नई दिल्ली। पैगंबर मोहम्मद पर बीजेपी नेताओं के विवादित बयान को लेकर जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार की आलोचना हुई. वहीं, इस बीच मालदीव सरकार की चुप्पी ने भी सुर्खियां बटोरी.
छह जून को पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी को लेकर मालदीव के विपक्ष ने संसद में एक आपातकालीन प्रस्ताव पेश किया.
विपक्षी पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस के सांसद एडम शरीफ उमर ने यह प्रस्ताव पेश करते हुए इन विवादित बयानों की निंदा की थी.
इसके बाद सत्तारूढ़ मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) सरकार पर दबाव बढ़ा और उसी शाम सरकार ने आनन-फानन में बयान जारी किया.
भारत समर्थक सोलिह सरकार ने बयान में कहा कि वह पैगंबर मोहम्मद और इस्लाम का अपमान करने की मंशा से दिए गए बीजेपी के कुछ नेताओं के आपत्तिजनक बयान को लेकर चिंतित हैं.
बयान में भारत सरकार की ओर से इन आपत्तिजनक बयानों की आलोचना करने और दोनों नेताओं पर कार्रवाई का स्वागत भी किया गया.
मालदीव की सोलिह सरकार को भारत समर्थक माना जाता है
मालदीव एक इस्लामिक देश है. सोलिह सरकार के तहत इस छोटे से देश ने आधिकारिक तौर पर ‘इंडिया फर्स्ट’ की अपनी विदेश नीति का ऐलान कर रखा है.
मालदीव में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की अगुवाई में विपक्ष के ‘इंडिया आउट’ कैंपेन के जवाब में सोलिह सरकार ने यह ऐलान किया था.
इतना ही नहीं, अप्रैल में राष्ट्रपति सोलिह ने आदेश जारी कर भारत विरोधी प्रदर्शनों पर भी पाबंदी लगा दी थी.
इस साल की शुरुआत में कर्नाटक में शुरू हुआ हिजाब विवाद मालदीव भी पहुंचा था.
यह हिजाब विवाद मालदीव में सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना. मालदीव में हिजाब अनिवार्य परिधान नहीं है लेकिन कर्नाटक में हिजाब और बुर्का पहने महिला प्रदर्शनकारियों के वीडियो वायरल हुए और इस मामले ने खूब सुर्खियां बटोरी.
ओआईसी देशों, कुवैत, बहरीन, पाकिस्तान और अमेरिका ने हिजाब पर बैन की निंदा करते हुए इसे धर्म की आजादी पर हमला बताया था लेकिन मालदीव ने विरोधस्वरूप एक शब्द नहीं कहा.
इस बार भी मालदीव की सत्तारूढ़ एमडीपी पार्टी ने यही चुप्पी भरा रुख अपनाने की बहुत कोशिश की.
उन्होंने बीजेपी प्रवक्ता के पैगंबर मोहम्मद पर बयान की निंदा करने के दबाव को कम करने का प्रयास किया. पांच जून को कई इस्लामिक देशों ने इन विवादित बयानों की निंदा करनी शुरू कर दी लेकिन मालदीव चुप्पी साधे रहा.
पैगंबर मोहम्मद पर बयान को लेकर मचे हंगामे के बीच छह जून को मालदीव के विपक्ष ने संसद में एक आपातकालीन प्रस्ताव पेश किया था.
विपक्षी पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस के सांसद एडम शरीफ उमर ने यह प्रस्ताव पेश करते हुए इन विवादित बयानों की निंदा की थी.
प्रस्ताव में कहा गया, यह बहुत चिंताजनक है कि एक इस्लामिक देश के रूप में मालदीव ने पैगंबर मोहम्मद की निंदा पर एक शब्द नहीं कहा जबकि भारतीय मुस्लिमों, इस्लामिक देशों के नेताओं और लोगों ने इसका विरोध किया. कड़े शब्दों में इसकी निंदा की. कुछ देशों ने इस मामले पर राजदूतों को तलब भी किया. भारत के खिलाफ कुछ देशों में सोशल मीडिया कैंपेन भी शुरू हुए, जिसमें भारत के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई.
मालदीव की सत्तारूढ़ पार्टी के सांसदों ने ही खारिज किया था प्रस्ताव
मालदीव की संसद मजलिस में कुल 87 सांसद हैं लेकिन इस आपातकालीन प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान 43 सांसद ही मौजूद रहे.
एमडीपी पार्टी के 65 सांसद हैं. इस प्रस्ताव को खारिज करने के लिए जिन 33 सांसदों ने वोट डाला था, वे सभी एमडीपी पार्टी के सांसद थे.
एक अखबार ने बाद में इन सभी 33 सांसदों के नाम का खुलासा किया था और ऐसा करने पर इनकी निंदा की थी.
उसी दिन मालदीव के विपक्षी धड़े प्रोग्रेसिव कांग्रेस कोलिशन (पीसीसी) ने बयान जारी कर नूपुर शर्मा के बयान की निंदा की थी.
बयान में कहा गया था कि ये बयान बढ़ रहे इस्लामोफोबिया, नस्लवाद और जाति आधारित हिंसा का प्रमाण हैं.
क्या दबाव में आया मालदीव सरकार का बयान?
इस मामले को लेकर बढ़ रहे दबाव के बीच सरकार ने आनन-फानन में छह जून की शाम को बयान जारी किया.
हालांकि, इस बयान की मालदीव की मीडिया और वहां के सोशल मीडिया के प्रभावशाली लोगों के एक वर्ग ने आलोचना की और इसे खानापूर्ति बताया.
बाद में एमडीपी के संसदीय समूह ने बयान जारी कर प्रस्ताव को खारिज किए जाने का बचाव किया.
उन्होंने कहा कि वे राजनीतिक हथियार के रूप में इस्लाम का इस्तेमाल नहीं होने देंगे.
समूह ने कहा कि यह आपातकालीन प्रस्ताव राजनीतिक लाभ लेने के लिए एक चाल थी. इसके जरिये मंशा मालदीव के लोगों को सरकार के खिलाफ करने की थी.
इससे पहले 2020 में इस्लामोफोबिया को लेकर पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ यूएन में एक छोटा वर्किंग ग्रुप बनाने की कोशिश की थी. इसका भी मालदीव ने पुरजोर विरोध किया था.
उस समय मालदीव की स्थाई प्रतिनिधि थिलमिजा हुसैन ने कहा था कि कथित इस्लामोफोबिया को लेकर भारत को एक किनारे कर देना गलत है.