नई दिल्ली। सामान्य वर्ग के गरीबों को मिलने वाले ईडब्ल्यूएस कोटे पर सुप्रीम कोर्ट में 13 सितंबर से सुनवाई होने वाली है। अटॉर्नी जरनल केके वेणुगोपाल ने तीन मुद्दे सुझाए हैं, जिन पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच में विचार किया जाएगा। कई याचिकाओं में ईडब्ल्यूएस कोटे की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। इस पर चीफ जस्टिस यूयू ललित का कहना है कि सबसे पहले उन तीन मुद्दों पर चर्चा की जाएगी, जिनका सुझाव अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दिया है। केके वेणुगोपाल ने जो मुद्दे सुझाए हैं, उनमें से पहला यह है कि 103वां संशोधन जो इसके लिए किया गया है, उससे क्या संविधान के मूलभूत ढांचे का उल्लंघन होता है। खासतौर पर राज्यों को आरक्षण के लिए विशेष प्रावधान के तहत अनुमति देने पर भी विचार किया जाएगा।
इसके अलावा इस पर भी विचार होगा कि क्या इस कानून से राज्य सरकारों को निजी संस्थानों में दाखिले के लिए जो EWS कोटा तय करने का अधिकार दिया गया है, वह संविधान के मूलभूत ढांचे के खिलाफ है या नहीं। इस कोटे से अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी वर्ग के लोगों को बाहर किया जाना क्या संविधान का उल्लंघन है या नहीं, इस पर भी अदालत विचार करेगी। अदालत में इन सभी मुद्दों पर 13 सितंबर से चर्चा शुरू हो जाएगी। बता दें कि ईडब्ल्यूएस कोटे के लिए 103वें संविधान संशोधन के तहत सरकार को यह अधिकार दिया गया था कि वे आर्थिक आधार पर उच्च शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था कर सके।
इस फैसले को चुनौती दी गई थी और अब जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई वाली 5 सदस्यीय बेंच इस पर सुनवाई करेगी। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि अदालत की ओर से आर्थिक आधार पर पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों के लिए तय आरक्षण पर क्या टिप्पणी होती है या क्या आदेश आता है। बता दें कि मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए संसद से संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दिलाई थी। इस फैसले की बड़े वर्ग ने सराहना की थी। हालांकि एक तबका ऐसा भी था, जिसने इस आरक्षण को संविधान के खिलाफ बताया था।