नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने अपनी अकादमिक परिषद द्वारा ड्यूअल डिग्री प्रोग्राम में पढ़ाई कर रहे इंजीनियरिंग छात्रों के लिए एक नए ‘आतंकवाद विरोधी’ (Counter-Terrorism) पाठ्यक्रम के रूप में एक नए कोर्स की मंजूरी दे दी है। जिसके बाद से ही CPI सहित कई विपक्षी दलों ने इस विशेष पाठ्यक्रम को शामिल करने का विरोध किया है जिससे विश्वविद्यालय परिसर में एक नया तूफान खड़ा हो गया है।
माकपा (CPI) के राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र लिखकर जेएनयू के पाठ्यक्रम जिसका टाइटल है- ‘काउंटर टेररिज्म- एसिमेट्रिक कॉनफ्लिक्ट्स एंड स्ट्रेटजीज फॉर कोऑपरेशन अमांग मेजर पावर’ के पाठ्य सामग्री को पूर्वाग्रहपूर्ण और गलत प्रकृति को बढ़ावा देता हुआ बताकर आपत्ति जताई है।
CPI Rajya Sabha MP Binoy Viswam writes to Union Education Minister Dharmendra Pradhan, raising objection to ‘prejudiced & inaccurate nature of material being included in JNU course titled Counter-Terrorism, Asymmetric Conflicts & Strategies for Cooperation among Major Powers’ pic.twitter.com/AfvLNUIC0w
— ANI (@ANI) August 31, 2021
CPI नेता ने 31 अगस्त, 2021 को शिक्षा मंत्री को लिखे अपने पत्र में खेद व्यक्त किया है, जिसमें उन्होंने कहा, “उच्च शिक्षा का उपयोग अर्ध-सत्य और अकादमिक रूप से गलत जानकारियों के माध्यम से भू-राजनीतिक मुद्दों को सांप्रदायिक और राजनीतिक बनाने के लिए एक मंच के रूप में किया जा रहा है।”
पाठ्यक्रम की आलोचना करते हुए, सीपीआई नेता बिनॉय विश्वम ने इसे कुछ विचारधाराओं के निहित राजनीतिक और सांप्रदायिक हितों की सेवा के लिए ‘इतिहास की विकृति’ भी बताया। विश्वम ने लिखा है कि पाठ्यक्रम की सामग्री वैश्विक आतंकवाद और इसका समर्थन करने वाले राजनीतिक शासन से संबंधित कई अविश्वसनीय दावे करती है।
उन्होंने अपने पत्र में कहा कि इस आतंकवाद विरोधी मॉड्यूल में बयान में “जिहादी आतंकवाद” जैसे कट्टरपंथी-धार्मिक आतंकवाद का एकमात्र रूप शामिल है। पाठ्यक्रम, मॉड्यूल के तहत, ‘राज्य-प्रायोजित आतंकवाद: इसका फैलाव और प्रभाव’ भी राज्य प्रायोजित आतंकवाद के लिए अकेले सोवियत संघ और चीन को संदर्भित करता है जिसने “कट्टरपंथी-इस्लामी राज्यों” को प्रभावित किया। मॉड्यूल में छात्रों को क्या पेश करना है, इस पर नाराज़ होते हुए, भाकपा नेता ने कहा कि ये बयान “गहरे पूर्वाग्रह और राजनीति से प्रेरित” हैं।
पाठ्यक्रम का मसौदा तैयार करने वाले जेएनयू अधिकारियों की आलोचना करते हुए, विश्वम ने कहा कि यह शिक्षा और क्रिटिकल थिंकिंग के उस लोकाचार के खिलाफ है जो जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों की पहचान रही है।
उन्होंने अपने पत्र में केंद्रीय शिक्षा मंत्री से हस्तक्षेप करने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि पाठ्यक्रम सामग्री की व्यापक समीक्षा करने के लिए विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसरों को तैनात करें, जो इस विषय के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा कि इस तरह के ‘पक्षपाती’ पाठ्य सामग्री को अनुमति नहीं देनी चाहिए।
गौरतलब है कि 17 अगस्त को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद द्वारा ‘काउंटर टेररिज्म, असममित संघर्ष और प्रमुख शक्तियों के बीच सहयोग के लिए रणनीतियाँ’ शीर्षक से नए वैकल्पिक पाठ्यक्रम को मंजूरी देने के बाद ही विवाद शुरू हो गया। नया वैकल्पिक पाठ्यक्रम उन इंजीनियरिंग छात्रों के लिए पेश किया गया है जो जेएनयू में बीटेक पूरा करने के बाद दोहरी डिग्री का विकल्प चुनते हैं और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में विशेषज्ञता के साथ एमएस की पढ़ाई करते हैं।
इस तथ्य के बावजूद कि यह पेपर वैकल्पिक है, इंजीनियरिंग के छात्र इस संबंध में आतंकवाद और विश्व शक्तियों की भूमिका से निपटना सीखेंगे।
बता दें कि ‘कट्टरपंथी-धार्मिक आतंकवाद और उसके प्रभाव’ शीर्षक वाले नए पाठ्यक्रम के मॉड्यूल में से एक में लिखा है: “कट्टरपंथी धार्मिक-प्रेरित आतंकवाद ने 21 वीं सदी की शुरुआत में आतंकवादी हिंसा को जन्म देने में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रमुख भूमिका निभाई है। कुरान की विकृत व्याख्या के परिणामस्वरूप जिहादी पंथवादी हिंसा का तेजी से प्रसार हुआ है जो आत्मघाती और हत्या के रूपों में आतंक द्वारा मौत का महिमामंडन करती है।”
इसी में आगे कहा गया है, “कट्टरपंथी इस्लामी मजहबी मौलवियों द्वारा साइबर स्पेस के फैलाव के परिणामस्वरूप दुनिया भर में जिहादी आतंकवाद का इलेक्ट्रॉनिक प्रसार हुआ है। जिहादी आतंकवाद के ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक प्रसार के परिणामस्वरूप गैर-इस्लामिक समाजों में भी हिंसा में तेजी आई है जिसके परिणाम स्वरुप जो धर्मनिरपेक्ष हैं, अब वो भी हिंसा की चपेट में हैं और ये तेजी से बढ़ रहा है।”