नई दिल्ली। भाजपा नेतृत्व द्वारा विभिन्न राज्यों में किए जा रहे बड़े बदलावों से पार्टी का एक वर्ग असहज है। खासकर सत्ता वाले राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन में पार्टी ने जिस तरह से नए चेहरों को तरजीह दी है, वह पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं को रास नहीं आ रही है। हालांकि अनुशासन के चलते वह फैसले के समर्थन में खड़े हैं, लेकिन उनकी अंदरूनी नाराजगी चुनावों के समय असर दिखा सकती है।
कर्नाटक में भी येद्दुरप्पा के उत्तराधिकारी के रूप में कई वरिष्ठ नेता खुद के लिए संभावनाएं देख रहे थे। हालांकि पार्टी ने एक वरिष्ठ नेता पर ही दांव लगाया, लेकिन संघ से जुड़े नेताओं को यह बात अखर गई। नए नेता समाजवादी पृष्ठभूमि से हैं और संघ से कोई नाता नहीं रहा है। अब गुजरात में विजय रूपाणी की जगह चुने गए भूपेंद्र पटेल को लेकर भी राज्य के पार्टी के कई वरिष्ठ नेता असहज हैं। यह अंदाजा सभी को था कि इस बार रणनीति के तहत पाटीदार समुदाय से नेता चुना जाएगा। इसलिए पाटीदार समुदाय से आने वाले कई प्रमुख नेताओं के नाम चर्चा में रहे, लेकिन पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल को नेता चुना गया। ऐसे में पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल समेत कई प्रमुख पाटीदार नेताओं का असहज होना स्वाभाविक है। पटेल का यह बयान कि उनकी ही नहीं कई नेताओं की भी बस छूटी है, उनकी मायूसी को साफ करता है्।
अंदरूनी असंतोष से नुकसान न हो इसलिए इन नेताओं को भी संगठन स्तर पर साधा जाएगा। इस काम में पार्टी की मदद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी करेगा। पार्टी के एक प्रमुख नेता ने कहा कि भाजपा काडर आधारित पार्टी है और वहां किसी व्यक्ति के हिसाब से न तो फैसले होते हैं और न ही नाराजगी। पहले भी इस तरह के फैसले होते रहे हैं, लेकिन कोई असंतोष नहीं हुआ।