लखनऊ । उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि मतदाताओं के बीच में न तो ‘मोदी मैजिक’ कम हुआ है और न ही लहर पर कोई असर है। हां, इस बीच विकासवाद की राजनीति के प्रतीक बनकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जरूर उभरे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी जनसभा में ‘यूपी के लिए योगी ही उपयोगी’ जैसा नारा देकर योगी के प्रति बढ़े जनविश्वास पर अपनी मुहर लगा दी।
कोरोना महामारी के भयंकर भंवर, कृषि कानून विरोधी आंदोलन को गांव-गांव पहुंचाने के विरोधियों के प्रयास और विपक्षी एकजुटता के बावजूद योगी आत्मविश्वास से ‘सुशासन’ की पतवार चलाते रहे और 37 वर्ष बाद यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार की लगातार वापसी का इतिहास रच डाला। काफी हाथ-पैर मारने के बाद भी भाजपा को मिले पूर्ण बहुमत के मुकाबले सपा मझधार तक ही पहुंच सकी, जबकि बसपा और कांग्रेस गोते खाकर इस सत्ता संघर्ष में पूरी तरह डूबती नजर आईं। वहीं, पंजाब में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी यहां खाता भी नहीं खोल सकी।
निस्संदेह भाजपा के लिए इस चुनाव में चुनौतियों का पहाड़ कहीं ऊंचा था। 2017 में तो तत्कालीन सपा सरकार के प्रति नाराजगी यानी सत्ता विरोधी लहर ने मोदी लहर के वेग को और मजबूत किया, लेकिन इस चुनाव में सत्ता विरोधी लहर का खतरा भाजपा के साथ था। इधर, वैश्विक महामारी कोरोना में हजारों लोगों की जान गई, जनता को लाकडाउन सहित तमाम संकट झेलने पड़े। विपक्ष एकजुट होकर सरकार की घेराबंदी में जुटा था। वह इस आपदा में सरकार के लिए कठघरा बनाने का अवसर तलाश रहा था, जबकि योगी सरकार और भाजपा संगठन ने सेवा ही संगठन अभियान चलाकर इस मुद्दे को हवा कर दिया।
संकट में गरीबों को दवा-राशन पहुंचाया। नतीजों पर उसका सीधा असर नजर आ रहा है। माना जा रहा है कि गरीब दलितों का जो वोट बसपा को प्रदेश में मजबूती देता रहा है, वह काफी-कुछ भाजपा की तरफ मुड़ा है। चुनौतीपूर्ण कहे जा रहे इस चुनाव में भाजपा पूर्ण बहुमत की सरकार वापस बनाने के प्रति आश्वस्त थी तो सपा मुखिया अखिलेश यादव को अपनी ताजपोशी का भरोसा था।
मगर, भाजपा का डबल इंजन का विजय रथ गुरुवार सुबह पोस्टल बैलेट और फिर ईवीएम में वोटों की गिनती से निकले रुझान से उम्मीदों के ट्रैक पर चढ़ा तो गर्म होने के साथ रफ्तार पकड़ता गया और विपक्ष के सपनों पर ‘शिमला की बर्फ’ चढ़ती गई।` बूथ-बूथ से निकले योगी के ‘बुलडोजर’ ने अंतिम परिणाम आते-आते पूर्ण बहुमत के साथ साइकिल के परखच्चे उड़ा दिए। हाथी को बेदम कर दिया और सत्ता के गलियारे से कांग्रेस की एकमात्र उम्मीद प्रियंका गांधी वाड्रा को खाली हाथ लौटाते हुए आम आदमी पार्टी के सपनों पर भी झाड़ू फेर दिया।
काम कर गया कानून का डंडा : प्रदेश के चुनावों में अब तक कानून व्यवस्था बड़ा मुद्दा रही है। सपा को बेदखल कर 2017 में भाजपा इसी वादे के साथ सत्ता में आई थी कि कानून व्यवस्था को मजबूत किया जाएगा। इसके बाद माफियाराज पर लगातार प्रहार, अपराध और भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति, लव जेहाद के खिलाफ कानून, माफिया की संपत्ति पर बुलडोजर जैसे योगी आदित्यनाथ के कई कदम थे, जिन्होंने प्रदेश में मजबूत कानून व्यवस्था संदेश दिया। चुनाव में पूरब से पश्चिम और रुहेलखंड से बुंदेलखंड तक इसका असर दिखाई दिया, जो चुनाव परिणामों में पूर्ण बहुमत के रूप में तब्दील भी हुआ है।
