कोरोना महामारी की विभीषिका का ईमानदार शब्दांकन है लॉकडाउन

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
इस शताब्दी में भारत और दुनिया ने कोरोना की महामारी को खूब भुगता है। खास कर दूसरी लहर के समय उपजी भगदौड़ी और परेशानियों ने सबको झकझोर दिया है। इस भयानक त्रासदी को शब्दों में उतारना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, पर रेखा वशिष्ठ मल्होत्रा ने इस कार्य को अपने कहानी संग्रह “लॉकडाउन, बस एक दिन और” में बखूबी अंजाम दिया है। बारह कहानियों का यह संग्रह लॉकडाउन के समय की अफरातफरी और उससे उपजी पीड़ा की कहानी खूब बयाँ करता है।
संग्रह की पहली ही कहानी ‘किरायेदार’ में लेखिका नौकरी छूटने से उपजी गरीबी और परेशानियों का इतना मार्मिक वर्णन करती हैं कि संग्रह सफल लगने लगता है। फिर माई कहानी में वे आधुनिकता के नशे में बिचलते सम्बन्धों और बुजुर्ग मन पर लगने वाले ठेस का भी मार्मिक चित्रण करती हैं। संग्रह की हर कहानी अद्वितीय है, जो पाठक को बांधे रखती है।
लेखिका रेखा वशिष्ठ मल्होत्रा पेशे से शिक्षिका हैं, सो उनको कोमल मानवीय भावनाओं की अच्छी समझ है। अपनी इस समझ को वो अपनी कहानियों में खूबसूरती से दिखाती हैं। जिन लोगों ने भी इस महामारी में भागदौड़ की है, उन्हें कहानियों के पात्र अपने आसपास दिखाई देने लगते हैं। वह चाहे रेडीमेड गारमेंट्स कहानी का सुमेर हो, या ऑनलाइन अफेयर के राधा-माधव, सभी देखे सुने से लगते हैं। अंतिम कहानी “क्या खोया क्या पाया” शायद हर उस परिवार की कहानी है, जो कोरोना बीमारी से ग्रसित हुआ है। यह लेखिका की सफलता है।
लेखन शैली की बात करें तो लेखिका ने सीधी और सपाट तरीके से कथा कही है। उन्होंने ना कठिन और क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग किया है, न ही वाक्य-विन्यास में ही कोई कलाकारी दिखाई है। यही इस संग्रह की सुंदरता है, और यही इसकी कमी भी है। हाँ, कहानी कहीं बोझिल नहीं होती, यह सुखद है।
लॉकडाउन लेखिका का पहला कहानी संग्रह है, और किताब आने के साथ ही अमेजन पर बेस्टसेलर हो चुकी है। या कहें तो लेखिका अपने पहले ही कहानी संग्रह के साथ एक गम्भीर कथाकार के रूप में स्थापित हो चुकी हैं।
एक बात और; एक महीने में ही पहला संस्करण समाप्त हो जाना लेखिका की व्यक्तिगत उपलब्धि है। इसके लिए उन्हें

बधाई

… यह किताब पढ़ी जानी चाहिए।

( 48 मेगापिक्सल कैमरा और अढ़ाई सौ ग्राम सारू खान के परचार वाला क्रीम पोतने के बाद भी फोटो में चेहरा करिया आये तो क्या ही कहें… जिंदगी लाल सलाम हो गयी है साहब!)