट को शिवसेना पर पूरा कब्जा बनाने से रोकते आए हैं। अब शिंदे पर पूरा दारोमदार है कि वह इस नेटवर्क को कैसे अपने हाथों में लेते हैं। लेकिन, ट्रस्ट के अड़ंगे को शायद शिंदे खेमा भी समझता है। यही वजह है कि उसने पार्टी मुख्यालय को हाथ में लेने का ऐलान नहीं किया है। अलबत्ता, 2022 में बगावत के बाद से यह खेमा गहराई ही नापता रहा है।
सामना और मार्मिक का क्या होगा?
सुभाष देसाई के अलावा ट्रस्ट में कई और लोग भी शामिल हैं। इनमें वरिष्ठ नेता लीलाधर दके, रवींद्र मिरलेकर, पूर्व मुंबई मेयर विशाखा राउत, दक्षिण मुंबई सासंद अरविंद सावंत और उद्धव की पत्नी रश्मि ठाकरे का नाम है। यह ट्रस्ट शिवसेना भवन से चलता है। कुछ साल पहले कई शाखाओं का मालिकाना हक ट्रस्ट के तहत आया है। शिंदे कैंप इस जटिलता से भली-भांति परिचित है। लिहाजा, उसने शिवसेना भवन पर दावा नहीं ठोंका है।
शिवसेना ‘सामना’ और ‘मार्मिक’ नाम के पब्लिकेशन भी चलाती है। हालांकि, दोनों का मालिकाना हक पार्टी के पास न होकर ट्रस्ट के पास है। इस ट्रस्ट का नाम प्रबोधन प्रकाशन है। इसमें सुभाष देसाई जैसे कुछ नेता और ठाकरे परिवार के सदस्य ट्रस्टी और डायरेक्टर हैं।
हर राजनीतिक दल के लिए बैंक अकाउंट होना जरूरी है। यही वह अपने फंडों को रखती है। इसी फंड से इलेक्शन कैंपेन सहित पार्टी के अन्य खर्च को पूरा किया जाता है। इस पर पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह होते हैं। चूंकि ये शिंदे कैंप के पास चले गए हैं तो उसी के पास इसका कंट्रोल होगा। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, शिंदे खेमा अब बैंक अकाउंट के साइनिंग अथॉरिटी को बदलेगा। वह पार्टी के फंडों को अपने हाथ में लेगा। राज्य विधानसभा में पार्टी के दफ्तर भी वह कंट्रोल में करेगा।