स्वामी प्रसाद मौर्या और उनके तीन समर्थक विधायकों के जाने से यूपी बीजेपी को तगड़ा झटका, यूपी में भाजपा का डैमेज कंट्रोल साध सकते हैं अतिपिछड़ों के सबसे बड़े नेता बाबू सिंह कुशवाहा!
राहुल कुमार गुप्ता
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सियासत में लहर भांपकर पाला बदलने में माहिर कद्दावर नेता कबीना मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने फिर एक बार पाला बदला है। अब वह साइकिल की सवारी करने को आतुर हैं। अपने तीन समर्थक विधायकों के साथ वो सत्ताधारी पार्टी बीजेपी से त्यागपत्र दे चुके हैं तथा सपा के साथ आने की रणनीति बना रहे हैं। अगर यूपी की सियासत के ‘मौसम वैज्ञानिक’ कहे जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या, मौसम को भांपकर पाला बदले हैं तो बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व शायद ही उन्हें वापस बुला पाए। लेकिन अगर अपने समर्थकों के लिए कुछ सीटों को बढ़ाने के लिए ऐसा किया है तो हो सकता है बातचीत से मसला हल हो जाए। इसी दोहरी संभावना के बीच बीजेपी के कुछ बड़े नेता उत्तर प्रदेश के अति पिछड़ों के सबसे कद्दावर नेता जन अधिकार पार्टी के संस्थापक बाबू सिंह कुशवाहा से संपर्क साध रहे हैं। अगर बीजेपी मौर्य को वापस लाने के लिए नहीं मना पायी तो कुशवाहा को मनाने के लिए बीजेपी पूरी ऊर्जा के साथ लग जायेगी। गठबंधन के लिए कुछ शर्तों पर जरूर तैयार हो जाएगी। पिछड़ों के हक की आवाज उठाने वाले और जमीन पर कार्य करने वाले नेता बाबू सिंह कुशवाहा भी अति पिछड़ों की हिस्सेदारी व मान सम्मान को लेकर बीजेपी के साथ गठबंधन कर सकते हैं। भागीदारी संकल्प मोर्चा गैर यादव पिछड़ी जातियों का एक बहुत बड़ा नेतृत्व बन कर उभरा था। जो यूपी में आगामी सत्ता के लिए विकल्प के रूप में अंकुरित हो रहा था। जिसका नेतृत्व बाबू सिंह कुशवाहा कर रहे थे। लेकिन अपने अपने स्वार्थ के चलते कई घटक दल सपा के साथ कुछ ही सीटों के लिए समझौता कर लिये। इधर बाबू सिंह कुशवाहा अतिपिछड़ों के हक के लिए अकेले ही बिगुल बजा रहे थे। कुशवाहा, मौर्य, शाक्य और सैनी समाज को सर्वाधिक जागरूक करने वाले तथा राजनीतिक हिस्सेदार बनाने वाले बसपा के पूर्व कद्दावर नेता बाबू सिंह कुशवाहा की अपने समाज पर सर्वाधिक पकड़ है यह सर्वविदित है। अगर बाबू सिंह कुशवाहा बीजेपी से गठबंधन करते हैं तो सपा के लिए जाप का लाल रंग रेड अलर्ट साबित हो सकता है। हवाओं का रुख बदल सकता है क्योंकि जन अधिकार पार्टी में अब भी कुशवाहा, मौर्य, शाक्य और सैनी के अलावा अन्य कई गैर यादव पिछड़ी जातियों की तथा उनके नेताओं की आस्था बनी हुई है। वह सब जन अधिकार पार्टी के साथ मजबूती से लगे हुए हैं। सपा के लिए तमाम बाहरी तथा अपनों को एक साथ मैनेज करना भी एक चैलेंज है क्योंकि सपा में बहुत से बाहरी आ चुके हैं। टिकट बंटवारे के बाद सपा में भी अंदरूनी कलह हो सकती है। हो सकता है बीजेपी के कुछ विधायक टिकट कटने के बाद सपा की ओर निहारें लेकिन बीजेपी उन्हीं का टिकट काट रही है जिन्हें जनता नापसंद कर रही है। जो जनता के मन से उतर चुके हैं। ऐसे में अगर ये किसी भी पार्टी से आते हैं तो जनता इन्हें फिर से कैसे स्वीकार करेगी। बीजेपी अगर बाबू सिंह कुशवाहा को अपने पाले में लाने में सफल होती है तो भाजपा सपा के नहले पर दहला मार सकती है। अगर ऐसा होता है तो राजनीतिक विश्लेषकों के पसीने छूट जायेंगे कि सपा और भाजपा में कौन सत्ता में काबिज होगा? अभी तक जो लहर सपा के लाल रंग की ओर चल रही है हो सकता है जाप का लाल रंग भाजपा के साथ मिलकर हवा का रुख बदल दे।
अतः अभी भी राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा कहना बहुत जल्दबाजी होगी।