नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन की छत पर विशालकाय अशोक स्तंभ का अनावरण किया तो विपक्ष को ये पंसद नहीं आ रहा है. इस मुद्दे पर भी राजनीति शुरू हो गई है और जमकर बयानबाजी देखने को मिल रही है. असदुद्दीन ओवैसी के मुताबिक ऐसा करना संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन हैं. वहीं कांग्रेस इस बात से नाराज है कि दूसरी पार्टियों को कार्यक्रम मे नहीं बुलाया गया.
इस समय विशालकाय अशोक स्तंभ को एक तरफ सरकार और बीजेपी के लोग उम्मीदों के पूरा होने का साक्षी बता रहे हैं तो दूसरी ओर विपक्ष सवाल खड़े कर रहा है. गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर लिखा था कि नया संसद भवन आत्मनिर्भर व नए भारत की पहचान बन जन-जन की आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति का साक्षी बनेगा. जिसके शीर्ष पर स्थापित यह राष्ट्रीय चिन्ह हमेशा मुकुटमणि की तरह देदीप्यमान रहेगा.
लेकिन AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने उस अनावरण के दौरान पीएम मोदी की मौजूदगी पर सवाल उठा दिए हैं. उन्होंने इसे संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन बता दिया है. वे कहते हैं कि संविधान संसद, सरकार और न्यायपालिका की शक्तियों को अलग करता है. सरकार के प्रमुख के रूप में, प्रधानमंत्री मोदी को नए संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण नहीं करना चाहिए था. लोकसभा का अध्यक्ष लोकसभा का प्रतिनिधित्व करता है जो सरकार के अधीनस्थ नहीं है. प्रधानमंत्री ने सभी संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन किया है.
पीएम मोदी की पूजा से आपत्ति क्यों?
उधर, कांग्रेस ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की कि जब संसद सारी पार्टियों का है तो संसद से जुड़े कार्यक्रम में दूसरी पार्टियों को न्योता क्यों नहीं दिया गया. CPM की तरफ से भी इस पूरे विवाद पर एक ट्वीट किया गया. उनके मुताबिक पीएम ने अनावरण के दौरान पूजा-पाठ किया, जो ठीक नहीं था.
विशालकाय अशोक स्तंभ की क्या खासियत?
वैसे जिस अशोक स्तंभ को लेकर विवाद चल रहा है, वो सही मायनों में विशालकाय है. इस अशोक स्तंभ की विशालता का अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि इसे संभालने के लिए साढे छह हजार किलो की संरचना बनाई गई है जो पूरी की पूरी स्टील से तैयार की गई है. ये 20 फीट ऊंचा है और इसका वजन नौ हजार 500 किलो बताया गया है. बताया जा रहा है कि नए संसद भवन की छत पर लगने वाले अशोक स्तंभ चिन्ह को आठ चरणों की प्रक्रिया के बाद तैयार किया गया है.