नई दिल्ली। NDA से नाता तोड़कर महागठबंधन में वापसी करने वाले नीतीश कुमार ने मिशन-2024 का बीड़ा उठाया है. बीजेपी और पीएम मोदी के खिलाफ विपक्षी एकता की कोशिश में जुटे नीतीश कुमार दिल्ली प्रवास के दौरान सोमवार से लेकर बुधवार तक 10 विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की है. विपक्षी दलों ने नीतीश की कोशिशों का समर्थन किया और पूरा सहयोग का वादा भी किया है. ऐसे में सवाल यह है कि जिन दस विपक्षी नेताओं से नीतीश मिले हैं, उनकी अपनी सियासी ताकत क्या है, जिसके दम पर 2024 में मोदी को सत्ता से हटा पाएंगे?
नीतीश कुमार अपने दिल्ली प्रवास के पहले दिन सोमवार को सबसे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात की थी, फिर जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी से मिले. दूसरे दिन मंगलवार को नीतीश ने सीपीएम महासचिव सीताराम यचुरी, सीपीआई के महासचिव डी राजा से मिले. इसके बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव से गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में जाकर मुलाकात की और फिर इनेलो के ओम प्रकाश चौटाला से मिले. उसी दिन दिल्ली में आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और अपने पुराने मित्र शरद यादव से मिले.
1.कांग्रेस की सियासी ताकत
नीतीश कुमार ने पहली मुलाकात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से की. ऐसे में कांग्रेस की सियासी ताकत की बात करें तो विपक्षी खेमे में सबसे बड़ी पार्टी है. इसके अलावा बीजेपी के बाद कांग्रेस के ही सबसे ज्यादा सांसद हैं. 2019 चुनाव में कांग्रेस ने 19.46 फीसदी वोटों के साथ 52 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार चला रही है जबकि बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में वो गठबंधन की सरकार में शामिल हैं. कांग्रेस कई राज्यों में मुख्य विपक्षी दल है. देश में करीब 200 संसदीय सीटें है, जहां पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है.
2.अखिलेश यादव की ताकत
नीतीश ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव से मिले हैं. सपा की सियासत ताकत की बात करें तो यूपी में है, जहां सबसे ज्यादा 80 सीटें है. यूपी में सपा मुख्य विपक्षी दल है, लेकिन लोकसभा में फिलहाल तीन सांसद है. 2019 चुनाव में सपा तीन राज्यों में कुल 47 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. यूपी में बसपा के साथ मिलकर सपा ने चुनाव लड़ा था और पांच सीटें जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन उसमें दो सीटें उपचुनाव में हार गई है. हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा 111 सीटें जीतने में सफल रही थी. यही वजह है कि नीतीश कुमार ने यूपी में महागठबंधन को लीड करने का जिम्मा अखिलेश को सौंपा है.
3.अरविंद केजरीवाल की ताकत
नीतीश कुमार की आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से मुलाकात हुई है. आम आदमी पार्टी की दिल्ली और पंजाब में सरकार है, लेकिन लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है. 2019 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी कई राज्यों में चुनाव लड़ी थी, लेकिन महज एक सीट ही जीत सकी थी, जिसे बाद में उपचुनाव में गंवा दी है. 2019 में आम आदमी पार्टी को आधे फीसदी से भी कम वोट मिले थे. दिल्ली में भले ही केजरीवाल तीसरी बार सरकार बना रखी हो, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सके.
नीतीश ने दिल्ली दौरे पर सीपीआईएम के महासचिव सीताराम येचुरी से मुलाकात की थी. सीपीआईएम ने 2019 लोकसभा चुनाव में 3 सीटें जीती थीं और उन्हें 1.75 प्रतिशत वोट मिले थे. फिलहाल सीपीआईएम की केरल में पूर्ण बहुमत की सरकार है. हालांकि, सीपीएम का 2014 के बाद से सियासी आधार सिमटता जा रहा है जबकि एक समय केरल, बंगाल और त्रिपुरा तक में लेफ्ट पार्टी की सरकार थी.
5. डी राजा की ताकत
नीतीश ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के महासचिव डी राजा की से मिल थे. सीपीआई ने लोकसभा चुनाव 2019 में 2 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही थी और दोनों ही सीटें केरल से मिली थीं. सीपीआई को 0.58 फीसदी वोट मिले थे. बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार में वो भी शामिल हैं.
6. कुमारस्वामी का आधार
नीतीश कुमार ने जेडीएस प्रमुख एचडी कुमारस्वामी से मिले हैं. जेडीएस का सियासी आधार कर्नाटक में है. जेडीएस ने 2019 लोकसभा चुनाव में 7 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे, जिनमें से महज 1 सीट जीती थी और उन्हें 0.56 फीसदी वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरे थे. इसके बावजूद कोई करिश्मा नहीं दिखा सके. कर्नाटक में कुल 29 सीटें है.
7. शरद पवार की सियासी पावर
दिल्ली दौरे पर नीतीश कुमार ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की थी. शरद पवार की एनसीपी का सियासी आधार महाराष्ट्र में है. 2019 के चुनाव में एनसीपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी. इस तरह 19 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे, जिनमें से पांच सीटें जीतने में कामयाब रही थी. महाराष्ट्र में कांग्रेस को 15.66 फीसदी वोट मिले थे. सूबे में एनसीपी मुख्य विपक्षी दल है. शरद पवार की विपक्षी दलों के नेताओं के साथ रिश्ते भी काफी मजबूत माने जाते हैं. ऐसे में विपक्षी एकता के लिए पवार अलग-अलग तरीके से कोशिश करते रहे हैं.
8. ओपी चौटाला की ताकत
इनेलो के अध्यक्ष और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला से नीतीश कुमार गुरुग्राम में मिले थे. ओपी चौटाला की सियासी ताकत हरियाणा में है और 2019 के लोकसभा चुनाव में 10 सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारे थे, जिनमें से कोई भी सीट नहीं मिली थी. हरियाणा में उन्हें दो फीसदी वोट मिले थे. इनेलो को दो धड़ों में बट जाने के चलते सियासी आधार भी बंट गया है.
9. दीपांकर भट्टाचार्य
नीतीश ने भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य से मुलाकात की है. इस दौरान दोनों ने आगामी लोकसभा चुनाव पर चर्चा की. भाकपा माले का सियासी आधार बिहार और झारखंड में है, लेकिन एक भी सांसद उनके नहीं है. हालांकि, बिहार विधानसभा चुनाव में भाकपा माले 12 सीटें सीटें जीतने में कामयाब रही थी. नीतीश कुमार की सरकार को बाहर से समर्थन कर रही है.
10. शरद यादव
नीतीश कुमार ने अपने पुराने साथी शरद यादव से भी मुलाकात की थी. शरद यादव एक समय जेडीयू के अध्यक्ष हुआ करते थे, लेकिन बाद में नीतीश के साथ उनके रिश्ते बिगड़ गए तो उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन जीत नहीं पाए. इसके बाद उनकी बेटी कांग्रेस से विधानसभा चुनाव लड़ी, लेकिन वो भी नहीं जीत सकी. शरद यादव काफी उम्र दराज हो चुके हैं और फिलहाल बीमार भी चल रहे हैं.