न किसान नाराज और न कोरोना का असर। केंद्र सरकार द्वारा जो तीन कृषि कानून लागू किए गए, उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश में माहौल बनाने का भरसक प्रयास हुआ। हालांकि, चुनाव से ऐन पहले सरकार ने उन कानूनों को वापस भी ले लिया, लेकिन विपक्ष आश्वस्त था कि किसानों की नाराजगी भाजपा पर भारी पड़ेगी। इसी उम्मीद के साथ सपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बढ़त के लिए किसानों की राजनीति का दावा करने वाले राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन किया। पिछले चुनाव में एकमात्र छपरौली सीट जीतने वाले रालोद को अखिलेश ने गठबंधन में 33 सीटों पर चुनाव लड़ाया। मगर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नतीजे बता रहे हैं कि आंदोलन का असर मात्र एक बिरादरी तक सिमटा रह गया। किसान हित की मोदी-योगी सरकार की योजनाओं की काट विपक्षी रणनीति नहीं निकाल पाई। किसानों ने भाजपा को भरपूर वोट दिया। बेसहारा पशुओं की समस्या जरूर थी, लेकिन गोवंश संरक्षण के प्रति सीएम योगी की नीयत-कवायद और दोबारा सरकार बनने पर इस समस्या से संपूर्ण निदान के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आश्वासन ने इस मुद्दे को भी बेअसर कर दिया। विभिन्न कारणों से बढ़ी महंगाई को विरोधी दल हथियार बनाना चाहते थे, लेकिन मुफ्त राशन, किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं का असर उससे अधिक रहा।
गरीब कल्याण की नीति को न भेद सका जातियों का जाल : पूर्वांचल की राजनीति में जातीय समीकरणों का खास प्रभाव माना जाता है। सपा की आस इसी पर टिकी थी, इसलिए उन्होंने पिछड़ों में पैठ बनाने की रणनीति के तहत सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल कमेरावादी और महान दल के साथ गठबंधन किया। वहीं, भाजपा इस मैदान में गठबंधन के पुराने साथी अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के साथ थी। मगर, भाजपा की आस गरीबों को प्रधानमंत्री आवास योजना, मुख्यमंत्री आवास योजना से दिए घर, मुफ्त राशन, आयुष्मान भारत योजना की सुविधा, निश्शुल्क बिजली कनेक्शन, निश्शुल्क रसोई गैस कनेक्शन जैसी गरीब कल्याण की योजनाओं पर टिकी थी, जो कि पूरी हुईं। गरीब कल्याण से जुड़े सुशासन के इस मंत्र को विपक्ष का जातीय तंत्र नहीं भेद सका और पूर्वांचल में भी खुलकर कमल खिला।
टूटे मिथक, बना रिकार्ड : सत्ता में योगी सरकार की वापसी के साथ ही कुछ मिथक टूटे हैं और रिकार्ड भी बने हैं। प्रदेश की राजनीति में 37 वर्ष बाद ऐसा हुआ है, जब सत्ताधारी पार्टी को लगातार दूसरी बार सरकार बनाने का मौका मिला हो। वर्ष 1985 में कांग्रेस ने अंतिम बार सत्ता में वापसी की थी। पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा कर दोबारा मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाले योगी भाजपा के पहले मुख्यमंत्री होंगे। इसी तरह मायावती और अखिलेश यादव के बाद पूर्ण बहुमत की सरकार पांच साल चलाने वाले वह तीसरे सीएम कहलाएंगे। वहीं, नोएडा जाने पर सरकार चले जाने का जो मिथक है, वह भी इस बार टूट गया। अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में योगी कई बार नोएडा गए।
सरकार के साथ संगठन का भी ‘डबल इंजन’ : भाजपा की इस बड़ी जीत में डबल इंजन की पूरी ताकत है। डबल इंजन सिर्फ मोदी-योगी सरकार का ही नहीं, बल्कि एक इकाई के रूप में भाजपा सरकार है तो दूसरी इकाई पार्टी का मजबूत संगठन है। संगठन की रणनीतिक कमान फिर से गृहमंत्री अमित शाह के हाथ में थी तो उसे उनके सहयोगी बने प्रदेश चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह और चुनाव सह-प्रभारी अनुराग ठाकुर। प्रदेश में संगठन की मजबूत बागडोर संभालते हुए चप्पे-चप्पे को प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने अपने पसीने से सींचा तो एक-एक रणनीति को बूथ स्तर तक पहुंचाने में बड़ी अहम भूमिका प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल की रही।
जितेंद्र शर्मा (सभार ……..)