भारत और रूस में डॉलर की जगह रुपये में कारोबार की चर्चा के बीच रशिया की बड़ी गैस कंपनी गजप्रोम ने चीन के साथ एक एग्रीमेंट साइन किया है, जिसके तहत गैस सप्लाई के लिए पैसों का लेनदेन अमेरिकी डॉलर की जगह चीनी मुद्रा युआन और रूसी रूबल में किया जाएगा. ये एग्रीमेंट रूस और चीन के गहराते संबंधों को भी दर्शा रहा है, जो जाहिर है पश्चिमी देशों के लिए चिंता की बात हो सकती है.
गैजप्रॉम के सीईओ की CNPC चीफ से मीटिंग
रूस की कंपनी गैजप्रॉम के सीईओ एलेक्सी मिलर ने चीन ऑयल ग्रुप CNPC के चीफ दाई हूलिंग के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर मीटिंग के बाद बयान देते हुए कहा कि नए पेमेंट के तरीके से दोनों देशों को फायदा होगा. मिलर ने आगे कहा कि नए पेमेंट का तरीका कैलकुलेशन को भी आसान करेगा और दूसरी कंपनियों के लिए भी एक शानदार उदाहरण बनेगा.
गैजप्रॉम के सीईओ मिलर ने चीन ऑयल ग्रुप CNPC के चीफ को मीटिंग के दौरान अपने प्रोजेक्ट के कार्य को लेकर अपडेट दिया. इस प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद रूस की ओर से चीन को ईस्टर्न रूट से गैस की सप्लाई की जाएगी. जिसके बाद रशियन और चाइनीज गैस नेटवर्क कनेक्ट हो जाएंगे.
कब होगा रूबल और युआन में कारोबार शुरू
हालांकि, गैजप्रॉम की ओर प्रोजेक्ट को लेकर और ज्यादा जानकारी नहीं दी गईं और न ही ये बताया गया कि कब से वे अपनी पेमेंट की लेनदेन डॉलर की जगह रूबल और युआन में शुरू करेंगे.
रिपोर्ट्स की मानें तो कई देशों से आर्थिक प्रतिबंध झेल रहे रूस को इस बदलाव की इसलिए जरूरत है, क्योंकि वह यूएस डॉलर, यूरो या अन्य मुद्राओं पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है. इसी वजह से पिछले कुछ समय से रूस चीन समेत अन्य गैर पश्चिमी देशों से अपने आर्थिक संबंधों को बढ़ा रहा है.
साल 2022 की शुरुआत में रूस के राष्ट्रपति व्लादमीर पुतिन ने अपने उन यूरोपियन ग्राहकों को रूसी करेंसी में पैसा देने के लिए दबाव बनाया था, जो रूस से गैस की सप्लाई ले रहे हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो जिन कंपनी और देशों ने इस डील को नहीं माना, उनकी सप्लाई बंद कर दी गई थी. रूस ने कहा था कि यूरोप की इन कंपनियों को जब तक गैस सप्लाई नहीं दी जाएगी, जब तक पश्चिम देश रूस पर लगे प्रतिबंधों को हटा नहीं देते हैं.
भारत से क्यों नहीं बन पा रही रुपये में लेनदेन की बात
भारत और रूस के बीच डॉलर की जगह अपनी करेंसी में कारोबार को लेकर बातचीत काफी चर्चा में रही थी. ऐसा माना जा रहा था कि अमेरिका इस बात पर काफी भड़क सकता है.
हालांकि, भारत अपने पक्ष में हमेशा साफ रहा है कि वह अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपने आर्थिक फैसले खुद लेने में सक्षम है. दूसरी ओर, रूस वैसे ही वेस्ट के प्रतिबंध झेल रहा है. इसी बीच रूस और भारत ने एक दूसरे के साथ अपनी करेंसी में करोबार की बातचीत को आगे बढ़ाना भी शुरू किया.
अब इस मामले में वार्ता तो शुरू हो गई लेकिन जमीनी स्तर पर काम को शुरू नहीं हो पाया. बैंक चाहते हैं कि सरकार इसके लिए नियम बनाएं और साफ निर्देश दे, जिससे उन्हें अमेरिकी प्रतिबंधों को घेरे में न आना पड़े. वहीं सरकार और आरबीआई का सोचना है कि बैंकों को इस मामले में पहले सक्रिय होना चाहिए.