शुक्रवार (15 अक्टूबर 2021) को किसानों के प्रदर्शन स्थल से एक और बर्बरता की खबर आई। कथित तौर पर निहंग सिखों ने कुंडली बॉर्डर पर एक युवक के पहले हाथ, ऊँगलियाँ और गर्दन काटी। फिर उसके शव को संयुक्त किसान मोर्चा के मंच के पीछे लटका दिया। इस घटना ने एक बार फिर 16 जून 2021 की उस घटना की याद दिला दी है, जब टिकरी बॉर्डर पर किसानों के टेंट में बहादुरगढ़ के कसार गाँव के 42 साल के मुकेश मुद्गिल को जिंदा जलाने की खबर सामने आई थी।
कसार के सरपंच टोनी कुमार ने कुंडली बॉर्डर की घटना का जिक्र करते हुए बताया, “ये तो कसाई हैं। किसान थोड़े हैं। किसान लोगों की हत्या नहीं करेंगे। ये लोगों को काटकर टाँग दे रहे, सोचो आप ये किस तरह के लोग हैं।” उन्होंने कहा कि इस संबंध में सरकार को सोचना चाहिए और कुछ एक्शन लेना चाहिए। यह पूछे जाने पर कि मुकेश के साथ हुई घटना के बाद उनलोगों ने बॉर्डर पर जमे कथित किसानों को हटाने की जो मॉंग की थी उसमें क्या हुआ, सरपंच बताते हैं, “हमलोग आवेदन देते-देते थक गए, कुछ नहीं हुआ। ये प्रशासन के वश का नहीं है। हमलोग पहले उनकी (किसान प्रदर्शनकारियों) मदद करते थे। बुलाने पर उनकी बैठक में जाते थे। लेकिन, मुकेश के साथ हुई घटना के बाद हमलोगों ने जाना बंद कर दिया और न ही उनकी किसी तरह की मदद करते हैं।”
मुकेश के मामले में उन्होंने बताया कि पीड़ित परिवार को अब तक 7 लाख रुपए की आर्थिक मदद मिली है। इसमें से 5 लाख रुपए बीजेपी के स्थानीय विधायक नरेश कौशिक की तरफ से और 2 लाख रुपए हिसार की राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा नामक संस्था की ओर से दी गई है। सरपंच का यह भी दावा है कि मुकेश की विधवा को सरकारी नौकरी और आर्थिक मुआवजा सरकार की तरफ से दिए जाने की भी प्रक्रिया चल रही है।
हालाँकि मुकेश के छोटे भाई मंजीत ने ऑपइंडिया को बताया कि सरकार की तरफ से अब तक उनको कोई मदद नहीं मिली है। इस संबंध में सरपंच के दावे को लेकर पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “प्रधान जी हमारे बड़े भाई हैं। वे अपने स्तर से प्रयास कर रहे होंगे तो हमें इसकी जानकारी नहीं है।” मंजीत कहते हैं, “हमारी सरकार से केवल यह माँग है कि उनकी भाई की हत्या में जो दोषी हैं, उनको सजा मिले और उनके भाई की पत्नी को नौकरी मिल जाए ताकि परिवार का भविष्य बन जाए।” मंजीत ने यह भी बताया कि समाज के तरफ से उनलोगों को करीब 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद अब तक मिली है। कथित किसान प्रदर्शन के कारण होने वाली समस्या को लेकर वे कहते हैं, “हमारा इनसे कोई व्यक्तिगत झगड़ा नहीं है। पूरे बहादुरगढ़ के लोग इनसे परेशान हैं। पर हमलोग क्या कर सकते हैं। जो करना है सरकार को ही करना है।”
मुकेश के साथ क्या हुआ था?
जगदीश चंद्र की तीन संतानों में 42 साल का मुकेश सबसे बड़ा था। लॉकडाउन में काम छूट गया था तो ज्यादातर समय गाँव में ही रहता था। इसी दौरान अपने गाँव से सटे बाइपास पर कब्जा जमाए कुछ प्रदर्शनकारियों के संपर्क में वह आया था। 16 जून की रात करीब 9 बजे परिजनों को उसे जिंदा जलाने की खबर मिली थी।
मुकेश की माँ शकुंतला ने बताया था कि वह घर में खाना बनाने के लिए कहकर निकला था। बाद में उन्हें पता चला कि उनके बेटे को शराब पिलाकर कुछ लोगों ने जिंदा जला दिया। मुकेश की पत्नी रेणु ने बताया था, “उन्होंने कहा था खाना बनाकर रखना मैं जल्दी आ जाऊँगा। मैंने कहा कि अपना फोन लेकर जाइए तो कहा कि नहीं, मैं जल्दी आ जाऊँगा।” मुकेश के छोटे भाई मंजीत ने बताया था कि जब वे लोग मौके पर पहुँचे तो मुकेश जला हुआ था। उसे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन जान नहीं बची।
मंजीत ने बताया था, “सिविल हॉस्पिटल में हमने भाई से इस घटना के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि तीन-चार आदमी थे। उन्होंने उसे रोक लिया और कहा कि ‘इकट्ठा’ ही घर भेज देंगे।” गाँव के सरपंच टोनी कुमार ने बताया था, “जब मैं मौके पर पहुँचा तो मुकेश बुरी तरह जल चुका था। उसे जब हम सिविल हॉस्पिटल बहादुरगढ़ लेकर जा रहे थे तो उसने बताया कि उसके ऊपर एक किसान ने तेल गिरा दिया और एक ने माचिस लगा दी। उसने इनके नाम भी बताए। कृष्ण, प्रदीप, संदीप।”