वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही में सरकार को जीडीपी के मोर्चे पर झटका लगा है, चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट (GDP Growth Rate) 4.1 फीसदी रही. जानकारों के मुताबिक विकास दर में सुस्ती का मुख्य कारण महंगाई (Inflation) है. महंगाई बढ़ने से निवेश पर भी असर पड़ा है.
आंकड़ों के मुताबिक चौथी तिमाही में देश की जीडीपी बढ़कर 40.78 लाख करोड़ रुपये हो चुकी है, जो कि पिछले साल की समान तिमाही (Q4 2020-21) में 39.18 लाख करोड़ रुपये थी.
भारत सरकार के सांख्यिकी कार्यालय की ओर से मंगलवार को जारी डेटा के मुताबिक मार्च तिमाही में जीडीपी 4.1 फीसदी दर्ज की गई है. जबकि वित्त वर्ष 2021-22 के लिए GDP ग्रोथ 8.7 फीसदी दर्ज की गई. ये आंकड़े कोविड-19 की तीसरी लहर और वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी के कारण 28 फरवरी को जारी 8.9 फीसदी के आधिकारिक अनुमान से कम है. वहीं 2020-21 में देश की विकास दर 6.6 फीसदी रही थी.
तिमाही दर तिमाही GDP में गिरावट
इससे पहले बीते वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में (अक्टूबर-दिसंबर) में आर्थिक विकास दर यानी GDP 5.4 फीसदी रही थी. वहीं अप्रैल-जून तिमाही में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट 20.1 फीसदी और जुलाई-सितंबर क्वार्टर में 8.4 फीसदी रही थी. इस तरह से वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान जीडीपी ग्रोथ 8.7 फीसदी दर्ज की गई. हालांकि वित्त वर्ष 2020-21 की तुलना में FY22 में अर्थव्यवस्था की हालत बेहतर रही.
औद्योगिक गतिविधियों में सुधार
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार अप्रैल माह में कोर सेक्टर में ग्रोथ 8.4 फीसदी रही. अप्रैल 2022 में कोयला, बिजली, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, सीमेंट और प्राकृतिक गैस उद्योगों का उत्पादन पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में बढ़ा है. मालूम हो कि कोर सेक्टर में आठ प्रमुख क्षेत्र – कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली हैं.
राजकोषीय घाटा अनुमान से कम
वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत का राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) 6.9 फीसदी के संशोधित अनुमान के मुकाबले 6.7 फीसदी रहा है. आंकड़े बताते हैं कि वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए राजकोषीय घाटा 15.87 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है. महालेखा नियंत्रक (CGA) की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2022 में समाप्त वित्त वर्ष के लिए वास्तविक रूप में राजकोषीय घाटा 15,86,537 करोड़ रुपये रहा, जो जीडीपी का 6.7 फीसदी है.
हालांकि चालू वित्त वर्ष में पेट्रोल (Petorl) और डीजल (Diesel) पर उत्पाद शुल्क (Excise Duty) में कटौती के फैसले से राजकोषीय घाटे पर दबाव पड़ने की आशंका है. राजकोषीय घाटा उस रकम को कहते हैं, जो सरकार की कुल कमाई और खर्च के बीच का अंतर है.