सर्वेश कुमार तिवारी
क्या होता यदि सम्राट अशोक और उनके बाद के कुछ भारतीय सम्राटों के समय तात्कालिक पश्चिमोत्तर भारत( आज का पाकिस्तान, अफगानिस्तान) बौद्ध नहीं हुआ होता। उधर के लोग युद्ध का त्याग नहीं किये होते, तो क्या अरब से निकला कोई मोहम्मद बिन कासिम इतनी आसानी से सबको मारता, काटता एक झटके में ही मुल्तान तक घुस आता?
क्या होता यदि बारहवीं सदी में महाराज पृथ्वीराज चौहान ने कन्नौज नरेश जयचन्द की पुत्री का बलपूर्वक अपहरण नहीं किया होता? तब शायद जयचन्द पृथ्वीराज के विरोधी नहीं होते! और तब यदि गोरी के आक्रमण के समय कन्नौज और दिल्ली साथ होते तो क्या गोरी जीतता? कैसा होता आज का भारत?
क्या होता यदि पृथ्वीराज चौहान ने चंदेल नरेश परमर्दिदेव के महोबा को क्रूरता से तहस नहस नहीं किया होता? यदि तुर्क आक्रमण के समय चंदेल, चौहान और राठौर साथ होते तो क्या भारत हारता?
क्या होता यदि शाहजहां के बाद उसकी इच्छानुसार उसका बड़ा बेटा सन्त दारा शिकोह दिल्ली की गद्दी पर बैठा होता?
कुछ काम मनुष्य नहीं समय करता है। समय ही जानता समझता है कि इस काम के होने से क्या लाभ-हानि है… मनुष्य केवल उन घटनाओं की आलोचना ही करता रहा जाता है।
कई बार हमें लगता है कि कोई घटना हमारे अच्छे के लिए घटित हुई है, पर बहुत बाद में हमें समझ में आता है कि कितनी बड़ी चोट लग गयी है। इसी तरह कुछ घटनाएं तात्कालिक रूप से बहुत बुरी होती हैं, बहुत ज्यादा बुरी… पर बाद में लगता है कि उसका भी कुछ लाभ ही हुआ। जैसे सोचिये न!
अंग्रेज बहुत बुरे थे। पर क्या होता यदि अंग्रेजों ने दक्षिण में टीपू को पराजित नहीं किया होता? टीपू की चलती तो दक्षिण से हिन्दू समाप्त हो गए होते… यदि टीपू दस बीस साल भी और रह गया होता तो??
क्या होता जो सन उन्नीस सौ सैंतालीस में भारत विभाजन नहीं हुआ होता? लोकतांत्रिक भारत में वर्तमान पाकिस्तान और बंग्लादेश के भी सारे लोग होते… तब इस देश के हिन्दुओं का क्या होता? क्या तब भारत के हिन्दू निश्चिन्त होते? हालांकि आज भी नहीं ही हैं, पर तब…? समय यूँ ही कुछ भी नहीं करता…
कभी कभी कुछ लोगों को कहते सुनता हूँ कि अब कुछ नहीं हो सकता, सबकुछ समाप्त हो गया है। हम सिकुड़ गए, समाप्त हो जाएंगे… और भी जाने क्या-क्या! पर साहब, समय के खेल कोई नहीं जानता। जब रावण का बेटा देवराज इंद्र को बांध कर लाया, तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन रावण का समूचा कुल नष्ट हो जाएगा। पर हो गया…
औरंगजेब के काल में कोई सोच भी नहीं सकता था कि अगले पचास वर्षों में ही दक्कन से अफगानिस्तान तक भगवा लहराएगा। पर मराठों ने यह कर के दिखाया… दो वर्ष पहले तक कोई नहीं कह सकता था कि एक दिन कश्मीर 370 से मुक्त हो जाएगा, पर हो गया।
धर्म की आवश्यकता केवल मनुष्य को ही नहीं होती, समय को भी होती है। वह चुप नहीं बैठता, कांटो में भी धर्म के लिए राह बनाता रहता है। वह अभी भी यही कर रहा है, सोच कर देखिये।