शिवसेना के बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे जल्द ही गुवाहाटी से मुंबई पहुँचेंगे, जहाँ उनकी मुलाकात राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से होनी है। एकनाथ शिंदे बार-बार ये दोहरा रहे हैं कि वो एक शिवसैनिक हैं और उनका उद्देश्य शिवसेना को आगे ले जाना है। उन्होंने कहा कि हमने पार्टी नहीं छोड़ी है और हिंदुत्व के मुद्दे पर आगे बढ़ रहे हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी दिल्ली पहुँचे हैं, जहाँ उनकी मुलाकात पार्टी के आलाकमान से होनी है।
गुवाहाटी के जिस रेडिसन ब्लू होटल में सभी बागी विधायक ठहरे हुए हैं, उसकी बुकिंग भी 12 जुलाई तक बढ़ाने की बात सामने आई है। उस दिन तक बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला भी स्पष्ट हो जाएगा। शिंदे गुट की पूरी कोशिश है कि NCP के डिप्टी स्पीकर को अयोग्य ठहराया जाए। बुधवार (29 जून, 2022) को भाजपा ने भी अपने विधायकों को मुंबई बुलाया है। दल-बदल कानून के तहत एकनाथ शिंदे को किसी दूसरे दल में शिवसेना का विलय करने के लिए 37 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता है, जिसका वो दावा कर रहे हैं।
अब सवाल ये अटका है कि असली शिवसेना कौन सी है, उद्धव ठाकरे वाली या फिर एकनाथ शिंदे वाली। दो तिहाई बहुत अपने पास होने का दावा करते हुए एकनाथ शिंदे असली शिवसेना पर दावा ठोक रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी एकनाथ शिंदे ने इसे ‘असली शिवसेना की जीत’ बताया था। वहीं सांसद अरविंद सावंत और प्रियंका चतुर्वेदी कह रही हैं कि असली शिवसेना उद्धव ठाकरे वाली है। अब ऐसा लगता है कि इस लड़ाई के फैसला अदालत में ही आएगा।
विधानसभा के फ्लोर पर ही ये साबित किया जाता है कि किसके पास कितने विधायकों का समर्थन है। राज्यपाल के सामने परेड कराए जाने का विकल्प भी होता है। दलबदल कानून कहता है कि कोई व्यक्ति किसी पार्टी के चुनाव चिह्न पर जीत के बाद स्वेच्छा से पद और सदस्यता से इस्तीफा दे देता है तो इसे कानून के अंतर्गत माना जाएगा। पार्टी व्हिप के उल्लंघन पर भी कार्रवाई का प्रावधान है। पहले ये भी नियम था कि अगर किसी पार्टी के एक तिहाई सदस्य उससे इस्तीफा दे देते हैं तो उस पर दलबदल कानून लागू नहीं होगा, वाजपेयी सरकार ने इसे दो तिहाई किया।
We are in Shiv Sena, we are taking Shiv Sena forward. There should not be any doubt about it: Eknath Shinde, in Guwahati, Assam#MaharashtraPoliticalTurmoil pic.twitter.com/aIkXp8qCk8
— ANI (@ANI) June 28, 2022
वहीं किसी दूसरी पार्टी में विलय के लिए दो तिहाई सदस्यों के इस्तीफे की जरूरत होती है। स्पीकर अगर पक्षपाती फैसला देता है तो उसके खिलाफ अदालत जाने का भी विकल्प होता है। उद्धव गुट 16 विधायकों की सदस्यता रद्द करवाना चाहता है। अधिकतर जानकर कह रहे हैं कि शिंदे गुट के पास अब किसी दूसरी पार्टी में विलय का ही रास्ता है, ताकि वो दलबदल कानून से बच सकें। विधायकों को पार्टी अयोग्य ठहरा सकती है या कार्रवाई कर सकती है। मूल शिवसेना होने के लिए शिंदे को सांसदों, नगरसेवकों, कार्यकारी और जिला इकाइयों का पर्याप्त समर्थन भी हासिल करना होगा।