हजरतबल में चिदंबरम के बेटे ने हरी टोपी में पढ़ी जुमे की नमाज, प्रोफेसर हकुद्दीन शेख कर रहे ‘लुंगी-खतना’ का इशारा

हजरतबल कश्मीर में है। फेमस है। 1963-64 में और फेमस हो गया था। मसला था मू-ए-मुकद्दस (पैगंबर मोहम्मद की दाढ़ी का बाल)। यह चोरी हो गया था। बाद में रहस्यमयी ढंग से मिल भी गया था। खैर।

हजरतबल आज भी फेमस हुआ है… सोशल मीडिया पर। कारण पैगंबर मोहम्मद नहीं हैं, न ही उनकी बाल! कारण बने हैं कार्ति चिदंबरम।

कार्ति चिदंबरम कौन? सांसद हैं। कॉन्ग्रेस के चंद सांसदों में से एक। फिर भी लोग नाम भूल जाते हैं। राजनीति ऐसी ही निष्ठुर चीज है। बापों को याद किया जाता है, बेटे उस छवि को भुना कर भ्रष्टाचार से लथ-पथ (आरोप ही सही) फिर भी ले शपथ… सांसदी-मंत्री वाली कुर्सी तक पहुँच जाते हैं। खैर।

मुद्दे की बात। मुद्दा है हजरतबल और कार्ति चिदंबरम। कार्ति चिदंबरम पहुँचते हैं हजरतबल। शुक्रवार के दिन फोटो डालते हैं – एक साथ चार। चारों पर बवाल कम होता है। नेताजी को कम बवाल पसंद हो, तो समझिए नेता खत्म। लेकिन सांसद कार्ति खत्म कैसे? चार के बजाय एक फोटो डालते हैं… कैप्शन भी सौ टका शुद्ध कॉन्ग्रेसी।

पहले फोटो देखिए और कैप्शन पढ़िए। कहानी उसके बाद।

पढ़ लिए। OK. अब कहानी को हजरतबल और कार्ति चिदंबरम से मोड़ कर सोशल मीडिया पर लाते हैं। यहाँ इस्लाम की जानी-मानी हस्तियाँ रहती हैं। इनमें एक बड़ा नाम प्रोफेसर हकुद्दीन शेख (Prof. Hakuddin Sheikh) का है। ओवैसी के फैन हैं, तलाक भी ले चुके हैं और विलायत मामले मंत्रालय से संबंध रखते हैं। मतलब सिर्फ मुसलमान नहीं, भौकाल भी है इनका।

प्रोफेसर हकुद्दीन शेख ने नमाज पढ़ते कार्ति चिदंबरम को देखा तो इनकी बाँछें खिल गईं। नजदीक के मौलवी से मिल कर पक्का मुसलमान कैसे बना जाए, उसके बारे में नसीहत दे दी। हालाँकि इसके आगे नहीं बताया। लेखक ने एक सलिमा देखी थी, उसी के आधार पर सलाह लिख रहा हूँ, कोई भूल-चूक हो तो अल्लाह मुआफ करे, वो नेकदिल है, कर देगा!

पक्का मुसलमान कैसे बनें?

आमिर खान का एक सलिमा देखिए। 1947: अर्थ। इसमें एक कैरेक्टर होता है हरिया। हिंदू होता है। मुसलमान बनना पड़ता है। कैसे बनता है, ये मजेदार (सिर्फ सलिमा में, असल जिंदगी में जो बने हैं, सिर्फ वो ही जानते हैं) है। YouTube पर है, फ्री में देख सकते हैं। समय कम हो तो 1 घंटे 36 मिनट के बाद से देखना शुरू कीजिए। बस 4 मिनट। पूरा मजा है।


सलिमा की एक झलक, मुसलमान बन जाने के बाद भी कैसे समाज में होती है पहचान

क्या यह सलिमा कार्ति चिदंबरम भी देखेंगे या हकुद्दीन शेख की बात मान वो अब तक मौलवी से मिल चुके होंगे, अगले चुनाव में नामांकन प्रक्रिया में पता चल जाएगा। तब तक हरी टोपी खुद भी पहनें और पहनाएँ। क्या फर्क पड़ता है!