लखनऊ। यूपी के पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी पिछले कुछ महीनों से सुर्खियों में बने हुए हैं। बयानबाजी के जरिए अपनी ही सरकार पर सवाल उठाने वाले वरुण को लेकर अटकलें है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले वे अपनी नई राह खोज सकते हैं। बीजेपी सरकार की योजनाओं पर हमलावर होने की वजह से वरुण विपक्षी दलों के पसंदीदा भी बने हुए हैं। लगभग सभी दल उनमें अपना फायदा खोज रहे हैं। अटकलें हैं कि भले ही वरुण सपा, आरएलडी के नेताओं व अपनी बहन प्रियंका के संपर्क में हों, लेकिन शायद ही वे किसी दल में शामिल हों। सूत्रों के अनुसार, वे पीलीभीत से ही संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार होना चाहते हैं। वरुण पिछले लंबे समय से बीजेपी से कथित तौर पर नाराज हैं। किसान आंदोलन, बेरोजगारी, अग्निवीर योजनाओं समेत कई मुद्दे पर अपनी सरकार को आड़े हाथों लेते रहे हैं। कभी राजनाथ सिंह ने वरुण को महज 33 साल की उम्र में महासचिव बनाकर बड़ी जिम्मेदारी दी थी, लेकिन 2014 के बाद वरुण के सितारे गर्दिश में ही रहे।
देश के सबसे बड़ा सियासी परिवार गांधी फैमिली से आने के बाद भी वरुण को पिछले कुछ सालों में बीजेपी से ज्यादा कुछ नहीं मिला। दो बार मोदी सरकार के सत्ता में रहने के बावजूद भी वरुण को केंद्र में मंत्री नहीं बनाया गया। 2014 में वरुण की मां मेनका को जरूरी मंत्रिपद दिया गया, लेकिन 2019 में एनडीए सरकार की वापसी पर वह भी चला गया। राजनीतिक एक्सपर्ट्स मानते हैं कि वर्तमान सरकार और बीजेपी में वरुण के साइडलाइन होने के विभिन्न वजहों में एक वजह उनका सरनेम भी है। दरअसल, तमाम बीजेपी नेताओं के निशाने पर सालों से गांधी परिवार ही रहा है। फिर चाहे सोनिया गांधी हों, राहुल गांधी हों या फिर प्रियंका वाड्रा, बीजेपी नेता गांधी परिवार पर हमलावर रहे हैं। ऐसे में यदि वरुण गांधी को सिर्फ गांधी फैमिली का होने की वजह से आगे बढ़ाया जाता है, तो सवाल खड़े हो सकते हैं कि जिस गांधी परिवार पर पार्टी हमला बोलती है, उनके ही परिवार के एक नेता को आगे बढ़ाने से नहीं चूक रही। हालांकि, यह भी सच है कि वरुण ने राजनीति का ककहरा बीजेपी में ही आकर सीखा है और भगवा दल से ही वे तीन बार सांसद भी चुने गए हैं।
हाल ही में एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने वरुण को लेकर टिप्पणी की थी। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से बात करते हुए सीनियर बीजेपी नेता ने कहा था, ”वरुण गांधी चाहते हैं कि बीजेपी उनके सरनेम की वजह से उन्हें खास तवज्जो दे, लेकिन बीजेपी वंशवाद की राजनीति की विरोधी है और गांधी का वंशज होना इस पार्टी में कोई फायदा नहीं है।” उन्होंने आगे कहा कि उन्हें (वरुण) यह समझना होगा कि वह बीजेपी के करीब 400 सांसदों में से एक हैं। उनका विद्रोह मुख्य रूप से मनचाहा पद न मिलने पर उनके असंतोष के कारण है। दरअसल, वरुण गांधी लंबे समय से पार्टी से साइडलाइन हैं। 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान उनके मुख्यमंत्री बनने तक की चर्चाएं चलने लगी थीं। इसको लेकर कुछ शहरों में पोस्टर्स भी लगाए गए, लेकिन बाद में योगी आदित्यनाथ को जिम्मेदारी सौंपी गईं। वरुण की तुलना में पार्टी के कई अन्य नेता काफी आगे निकल गए, लेकिन वरुण गांधी सांसद पद पर ही हैं। पार्टी स्टैंड के खिलाफ जाने की वजह से भी जल्द वरुण के दिन संवरते हुए नजर भी नहीं आ रहे हैं।
आजादी के बाद से ही गांधी परिवार का भारतीय राजनीति में बोलबाला रहा। माना जाता है कि बीजेपी में जब मेनका गांधी और वरुण गांधी की एंट्री हुई तो यह मैसेज देने की कोशिश की गई कि उनके पास भी देश की सबसे बड़ी सियासी पार्टी के नेता हैं। बीजेपी को पूरा यकीन था कि मेनका और वरुण के जरिए वह कांग्रेस को उसी की सियासी पिच पर खेलकर जवाब दे देगी, लेकिन इससे पार्टी को कोई बड़ा फायदा नहीं हुआ। मेनका व वरुण हमेशा सोनिया और राहुल गांधी पर ज्यादा हमलावर नहीं दिखे, बल्कि समय-समय पर वरुण पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू की प्रशंसा भी करते रहे। वहीं, हाल ही में उनके कई बयान चचेरे भाई राहुल गांधी के बयानों की तरह ही नजर आए।