पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पार्टी में महीनों से चल रही अंदरुनी कलह के बाद शनिवार को इस्तीफा दे दिया, कैप्टन ने कहा कि उन्हें अपमानित महसूस हुआ, वो प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को विधानसभा चुनाव में अगले सीएम या पार्टी के चेहरे के रुप में स्वीकार नहीं करेंगे, हालांकि सीएम की कुर्सी से हटना कैप्टन के करियर का पहला इस्तीफा नहीं है, शनिवार को दिया गया ये चौथा इस्तीफा था, पिछले तीन इस्तीफे बताते हैं कि कैप्टन अपने इस्तीफों के बाद और ज्यादा शक्तिशाली बनकर उभरे हैं, पूर्व सीएम अपने पत्ते खेलना जानते हैं, उन्होने कभी भी हाशिये की राजनीति नहीं की।
कैप्टन अमरिंदर सिंह पहली बार 1980 में सांसद बने थे, पंजाब के मुद्दों को सुलझाने के लिये बातचीत में शामिल हुए थे, हालांकि ऑपरेशन ब्लूस्टार हुआ, कैप्टन ने गांधी परिवार के करीबी होने के बावजूद पार्टी और संसद सदस्यता से इस्तीफा दे दिया, कैप्टन का ये कदम उनके लिये काफी फायदेमंद रहा, दो दशकों तक वो पंजाब की सियासत में प्रमुख चेहरा बने रहे।
कैप्टन कांग्रेस छोड़कर शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गये, 1985 में सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार में मंत्री भी बने, उन्होने फिर 7 महीने बाद कैबिनेट से तब इस्तीफा दे दिया, जब पुलिस बरनाला के आदेश पर दरबार साहिब में दाखिल हुई, इस कदम ने अमरिंदर सिंह को एक सिख नेता के रुप में उभारा, ये कदम भी उनके लिये कारगर साबित हुआ, अमरिंदर 1995 में चुनाव में अकाली दल (लोंगोवाल) के टिकट पर प्रदेश विधानसभा पहुंचे थे।
1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ, बरगाड़ी बेअदबी मामला शिअद और कांग्रेस के लिये बारी-बारी से संकट की वजह बना, लेकिन कैप्टन इन दो घटनाओं से बचकर निकलने के बाद बड़े नेता के रुप में उभरे, रिपोर्ट्स के मुताबिक केवल सिखों के बीच अमरिंदर सिंह की स्वीकृति की वजह से 1999 में कांग्रेस पंजाब में पुनर्जीवित हो गई, पार्टी सिखों के लिये अछूत हो गई थी, लेकिन अमरिंदर सिंह पंजाब में कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लौटने की वजह बने, कांग्रेस में वापसी के बाद वो पहली बार 2002 से 2007 तक सीएम रहे थे, लेकिन इस दौरान उनकी सरकार ने 2004 में पड़ोसी राज्यों से पंजाब के जल बंटवारा समझौते को समाप्त करने वाला राज्य का कानून पारित किया।
चौथा इस्तीफा
कैप्टन 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के अरुण जेटली के खिलाफ अमृतसर से चुनाव लड़े थे, उन्होने जेटली को 1 लाख से ज्यादा वोटों से हराया, इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सतलज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर समझौते को समाप्त करने वाले पंजाब के 2004 के कानून को असंवैधानिक बताया, कैप्टन ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया, कुछ दिनों बाद उन्हें पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले राज्य ईकाई का प्रमुख बनाया गया, इसके बाद कांग्रेस की जबरदस्त जीत हुई, वो प्रदेश के सीएम बने, इतिहास के आईने में देखें, तो हर बार कैप्टन ने इस्तीफा दिया, तो वो और अधिक मजबूत हुए, जब भी उनकी पार्टी कमजोर हुई, तो ठीक उसी समय कैप्टन और ताकतवर बने, अपने इस्तीफे के बाद अमरिंदर ने संकेत दिया, कि वो राजनीति नहीं छोड़ेंगे, उन्होने कहा कि मैंने आज ही इस्तीफा दिया है, लेकिन राजनीति में विकल्प हमेशा होते हैं, असीमित विकल्प हैं और हम आगे देखेंगे कि क्या होगा, मेरे 52 साल के लंबे कार्यकाल में मेरे सहयोगी हैं, मैं संसद विधानसभा और पार्टी दोनों में अपने सहयोगियों के साथ चर्चा करुंगा।